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प्रश्न :
प्रश्न. भारत के आपदा प्रबंधन ढाँचे की प्रभावशीलता का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। बढ़ते जलवायु जोखिमों के आलोक में आपदा के प्रति तैयारी तथा अनुकूलन को मज़बूत करने के क्रम में प्रमुख सुधारों को बताइये। (250 शब्द)
16 Apr, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 आपदा प्रबंधनउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत के आपदा प्रबंधन कार्यढाँचे को परिभाषित कीजिये।
- आपदा तैयारी और मोचन के लिये इससे निपटने में इसकी प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिये।
- अंतरालों का अभिनिर्धारण कीजिये और समुत्थानशीलन में सुधार के लिये प्रमुख सुधारों का सुझाव दीजिये।
परिचय:
भारत, जो विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं से प्रायः प्रभावित होता है, ने आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत एक सुदृढ़ आपदा प्रबंधन कार्यढाँचा विकसित किया है। हालाँकि, जलवायु परिवर्तन, तीव्र शहरीकरण और पर्यावरणीय क्षरण जैसे कारकों के कारण इन आपदाओं के प्रति भारत की सुभेद्यता बढ़ गई है, जिससे ऐसी घटनाओं की आवृत्ति एवं गंभीरता दोनों बढ़ गई है।
मुख्य भाग:
भारत के आपदा प्रबंधन कार्यढाँचे की प्रभावशीलता:
- संस्थागत कार्यढाँचा और वित्तीय सहायता: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA), राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA) और ज़िला स्तरीय एजेंसियों की स्थापना से आपदाओं के दौरान समन्वय में वृद्धि हुई है।
- वर्ष 2021-26 की अवधि के लिये राष्ट्रीय आपदा जोखिम प्रबंधन कोष (NDRMF) के तहत 68,463 करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं।
- इसमें से 80% राशि राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (NDRF) के लिये निर्धारित की गई है, जबकि 20% राशि राष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण कोष (NDRF) को आवंटित की गई है, जो तत्काल राहत और दीर्घकालिक तैयारी दोनों पर संतुलित ध्यान को दर्शाता है।
- वर्ष 2021-26 की अवधि के लिये राष्ट्रीय आपदा जोखिम प्रबंधन कोष (NDRMF) के तहत 68,463 करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं।
- तैयारियों पर ध्यान देंना: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (NDMP) आपदा की तैयारियों पर ज़ोर देती है, जिसमें राज्य और स्थानीय प्राधिकरण आपदा प्रबंधन योजनाएँ बनाते हैं। राष्ट्रीय चक्रवात जोखिम न्यूनीकरण परियोजना जैसी पहलों ने प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (भारतीय मौसम विभाग के अलर्ट) और आश्रय बुनियादी अवसंरचना को बढ़ाया है।
- सामुदायिक सहभागिता: यह कार्यढाँचा समुदाय-आधारित आपदा प्रबंधन (CBDM) कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करता है, जिसमें स्थानीय हितधारकों को शामिल किया जाता है, जिससे आपदा मोचन अधिक समावेशी और संदर्भ-विशिष्ट बनती है।
- 'ग्राम आपदा प्रबंधन योजना' जैसे कार्यक्रम ग्रामीण क्षेत्रों में प्रभावी रहे हैं।
सीमाएँ और अंतराल:
- अपर्याप्त जलवायु अनुकूलन रणनीतियाँ: बाढ़ और सूखे जैसी जलवायु-संबंधी आपदाओं की बढ़ती आवृत्ति एवं तीव्रता को वर्तमान रूपरेखाओं द्वारा पर्याप्त रूप से मोचन नहीं किया जाता है, क्योंकि उनमें जलवायु अनुकूलन पर मज़बूत ध्यान का अभाव है।
