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प्रश्न :
प्रश्न. भारत में सहकारी संघवाद पर एक साथ चुनावों के प्रभावों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
08 Apr, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- एक साथ चुनाव की संक्षिप्त परिभाषा के साथ अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- भारत में सहकारी संघवाद पर इसके प्रभावों का परीक्षण कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ या समानांतर चुनाव (एक साथ चुनाव) की अवधारणा यह प्रस्ताव करती है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावी चक्रों को संरेखित कर दिया जाए, जिससे मतदाता एक ही दिन दोनों के लिये मतदान कर सकें। इस सुधार का उद्देश्य लागत कम करना और शासन को सुव्यवस्थित करना है। हालाँकि, यह भारत में सहकारी संघवाद पर इसके प्रभाव के संदर्भ में चिंताएँ उत्पन्न करता है, जो केंद्र और राज्य सरकारों के बीच आपसी सम्मान एवं स्वायत्तता पर निर्भर करता है। समानांतर चुनावों पर उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट ने पहले चरण के रूप में लोकसभा व राज्य विधानसभाओं के लिये एक साथ चुनाव कराने तथा अगले चरण में आम चुनाव के 100 दिनों के भीतर नगरपालिका एवं पंचायत चुनाव कराने का प्रस्ताव रखा था।
मुख्य भाग:
सहकारी संघवाद पर सकारात्मक प्रभाव:
- संसाधन अनुकूलन: समानांतर चुनाव कराने से केंद्र और राज्य सरकारों पर वित्तीय बोझ कम होगा, क्योंकि वे चुनाव प्रबंधन के लिये संसाधनों को एकत्रित कर सकेंगे।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2019 में अकेले लोकसभा चुनाव कराने की लागत लगभग 60,000 करोड़ रुपए आँकी गई थी, जिसमें राज्य चुनावों के लिये अतिरिक्त लागत शामिल थी। समानांतर चुनाव कराने से प्रशासनिक संसाधनों, बुनियादी अवसंरचना (जैसे: EVM) और कानून प्रवर्तन को मिलाकर इन लागतों में कटौती होगी।
- राजनीतिक स्थिरता: एकीकृत चुनावी चक्र से केंद्र और राज्य दोनों सरकारों के लिये समकालिक जनादेश प्राप्त हो सकता है, जिससे राजनीतिक विखंडन में कमी आ सकती है।
- इस समन्वय से अधिक सहयोगात्मक निर्णय लेने में मदद मिल सकती है, जो राज्य-विशिष्ट नीति लक्ष्यों सहित दीर्घकालिक नीति लक्ष्यों पर केंद्रित होगा।
- चुनावी व्यवधानों में कमी: एक साथ चुनाव कराने से आदर्श आचार संहिता (MCC) के कारण होने वाले व्यवधानों, जिसके कारण प्रायः राज्य स्तर पर महत्त्वपूर्ण शासन निर्णयों और विकास परियोजनाओं में विलंब होता है, में कमी आएगी।
- उदाहरण: वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों को MCC प्रतिबंधों के कारण PM-किसान और प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) जैसी नई योजनाओं के कार्यान्वयन में विलंब का सामना करना पड़ा। ये विलंब सेवाओं और जन कल्याण योजनाओं के समय पर कार्यान्वयन में बाधा बन सकती है।
सहकारी संघवाद के लिये चुनौतियाँ:
- सत्ता का केंद्रीकरण: एक साथ चुनाव कराने से राष्ट्रीय राजनीतिक आख्यान क्षेत्रीय मुद्दों पर हावी हो सकते हैं, क्योंकि राष्ट्रीय दल चुनावी चर्चा पर अधिक नियंत्रण कर सकते हैं, जिससे स्थानीय चिंताओं को दूर करने में राज्य सरकारों की स्वायत्तता कमज़ोर हो सकती है।
- एक साथ चुनाव कराने से राज्य स्तर पर राजनीतिक आवाज़ों की विविधता में कमी आ सकती है। उदाहरण के लिये, पूर्वोत्तर भारत जैसे क्षेत्रीय दलों वाले राज्यों को अपने गंभीर मुद्दों पर बल देने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, अगर चुनावी चर्चा में केंद्र सरकार का एजेंडा हावी हो जाता है।
- राज्य की स्वायत्तता के लिये चिंताएँ: लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को एक समान करने के लिये संवैधानिक संशोधन राज्य की स्वीकृति के बिना किये जा सकते हैं। हालाँकि, नगरपालिकाओं और पंचायतों जैसे स्थानीय शासन को प्रभावित करने वाले परिवर्तनों के लिये राज्य की सहमति की आवश्यकता होती है।
- उदाहरण: एक केंद्रीकृत चुनाव चक्र स्थानीय शासन में राज्य के प्रभाव को कमज़ोर कर सकता है, संविधान द्वारा दी गई स्वायत्तता को कम कर सकता है, विशेष रूप से अनुच्छेद 371 के तहत विशेष प्रावधान वाले राज्यों के लिये।
- संवैधानिक और तार्किक चुनौतियाँ: एक साथ चुनाव कराने के लिये महत्त्वपूर्ण संवैधानिक संशोधनों की आवश्यकता होगी।
- अनुच्छेद 83(2) और 172, जो लोकसभा व राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को रेखांकित करते हैं, पर पुनः विचार करने की आवश्यकता होगी। कार्यकाल के बीच में ही विधानसभाओं का विघटन हो जाने, समय से पहले भंग होने या विधानसभाओं के कार्यकाल को बढ़ा दिये जाने से निपटने में कई तरह की चुनौतियाँ आएंगी।
निष्कर्ष:
यद्यपि एक साथ चुनाव कराने से लागत में कमी एवं शासन दक्षता जैसे लाभ मिलते हैं, लेकिन सहकारी संघवाद के लिये चुनौतियाँ भी उत्पन्न होती हैं, जिसमें सत्ता का केंद्रीकरण और क्षेत्रीय मुद्दों को दरकिनार करना शामिल है। उच्च स्तरीय समिति, विधि आयोग और संसदीय स्थायी समिति की सिफारिशों में चरणबद्ध दृष्टिकोण एवं संवैधानिक संशोधनों की मांग की गई है। हालाँकि इसके फायदे हैं, लेकिन भारत के संघीय संरचना पर इसके दीर्घकालिक प्रभाव पर सावधानीपूर्वक विचार करने की भी आवश्यकता है।
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