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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. हाल की वैश्विक जलवायु और विकास वार्ताओं में ग्लोबल साउथ के समर्थक के रूप में भारत की भूमिका का मूल्यांकन कीजिये। (150 शब्द)

    08 Apr, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • ग्लोबल साउथ के प्रतिनिधि के रूप में भारत की भूमिका का परिचय दीजिये।
    • वैश्विक जलवायु एवं विकास वार्ता में भारत की भूमिका को उचित ठहराते हुए उत्तर की पुष्टि कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    भारत वैश्विक जलवायु और विकास वार्ताओं में अपने हितों का नेतृत्व करते हुए ग्लोबल साउथ के लिये एक प्रमुख प्रतिनिधि के रूप में उभरा है। यह ‘वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ समिट (VOGSS)’ की मेज़बानी और वैश्विक मंचों में इसकी सक्रिय भागीदारी में परिलक्षित होता है। भारत का “वसुधैव कुटुम्बकम” (एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य) का दर्शन विकासशील देशों के प्रतिनिधि के रूप में इसकी भूमिका का आधार बनता है।

    मुख्य भाग

    ग्लोबल साउथ में भारत की भूमिका:

    • ग्लोबल साउथ के हितों का समर्थन: भारत ने विकासशील देशों के बढ़ते ऋण, जो ग्लोबल साउथ के लिये एक महत्त्वपूर्ण चिंता का विषय है, से निपटने के लिये एक व्यापक, मानव-केंद्रित वैश्विक विकास समझौते का प्रस्ताव दिया है।
      • भारत ग्लोबल साउथ-देशों के साथ किफायती जेनेरिक दवाइयाँ उपलब्ध कराने तथा प्राकृतिक कृषि में अपनी विशेषज्ञता साझा करने के लिये प्रतिबद्ध है।
    • भारत ने व्यापार संवर्द्धन के लिये 2.5 मिलियन अमरीकी डॉलर तथा व्यापार नीति एवं वार्ता में क्षमता निर्माण के लिये 1 मिलियन अमरीकी डॉलर आवंटित किये हैं।
    • जलवायु वार्ता में नेतृत्व: भारत जलवायु वार्ता में साझा किंतु विभेदित उत्तरदायित्वों (CBDR) का मुखर समर्थक है, जो विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने में आवश्यक समर्थन सुनिश्चित करता है।
      • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) और आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन (CDRI) में भारत का नेतृत्व ग्लोबल साउथ क्षेत्र के लिये सतत् विकास एवं आपदा रोधी क्षमता के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
    • बहुपक्षीय सुधारों के लिये समर्थन: भारत ने अफ्रीकी संघ को G20 में शामिल करने पर ज़ोर दिया है, तथा ग्लोबल साउथ के हितों को प्रतिबिंबित करने के लिये वैश्विक शासन संरचनाओं को नया स्वरूप देने में इसकी भूमिका पर प्रकाश डाला है।
      • भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और विश्व बैंक जैसी संस्थाओं में सुधार का भी प्रतिनिधित्व करता है तथा विकासशील देशों को अधिक समर्थन देने का आह्वान करता है।
    • भारत की रणनीतिक साझेदारी: इंडिया-अफ्रीका फोरम सम्मिट (IAFS) के माध्यम से ग्लोबल साउथ देशों के साथ संबंधों को सुदृढ़ कर रहा है। भारत ने अफ्रीका के विकास, विशेष रूप से कृषि आदि के लिये 10 बिलियन डॉलर देने का संकल्प लिया है।
      • BRICS और G77 के प्रमुख सदस्य के रूप में भारत जलवायु परिवर्तन कार्रवाई, विकास वित्त एवं व्यापार निष्पक्षता का प्रतिनिधित्व करता है।

    ग्लोबल साउथ में भारत के समक्ष चुनौतियाँ

    • विविध हित: ग्लोबल साउथ एक अखंड समूह नहीं है। अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के देशों की व्यापार नीतियों, जलवायु परिवर्तन एवं शासन जैसे मुद्दों पर विपरीत प्राथमिकताएँ हो सकती हैं, जिसके कारण समाधानों पर अलग-अलग विचार हो सकते हैं।
    • चीन के साथ प्रतिस्पर्द्धा: चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) ग्लोबल साउथ में भारत के प्रभाव के लिये एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है। चीन ने अपनी उपस्थिति का विस्तार किया है, विशेष रूप से अफ्रीका और दक्षिण एशिया में, जिससे इस क्षेत्र में भारत का कूटनीतिक लाभ सीमित हो गया है।
    • कूटनीतिक चुनौतियाँ: भारत को ग्लोबल साउथ के हितों का समर्थन करते हुए ग्लोबल नॉर्थ (जैसे: संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप) के साथ अपने रणनीतिक संबंधों को संतुलित करने के जटिल कार्य का सामना करना पड़ रहा है।
      • संयुक्त राष्ट्र या विश्व व्यापार संगठन जैसे मंचों पर यह बात स्पष्ट है।
    • जलवायु परिवर्तन की भेद्यता: सामान्य रूप से भारत और विशेष रूप से ग्लोबल साउथ जलवायु परिवर्तन के प्रभावों जैसे चरम मौसमी घटनाओं, बढ़ते समुद्री स्तर व सूखे के प्रति अत्यधिक सुभेद्य है। वित्तपोषण तंत्र की कमी ग्लोबल साउथ की भेद्यता को और बढ़ा रही है।

    निष्कर्ष:

    भारत ग्लोबल साउथ के लिये एक प्रमुख समर्थक के रूप में उभरा है, जो अपने स्वयं के विकास के अनुभव और चुनौतियों का लाभ उठाते हुए न्यायसंगत जलवायु परिवर्तन कार्रवाई और समावेशी विकास को आगे बढ़ा रहा है। क्लाइमेट जस्टिस से लेकर ऋण राहत और व्यापार सुधारों तक, वैश्विक जलवायु वार्ताओं में भारत ने जो सक्रिय भूमिका निभाई है, वह आगे भी बहुत अहम रहेगी। भारत यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहा है कि विकासशील देशों की विशिष्ट आवश्यकताएँ इन नीतियों में शामिल हों तथा इन वैश्विक नीतियों को तय करने की प्रक्रिया में उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति भी की जाए।

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