प्रश्न. भारत की एक्ट ईस्ट नीति ने हिंद-प्रशांत भू-राजनीति के दौरान नया महत्त्व प्राप्त कर लिया है। इस नीति के प्रमुख घटकों और रणनीतिक निहितार्थों पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- एक्ट ईस्ट पॉलिसी (AEP) को परिभाषित कीजिये और वर्तमान भू-राजनीतिक संदर्भ में इसके महत्त्व को बताइए।
- AEP के प्रमुख घटकों पर चर्चा कीजिये और नीति के रणनीतिक निहितार्थों की जाँच कीजिये।
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की भूमिका और नीति के महत्त्व का सारांश दीजिये।
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परिचय:
भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी (AEP) एक रणनीतिक पहल है, जिसका उद्देश्य दक्षिण-पूर्व एशिया और व्यापक हिंद-प्रशांत क्षेत्र के साथ भारत की सहभागिता को बढ़ाना है। इसे वर्ष 2014 में लुक ईस्ट पॉलिसी के उन्नत संस्करण के रूप में औपचारिक रूप से अपनाया गया था। एक्ट ईस्ट पॉलिसी भारत की हिंद-प्रशांत रणनीति के लिये महत्त्वपूर्ण हो गई है, खासकर चीन की बढ़ती मुखरता के बीच, जो क्षेत्रीय सुरक्षा और आर्थिक संबंधों में भारत की भूमिका को मज़बूत करती है।
मुख्या भाग:
भारत की AEP के प्रमुख घटक:
- आर्थिक और व्यापारिक भागीदारी: एक्ट ईस्ट पॉलिसी ASEAN देशों के साथ आर्थिक संबंधों को बढ़ाने पर केंद्रित है, जो ASEAN-भारत मुक्त व्यापार समझौता (AIFTA) और भारत के जापान तथा दक्षिण कोरिया के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) जैसे समझौतों के माध्यम से संभव हो रहा है।
- भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग और कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट परियोजना महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ हैं, जिनका उद्देश्य भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच संपर्क में सुधार करना है, जिससे व्यापार और निवेश प्रवाह में वृद्धि होगी।
- सुरक्षा सहयोग: भारत की AEP समुद्री सहयोग पर ध्यान केंद्रित करते हुए क्षेत्रीय सुरक्षा को मज़बूत करता है। क्वाड और इंडो-पैसिफिक महासागर पहल (IPOI) के माध्यम से, भारत जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे देशों के साथ अपने संबंधों को गहरा करता है, जिससे नियम-आधारित समुद्री व्यवस्था को बढ़ावा मिलता है।
- यह संयुक्त सैन्य अभ्यास (मालाबार, मिलान-नौसेना) आयोजित करता है और सूचना साझाकरण एवं विश्लेषण केंद्र (ISAC) जैसी पहलों के माध्यम से समुद्री क्षेत्र जागरूकता और क्षमता निर्माण में ASEAN देशों को समर्थन प्रदान करता है।
- कूटनीतिक जुड़ाव: भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी आसियान क्षेत्रीय मंच (ARF), पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (EAS), हिंद महासागर रिम संघ (IORA) और एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (APEC) जैसे क्षेत्रीय मंचों के माध्यम से सक्रिय कूटनीति और बहुपक्षीय जुड़ाव पर ज़ोर देती है।
- रणनीतिक रूप से, भारत एक स्वतंत्र, मुक्त और समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये ऑस्ट्रेलिया, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों के साथ साझेदारी को मज़बूत कर रहा है।
- सांस्कृतिक कूटनीति: भारत योग कूटनीति, भारत-आसियान सांस्कृतिक महोत्सव तथा आसियान-भारत युवा शिखर सम्मेलन जैसी पहलों के माध्यम से लोगों के बीच संबंधों को बढ़ावा देता है। इसका उद्देश्य मज़बूत सांस्कृतिक जुड़ाव स्थापित करना और साझा मूल्यों एवं समझ के आधार पर दीर्घकालिक संबंधों को सुदृढ़ बनाना है।
भारत के AEP के रणनीतिक निहितार्थ:
- क्षेत्रीय सुरक्षा में वृद्धि: भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी (AEP) चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के प्रति एक रणनीतिक प्रतिक्रिया के रूप में कार्य करती है, विशेष रूप से दक्षिण चीन सागर में। यह नियम-आधारित व्यवस्था को बढ़ावा देकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की नेतृत्वकारी भूमिका को सुदृढ़ करती है।
- भारत-प्रशांत रणनीति का अभिसरण: AEP भारत के हितों को भारत-प्रशांत महासागर पहल (IPOI) जैसे वैश्विक ढाँचों के साथ संरेखित करती है तथा सतत् विकास और समुद्री सुरक्षा पर क्षेत्रीय सहयोग को प्रोत्साहित करती है।
- कनेक्टिविटी पहल: भारत द्वारा संपर्क सुधारने पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित किया गया है, खासकर अपने पूर्वोत्तर क्षेत्र को दक्षिण-पूर्व एशिया से जोड़ने की दिशा में। यह प्रयास व्यापार, निवेश और बुनियादी ढाँचे के विकास के नए मार्ग खोलता है, जिससे क्षेत्रीय एकीकरण और समावेशी विकास को बढ़ावा मिलता है।
- बहुपक्षीय भागीदारी: क्वाड और इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (IORA) जैसे बहुपक्षीय मंचों में भारत की सक्रिय भागीदारी इसके कूटनीतिक प्रभाव को सुदृढ़ करती है। प्रमुख क्षेत्रीय शक्तियों के साथ सहयोग कर भारत एक नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को बढ़ावा देने का प्रयास करता है, जिससे वह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी नेतृत्वकारी भूमिका को सशक्त करने हेतु अपनी रणनीतिक स्थिति का प्रभावी उपयोग करता है।
- आर्थिक अवसर: भारत के हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करने से विविध व्यापार और निवेश के रास्ते भी खुलते हैं। यह नीति बुनियादी ढाँचे, कनेक्टिविटी तथा ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में विकास को बढ़ावा देने (विशेषकर आसियान देशों के संदर्भ में) पर केंद्रित है।
निष्कर्ष:
भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी इसकी विदेश नीति का एक केंद्रीय स्तंभ है जिसके तहत दक्षिण-पूर्व एशिया और व्यापक हिंद-प्रशांत क्षेत्र के साथ इसके समन्वय को आकार मिलता है। आर्थिक विकास, रणनीतिक सुरक्षा सहयोग एवं कूटनीतिक समन्वय पर ध्यान केंद्रित करके, भारत का लक्ष्य अपने प्रभाव को बढ़ाना तथा चीन की बढ़ती प्रभावशीलता से उत्पन्न चुनौतियों का मुकाबला करना है। जैसे-जैसे हिंद-प्रशांत में भू-राजनीतिक गतिशीलता विकसित होगी, उसी क्रम में एक्ट ईस्ट पॉलिसी क्षेत्रीय और वैश्विक शक्ति के रूप में के भारत के प्रयासों में प्रमुख भूमिका निभाती रहेगी।