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प्रश्न :
प्रश्न. भारतीय मंदिर स्थापत्यकला किस प्रकार क्षेत्रीय विविधता और सामाजिक-राजनीतिक प्रभावों को प्रतिबिंबित करती है? उपयुक्त उदाहरणों के साथ टिप्पणी कीजिये। (150 शब्द)
14 Apr, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृतिउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारतीय मंदिर स्थापत्यकला की विविधता का परिचय दीजिये।
- विश्लेषण कीजिये कि क्षेत्रीय शैलियाँ और सामाजिक-राजनीतिक कारक इसे किस प्रकार आकार देते हैं।
- इसके सांस्कृतिक महत्त्व के साथ उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
भारतीय मंदिर स्थापत्यकला क्षेत्रीय विविधता और आध्यात्मिकता, सौंदर्यशास्त्र एवं सामाजिक-राजनीतिक लोकाचार के विशिष्ट मिश्रण का एक ज्वलंत उदाहरण है, जो सदियों से विभिन्न क्षेत्रों में विकसित हो रहा है। उत्तर भारत की नागर शैली से लेकर दक्षिण के द्रविड़ मंदिरों व दक्कन के वेसर मंदिरों तक, स्थापत्यकला के रूपों को न केवल धार्मिक सिद्धांतों द्वारा बल्कि राजवंशीय संरक्षण और सामाजिक संरचना द्वारा भी आकार दिया गया था।
मुख्य भाग:
मंदिर शैलियों में क्षेत्रीय विविधता:
- तमिलनाडु के बृहदेश्वर मंदिर (11वीं शताब्दी) में देखी जाने वाली द्रविड़ शैली में विशाल गोपुरम और जीवंत मूर्तियाँ हैं, जो चोल वंश की समृद्धि एवं कलात्मक संरक्षण को दर्शाती हैं।
- इसके विपरीत कलिंग शैली, जो ओडिशा के कोणार्क सूर्य मंदिर में स्पष्ट दिखाई देती है, स्थानीय बलुआ पत्थर व समुद्री संस्कृति के अनुकूल वक्ररेखीय शिखरों की विशिष्टता है।
- नागर और द्रविड़ शैली के मंदिर स्थापत्यकला के तत्त्वों का सम्मिश्रण वेसर शैली कर्नाटक के होयसल मंदिरों जैसे चेन्नाकेशव में दिखाई देती है, जो संकर प्रभावों को प्रदर्शित करती है।
क्षेत्र
स्थापत्य शैली
उदाहरण
उत्तर भारत
नागर शैली
कंदरिया महादेवा, खजुराहो
दक्षिण भारत
द्रविड़ शैली
बृहदेश्वर मंदिर, तंजावुर
दक्कन
वेसर शैली
होयसलेश्वर, हलेबिदु
ओडिशा
कलिंग शैली
सूर्य मंदिर, कोणार्क
उत्तर-पूर्व एवं पहाड़ियाँ
स्थानीय शैलियाँ
हिडिंबा देवी मंदिर
भारतीय मंदिर स्थापत्यकला पर सामाजिक-राजनीतिक प्रभाव
- राजवंशीय संरक्षण और राजनीतिक वैधता: मध्यकालीन भारत में चोल, होयसल या गुप्त शासकों ने भव्य मंदिरों का निर्माण कराया, जिससे न सिर्फ धार्मिक महत्ता बढ़ी बल्कि यह भी दर्शाया गया कि शासक ईश्वर के प्रिय हैं और उनके अधीन विशाल, संगठित साम्राज्य है।
- मंदिरों में प्रायः राजा की उपलब्धियों, वंश और धर्मपरायणता का महिमामंडन करने वाले शिलालेख होते थे। उदाहरण के लिये: चोल राजवंश, तंजावुर में बृहदेश्वर मंदिर (यूनेस्को स्थल) का निर्माण राजराजा चोल प्रथम (11वीं शताब्दी) द्वारा न केवल एक धार्मिक केंद्र के रूप में बल्कि शाही शक्ति के प्रतीक के रूप में भी किया गया था।
- विजयनगर साम्राज्य के हम्पी मंदिरों में पत्थरों पर सैन्य, व्यापार और शाही आख्यान उकेरे गए हैं।
- मंदिर केवल धार्मिक स्थल नहीं थे, बल्कि उनके साम्राज्य की शक्ति और धार्मिक संरक्षण के स्थायी प्रतीक भी स्थापित करते थे।
- आर्थिक संस्थान: मंदिर आर्थिक केंद्र हुआ करते थे, जिनके अधिकार क्षेत्र में विशाल भूमि होती थी, वे कर एकत्र करते थे और उस धन का पुनर्वितरण करते थे।
- दक्षिण भारत के मंदिरों, जैसे कि मदुरै का मीनाक्षी मंदिर और श्रीरंगम मंदिर, के पास बहुत विस्तृत आय-व्यय (राजस्व) के रिकॉर्ड होते थे, जिनका विवरण ताम्रपत्र शिलालेखों में मिलता है।
- पुरी का जगन्नाथ मंदिर अभी भी मंदिर के रसोईघर पर आधारित एक विशाल खाद्य अर्थव्यवस्था संचालित करता है।
- सांस्कृतिक बहुलवाद और स्थानीय पहचान: मंदिरों की स्थापत्यकला में स्थानीय रीति-रिवाज़, समाजिक जीवन, भाषाएँ और प्राकृतिक तत्त्व प्रतिबिंबित होते हैं। इस तरह मंदिर स्थापत्यकला ने स्थानीय संस्कृतियों को पूरे भारत की व्यापक कला-परंपरा से जोड़ने में अहम भूमिका निभाई।
- मंदिरों की दीवारों, मूर्तियों और चित्रों में स्थानीय परंपराएँ, जैसे: पोशाक, त्योहार, नृत्य, विवाह या युद्ध आदि के दृश्य उत्कीर्णित किये जाते थे। मंदिरों में संस्कृत के साथ-साथ तमिल, तेलुगु, कन्नड़, ओड़िया जैसी क्षेत्रीय भाषाओं में शिलालेख मिलते हैं।
- होयसलेश्वर मंदिर (हलेबिदु) में रामायण, महाभारत और स्थानीय किंवदंतियों के दृश्यों को समान महत्त्व के साथ दर्शाया गया है।
निष्कर्ष
भारतीय मंदिर स्थापत्यकला देश की सभ्यतागत विविधता और एकीकृत भावना का जीवंत प्रमाण है। प्रत्येक मंदिर राजनीतिक संरक्षण, कलात्मक नवाचार और स्थानीय संस्कृति द्वारा आकार दी गई एक क्षेत्रीय वृत्तांत का उल्लेख करता है। स्थायी प्रथाओं के माध्यम से इस विरासत को संरक्षित करना और इसे बढ़ावा देना भविष्य की पीढ़ियों को एकजुट एवं प्रेरित करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
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