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प्रश्न :
प्रश्न. भारत के स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारी आंदोलनों की भूमिका का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)
07 Apr, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- क्रांतिकारी आंदोलनों के बारे में संक्षेप में परिचय देते हुए भारत के स्वतंत्रता संग्राम की एक अलग धारा के रूप में उनके उद्भव पर प्रकाश डालिये।
- क्रांतिकारी आंदोलनों की भूमिका को विभिन्न पहलुओं (सकारात्मक योगदान, सीमाएँ) में विभाजित कीजिये।
- संतुलित दृष्टिकोण के साथ निष्कर्ष लिखिये।
परिचय: 20वीं सदी की शुरुआत में भारत में क्रांतिकारी आंदोलन ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक कट्टरपंथी प्रतिक्रिया के रूप में उभरे, जिसमें संवैधानिक तरीकों (उदारवादी पद्धति) से असंतुष्टि के बाद सशस्त्र प्रतिरोध को महत्त्व (खासकर वर्ष 1905 के बंगाल के विभाजन के बाद) दिया गया। ये आंदोलन उदारवादी और गांधीवादी दृष्टिकोण के समानांतर चले, जिससे राष्ट्रवादी विमर्श को आकार मिला।
मुख्य भाग:
क्रांतिकारी आंदोलन की भूमिका:
- वैचारिक जागृति: भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद के नेतृत्व में HSRA ने राष्ट्रवाद को समाजवाद के साथ संयोजित दिया। भगत सिंह के लेखन जैसे कि मैं नास्तिक क्यों हूँ ने आंदोलन की बौद्धिक गहराई को प्रभावित किया।
- "इंकलाब जिंदाबाद" का नारा स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय दोनों के लिये एक स्थायी आह्वान बन गया।
- वैश्विक पहुँच: गदर पार्टी और इंडियन इंडिपेंडेंस लीग जैसे कट्टरपंथी समूहों ने स्वतंत्रता संग्राम का अंतर्राष्ट्रीयकरण किया और विश्व भर में ब्रिटिश दमन पर प्रकाश डाला।
- सावरकर, मैडम कामा और श्यामजी कृष्ण वर्मा जैसे क्रांतिकारियों ने लंदन, पेरिस और बर्लिन में वैचारिक एवं सैन्य आधार बनाए।
- मनोवैज्ञानिक प्रभाव: काकोरी घटनाक्रम और असेंबली बम विस्फोट जैसी घटनाओं से ब्रिटिश सत्ता को चुनौती मिली।
- उनकी शहादत और अवज्ञा से विशेष रूप से राजनीतिक रूप से निष्क्रिय चरणों के दौरान व्यापक जनसमूह को एकजुट किया गया।
- गुप्त समितियों का उदय: वर्ष 1905 के बंगाल विभाजन के बाद अनुशीलन समिति और युगांतर जैसे आंदोलनों का उदय हुआ, जो सशस्त्र प्रतिरोध पर केंद्रित थे।
- मुकद्दमे और फाँसी (विशेष रूप से भगत सिंह का मामला) से राष्ट्रवादी चेतना तीव्र हो गई।
- विचारधारा की विरासत: कई क्रांतिकारियों ने मार्क्सवाद एवं साम्राज्यवाद-विरोध को अपनाया, जिससे स्वतंत्रता के बाद की राजनीतिक विचारधारा प्रभावित हुई।
क्रांतिकारी आंदोलन की सीमाएँ:
- जनाधार का अभाव: क्रांतिकारी आंदोलन शहर-केंद्रित रहे, HSRA जैसे समूह लाहौर एवं दिल्ली जैसे शहरों में सक्रिय रहे, जो ग्रामीण किसानों और श्रमिकों को संगठित करने में विफल रहे।
- औपनिवेशिक दमन: ब्रिटिशों ने भारत रक्षा अधिनियम (1915) एवं राॅलेट अधिनियम (1919) जैसे दमनकारी कानूनों का उपयोग करके क्रांतिकारी नेटवर्क को नष्ट कर दिया, जैसा कि काकोरी केस (1925) एवं गदर विद्रोह में देखा गया, जिसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियाँ और फाँसी होने के साथ आंदोलनों का दमन हुआ।
- वैचारिक विखंडन: एकता की कमी के कारण संघर्ष का प्रभाव कमज़ोर हो गया क्योंकि गदर पार्टी के समाजवादी उद्देश्य बंगाल के क्रांतिकारियों के राष्ट्रवादी लक्ष्य के अनुरूप न होने से रणनीतिक असंगति पैदा हुई।
निष्कर्ष: हालाँकि क्रांतिकारी आंदोलनों से प्रत्यक्ष तौर पर स्वतंत्रता प्राप्त नहीं हुई, लेकिन उन्होंने जन सामान्य को प्रेरित करके, औपनिवेशिक सत्ता को चुनौती देकर एवं स्वतंत्रता आंदोलन को साहस तथा वैचारिक समृद्धि से भरकर उत्प्रेरक के रूप में भूमिका निभाई। उनकी विरासत भारत की सामूहिक स्मृति में बलिदान के प्रतीक के रूप में बनी हुई है।
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