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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. कृषि भारत की अर्थव्यवस्था के लिये एक महतत्त्वपूर्ण क्षेत्रक है, लेकिन इसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इन चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और उन्हें दूर करने के उपाय सुझाइये। (250 शब्द)

    09 Apr, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • अर्थव्यवस्था के लिये भारतीय कृषि के महत्त्व का संक्षेप में परिचय दीजिये।
    • भारतीय कृषि के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये तथा उनके समाधान के उपाय सुझाइये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय

    कृषि भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 17-18% का योगदान देती है और ग्रामीण आबादी के 60% से अधिक लोगों का भरण-पोषण करती है। हालाँकि, इसके महत्त्व के बावजूद, इस क्षेत्र को कई संरचनात्मक और परिचालन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जो इसके विकास एवं संधारणीयता में बाधा डालती हैं।

    मुख्य भाग:

    भारतीय कृषि के समक्ष चुनौतियाँ

    • उत्पादकता और भूमि का विखंडन: भारत में कृषि उत्पादकता पुरानी कृषि पद्धतियों और सीमित मशीनीकरण के कारण बाधित है।
      • उत्तराधिकार कानूनों के कारण भूमि का विखंडन (औसत भूमि आकार सत्र 1970-71 में 2.28 हेक्टेयर से घटकर सत्र 2015-16 में 1.15 हेक्टेयर रह गया है), जिससे किसानों के लिये बड़े पैमाने पर मितव्ययिता हासिल करना या आधुनिक प्रौद्योगिकियों तक पहुँच बनाना कठिन हो गया है।
    • ऋण तक अपर्याप्त अभिगम: किसानों, विशेष रूप से लघु एवं सीमांत किसानों को प्रायः सख्त संपार्श्विक आवश्यकताओं और वित्तीय साक्षरता की कमी के कारण औपचारिक ऋण तक सीमित अभिगम का सामना करना पड़ता है।
      • प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) जैसी फसल बीमा योजनाओं का जागरूकता की कमी, विलंबित दावों और कम कवरेज के कारण कम उपयोग की गई हैं।
    • मानसून पर निर्भरता: भारतीय कृषि मानसून की बारिश पर अत्यधिक निर्भर है, जो अनियमित और असमान रूप से वितरित होती है। मानसून में विलंब या विफलता से फसलें खराब होती हैं, जल की कमी होती है और कृषि संकट बढ़ता है।
    • मूल्य में उतार-चढ़ाव: बाज़ार तक पहुँच एक महत्त्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है, विशेष रूप से लघु किसानों के लिये जो प्रायः मंडियों में बिचौलियों के शोषण के शिकार होते हैं या उच्च परिवहन लागत का सामना करते हैं।
      • अकुशल भंडारण व अपर्याप्त बाज़ार संपर्क जनित मूल्य में उतार-चढ़ाव के कारण किसानों को फसल के दौरान कम कीमत और ऑफ-सीज़न में उच्च कीमतों का सामना करना पड़ता है।
    • बुनियादी अवसंरचना की कमी: भंडारण सुविधाओं और कोल्ड चेन जैसे अपर्याप्त ग्रामीण बुनियादी अवसंरचना की वजह से आपूर्ति शृंखला प्रभावित होती है तथा उपज को समय पर बाज़ारों तक पहुँचाने में बाधा आती है। आधुनिक भंडारण और प्रसंस्करण सुविधाओं की कमी के कारण फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान बहुत अधिक हैं।

    भारतीय कृषि में चुनौतियों से निपटने के उपाय

    • विविधीकरण और फसल बीमा: एकल फसल पर निर्भरता कम करने तथा मौसम और मूल्य में उतार-चढ़ाव से जुड़े जोखिमों को कम करने के लिये फसल विविधीकरण को बढ़ावा देना।
      • PMFBY जैसी फसल बीमा योजनाओं को सुदृढ़ और विस्तारित किया जाना चाहिये, मौसम आधारित बीमा योजनाओं का कवरेज बढ़ाया जाना चाहिये।
      • किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) योजना को सरल बनाया जाना चाहिये और आसान ऋण सुविधाओं के बारे में जागरूकता बढ़ाया जाना चाहिये।
    • कृषि मशीनीकरण को बढ़ावा देना: उत्पादकता बढ़ाने और श्रम लागत को कम करने के लिये मशीनीकरण (जैसे: ट्रैक्टर, हार्वेस्टर, परिशुद्ध कृषि के लिये ड्रोन) का प्रयोग शुरू किया जाना चाहिये।
    • आधुनिक कृषि पद्धतियों और प्रौद्योगिकी के उपयोग पर समर्पित कृषि इंजीनियरिंग के माध्यम से किसानों को प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिये।
    • भूमि सुधार और चकबंदी: अनुबंध कृषि मॉडल और कृषक उत्पादक संगठनों (FPO) के उपयोग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये, जिससे लघु किसानों को अपने संसाधनों को एकत्र करने तथा बेहतर कीमतों पर सौदाकारी करने में मदद मिल सके।
    • कृषि बाज़ारों को सुदृढ़ करना: अधिक किसान उत्पादक बाज़ार (FPM), प्रत्यक्ष-से-उपभोक्ता मॉडल स्थापित किया जाना चाहिये और नीतियों को लागू किया जाना चाहिये जो बिचौलियों पर निर्भरता कम करने तथा किसानों के लिये बेहतर मूल्य सुनिश्चित करने हेतु मूल्यवर्द्धित उत्पादों (जैविक खाद्य) को प्रोत्साहित करते हैं।
      • आवश्यक फसलों के लिये उचित मूल्य सुनिश्चित करने के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) प्रणाली को सुदृढ़ किया जाना चाहिये, जिससे बाज़ार के उतार-चढ़ाव पर किसानों की निर्भरता कम हो।
    • संधारणीय कृषि: वर्षा पर निर्भरता कम करने के लिये वर्षा जल संचयन, कुशल सिंचाई प्रौद्योगिकियों (जैसे: ड्रिप सिंचाई, स्प्रिंकलर प्रणाली) को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
      • दीर्घकालिक मृदा स्वास्थ्य सुनिश्चित करने और पर्यावरण पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव को कम करने के लिये जैविक कृषि एवं जैव-उर्वरकों के उपयोग की ओर रुख करने की आवश्यकता है।

    निष्कर्ष

    वित्तीय अभिगम में सुधार, कृषि तकनीकों का आधुनिकीकरण और बाज़ार संबंधों को सुदृढ़ करके कृषि क्षेत्रक को किसानों के लिये अधिक संधारणीय, उत्पादक एवं लाभकारी बनाया जा सकता है। नीतियों, बुनियादी अवसंरचना के विकास एवं वित्तीय सहायता के माध्यम से किसानों को अनुकूल परिवेश उपलब्ध कराने में सरकार की भूमिका कृषि क्रांति को प्राप्त करने के लिये महत्त्वपूर्ण होगी।

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