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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. खनिज संसाधनों से समृद्ध होने के बावजूद, भारत के कई क्षेत्र अभी भी अविकसित हैं। भारत में खनिज संपदा और क्षेत्रीय विकास के बीच विरोधाभास पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    14 Apr, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • खनिज संसाधनों की संपन्नता के विरोधाभास की परिभाषा और भारत के खनिज समृद्ध राज्यों के लिये इसकी प्रासंगिकता का परिचय दीजिये।
    • संसाधन संपन्नता के बावजूद अविकसितता में योगदान देने वाले कारकों पर प्रकाश डालते हुए विरोधाभास का विश्लेषण कीजिये।
    • अंतर को समाप्त करने के सुझावों के साथ उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:  

    खनिज संसाधनों की संपन्नता का विरोधाभास बताता है कि किस प्रकार संसाधन संपन्न क्षेत्र प्रायः न्यून आर्थिक विकास और कम मानव विकास का सामना करते हैं। भारत का खनिज क्षेत्र मध्य और पूर्वी राज्यों में फैला हुआ है, जो कोयला और लौह अयस्क उत्पादन में 60% से अधिक का योगदान देता है। कोयला और लौह अयस्क जैसे प्रचुर खनिज होने के बावजूद, वे गरीबी और अकुशल सार्वजनिक सेवाओं से जूझते रहते हैं। संसाधन संपदा और विकास के बीच यह अंतर प्रणालीगत शासन एवं संरचनात्मक मुद्दों को उजागर करता है।

    मुख्य भाग:

    विरोधाभास: अविकसितता के कारण:

    • पर्यावरण और आजीविका व्यवधान: बड़े पैमाने पर खनन से निर्वनीकरण, जल प्रदूषण और भूमि क्षरण होता है। 
      • ओडिशा के क्योंझर में लौह अयस्क खनन के कारण वर्ष 2000 से हजारों आदिवासी विस्थापित हो गए हैं, जिससे वन आधारित आजीविका बाधित हुई है। 
      • मेघालय के जयंतिया हिल्स में कोयला खदानों से निकलने वाले अम्लीय जल ने कोपिली जैसी नदियों को उपयोग हेतु अयोग्य बना दिया है, जिससे कृषि और स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है।
    • कमज़ोर शासन: पिछले दशक (वर्ष 2015-2025 के दौरान) में खनन पट्टाधारकों से ज़िला खनिज फाउंडेशन (DMF) के तहत ₹1 लाख करोड़ से अधिक की राशि एकत्र की गई। हालाँकि, 50% से अधिक धनराशि खर्च नहीं की गई, जो प्रशासनिक बाधाओं एवं कमज़ोर योजना का संकेत है।
      • झारखंड में 1,164 स्वीकृत परियोजनाओं में से कौशल विकास और आजीविका सृजन के लिये केवल ₹1.86 करोड़ आवंटित किये गए।
    • संघर्ष और उग्रवाद: भूमि अंतरण और असमान विकास के कारण खनिज क्षेत्रों में वामपंथी उग्रवाद (LWE) पनपता है। 
      • छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में वर्ष 2010 से अब तक खनन के लिये अधिग्रहित की गई 50% से अधिक भूमि के कारण जनजातीय लोग बिना पर्याप्त मुआवज़ा के विस्थापित होना पड़ा है, जिससे अशांति बढ़ रही है और इस तरह के संघर्षों से निवेश और बुनियादी अवसंरचना के विकास में बाधा आ रही है।
    • अपर्याप्त बुनियादी अवसंरचना: खनिज समृद्ध ज़िलों में सड़क, स्कूल और अस्पताल जैसी बुनियादी अवसंरचनाओं का अभाव है। उच्च खनिज निर्यात के बावजूद, SDG इंडिया इंडेक्स (वर्ष 2023) में झारखंड और छत्तीसगढ़ को स्वास्थ्य एवं शिक्षा के मामले में सबसे निचले पायदान पर रखा गया है। 
      • छत्तीसगढ़ के 20% से भी कम ग्रामीण क्षेत्रों में पक्की सड़कें हैं, जिससे बुनियादी अवसंरचना की कमी की समस्या उत्पन्न हो रही है।
      • खनन पर अत्यधिक निर्भरता औद्योगिक विविधीकरण में बाधा डालती है। लौह अयस्क से समृद्ध ओडिशा के क्योंझर ज़िला की अर्थव्यवस्था मज़बूत विनिर्माण या सेवा क्षेत्रों की कमी के कारण संसाधन-निर्भर है।

    खनिज समृद्ध क्षेत्रों में विकास अंतराल को समाप्त करने के प्रयास और उनकी सीमाएँ:

    पहल

    उद्देश्य एवं सीमाएँ

    जिला खनिज फाउंडेशन (DMF)

    इसका उद्देश्य प्रभावित ज़िलों में स्थानीय विकास के लिये खनन रॉयल्टी का उपयोग करना है; हालाँकि, योजना के अकुशल कार्यान्वयन कारण 50% से अधिक धनराशि खर्च नहीं हो पाती या गलत तरीके से आवंटित हो जाती है।

    प्रधानमंत्री खनिज क्षेत्र कल्याण योजना (PMKKKY)

    DMF फंड को स्वास्थ्य, शिक्षा और कौशल विकास जैसी कल्याणकारी योजनाओं में लगाने का प्रयास किया जा रहा है; लेकिन इसकी निगरानी कमज़ोर है।

    पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) (PESA) अधिनियम, 1996 

    जनजातीय क्षेत्रों में ग्राम सभाओं को प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग पर निर्णय लेने का अधिकार दिया गया है; फिर भी राज्यों द्वारा इसका प्रभावी क्रियान्वयन नहीं किया गया है।

    वन अधिकार अधिनियम, (FRA) 2006 

    वन-भूमि और संसाधनों पर जनजातीय अधिकारों को मान्यता दी गई है; लेकिन जागरूकता की कमी, दावों की उच्च अस्वीकृति दर और सहमति प्रक्रियाओं की अनदेखी इसकी प्रभावशीलता को कमज़ोर करती है।

    आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम (ADP)

    तेज़ी से विकास के लिये पिछड़े, प्रायः खनन प्रभावित ज़िलों को लक्ष्य बनाया गया है; फिर भी मानव विकास की तुलना में बुनियादी अवसंरचना पर अधिक ध्यान दिया गया है।

    निष्कर्ष

    संसाधन-समृद्ध अविकसितता के विरोधाभास को तोड़ने के लिये, एक बहुआयामी दृष्टिकोण आवश्यक है। सक्रिय जनजातीय समुदाय भागीदारी के साथ DMF फंड की विकेंद्रीकृत योजना यह सुनिश्चित कर सकती है कि संसाधन स्थानीय आवश्यकताओं को प्रभावी ढंग से पूरा करें। पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव आकलन को सुदृढ़ करने से अधिक संधारणीय और जवाबदेह खनन प्रथाओं को बढ़ावा मिलेगा। स्थानीय उद्योग की मांगों के साथ संरेखित लक्षित कौशल कार्यक्रम रोज़गार अंतराल की पूर्ति कर सकते हैं, यद्यपि ऑप्टिकल फाइबर कनेक्टिविटी और मोबाइल स्वास्थ्य एवं शिक्षा इकाइयों में निवेश दूरदराज़ के खनन प्रभावित क्षेत्रों में आवश्यक सेवाओं तक पहुँच में सुधार कर सकता है। साथ में, ये उपाय विरोधाभासी खनिज संपदा को समावेशी और संधारणीय विकास में बदल सकते हैं।

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