- सरकार ने वर्ष 2021 में जलवायु परिवर्तन के लिये राष्ट्रीय अनुकूलन कोष (NAFCC) के तहत 2,000 करोड़ रुपए आवंटित किये, लेकिन इसका कार्यान्वयन अपर्याप्त है।
- उभरते जोखिमों के प्रति धीमी प्रतिक्रिया: यह कार्यढाँचा, चक्रवातों और भूकंप जैसी पारंपरिक आपदाओं के लिये तो प्रभावी है, लेकिन अपर्याप्त पूर्वानुमान एवं प्रतिक्रिया प्रणालियों के कारण, यह ग्रीष्म लहरों, शहरी बाढ़ व भूस्खलन जैसे उभरते जोखिमों से जूझता है।
- आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) का कमज़ोर एकीकरण: विकास योजना में DRR के बेहतर एकीकरण की आवश्यकता है।
- पर्याप्त आपदा जोखिम आकलन के बिना शहरीकरण से प्रायः आपदाओं के दौरान असंगत क्षति होती है।
तैयारी और समुत्थानशीलन को सुदृढ़ करने के लिये प्रमुख सुधार:
- जलवायु अनुकूल रणनीति: बढ़ते जलवायु जोखिमों को देखते हुए, भारत को विकास परियोजनाओं में जलवायु-अनुकूल बुनियादी अवसंरचना और DRR रणनीतियों को शामिल करना चाहिये, विशेष रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में।
- स्मार्ट सिटी मिशन का उद्देश्य बाढ़ प्रबंधन और नगरीय ऊष्मा द्वीपों पर ध्यान केंद्रित करते हुए जलवायु-अनुकूल शहरी बुनियादी अवसंरचना का निर्माण करना है; कार्यान्वयन के लिये तेज़ी से विस्तार की आवश्यकता है।
- विकेंद्रीकृत आपदा प्रबंधन: ज़िला और स्थानीय स्तर पर आपदा प्रबंधन के विकेंद्रीकरण पर अधिक ज़ोर देने से समय पर निर्णय लेने तथा स्थानीय स्तर पर समुत्थानशीलन निर्माण में वृद्धि होगी।
- स्थानीय प्रतिक्रिया के लिये पंचायतों और शहरी स्थानीय निकायों (ULB) की क्षमता को प्रबल किया जाना चाहिये, जिसमें अति स्थानीय मौसम पूर्वानुमान का एकीकरण भी शामिल है, ताकि ज़मीनी स्तर पर आपदा प्रबंधन और निर्णय लेने की क्षमता को बढ़ाया जा सके।
- प्रौद्योगिकी का एकीकरण: GIS मैपिंग, AI और उपग्रह डेटा जैसी प्रौद्योगिकी का लाभ उठाकर आपदा पूर्वानुमान, निगरानी एवं पूर्व चेतावनी प्रणालियों में सुधार किया जा सकता है।
- एजेंसियों के बीच बेहतर डेटा-साझाकरण से त्वरित और अधिक समन्वित प्रतिक्रिया सुनिश्चित हो सकेगी।
- उदाहरण के लिये, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) बाढ़ पूर्वानुमान के लिये रिमोट सेंसिंग तकनीक का उपयोग करता है, जैसा कि वर्ष 2018 में केरल बाढ़ के दौरान देखा गया था, जहाँ उपग्रह इमेजरी ने सबसे सुभेद्य क्षेत्रों को इंगित करने में मदद की थी।
- जन जागरूकता और शिक्षा: स्कूलों और समुदायों सहित निरंतर प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रम, बेहतर तैयारी सुनिश्चित कर सकते हैं, विशेष रूप से बाढ़, हीट-वेव्स और भूकंप जैसे निरंतर खतरों के लिये।
- बीमा और वित्तीय सुरक्षा तंत्र को सुदृढ़ बनाना: कमज़ोर समुदायों के लिये व्यापक बीमा मॉडल और वित्तीय जोखिम प्रबंधन तंत्र के गठन से आपदाओं के वित्तीय प्रभाव को कम करने में मदद मिल सकती है।
निष्कर्ष:
भारत के आपदा प्रबंधन कार्यढाँचे ने तैयारी और मोचन प्रक्रिया में सुधार करने में प्रगति की है। उपर्युक्त सीमाओं और अंतरालों को समाप्त करने के लिये जलवायु अनुकूलन, विकेंद्रीकृत प्रबंधन और आपदा जोखिम न्यूनीकरण रणनीतियों में उन्नत प्रौद्योगिकी के एकीकरण की ओर बदलाव की आवश्यकता है। भविष्य की आपदाओं के प्रति जीवन और आजीविका की रक्षा के लिये एक सक्रिय, अच्छी तरह से संसाधनयुक्त एवं समुत्थानशील दृष्टिकोण आवश्यक है।
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