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प्रश्न :
प्रश्न . शहरीकरण केवल जनांकिक बदलाव नहीं है, बल्कि भारत में सामाजिक संरचनाओं और रिश्तों को नया आयाम देने वाली एक परिवर्तनकारी प्रक्रिया है। चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
07 Apr, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भारतीय समाजउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में शहरीकरण का संक्षिप्त परिचय दीजिए तथा इसकी भूमिका को केवल जनसांख्यिकीय बदलाव से परे के रूप में संदर्भित कीजिये।
- आर्थिक विकास, रोज़गार सृजन एवं बेहतर बुनियादी ढाँचे जैसे इसके योगदानों पर चर्चा करते हुए होने वाले सामाजिक परिवर्तनों पर प्रकाश डालिये एवं संबंधित सीमाओं का समाधान बताइये।
- शहरीकरण के लाभों एवं चुनौतियों को स्वीकार करते हुए उचित निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
भारत में शहरीकरण केवल ग्रामीण इलाकों से शहरी इलाकों में लोगों के भौतिक प्रवास से कहीं अधिक है, यह बुनियादी जनसांख्यिकीय बदलाव का परिचायक है। नीति आयोग के अनुमानों के अनुसार वर्ष 2036 तक भारत की शहरी आबादी 40% तक पहुँचने की उम्मीद है। इस बदलाव से जनसंख्या संरचना, जीवनशैली पैटर्न एवं सामाजिक-आर्थिक गतिशीलता को नया आकार मिल रहा है।
मुख्य भाग:
शहरीकरण के परिवर्तनकारी पहलू:
- आर्थिक गतिशीलता: शहरों में रोज़गार के अवसरों में वृद्धि जारी है, जैसा कि आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) 2023-24 में दर्शाया गया है, जो शहरी बेरोज़गारी में 5.1% की गिरावट का परिचायक है जबकि ग्रामीण बेरोज़गारी में 2.5% की मामूली वृद्धि देखी गई है।
- उदाहरण के लिये, बेंगलुरु के आईटी क्षेत्र से बड़े पैमाने पर प्रवास संभव हुआ है और एक तकनीक-प्रेमी मध्यम वर्ग का विकास हुआ है।
- परिवार एवं संबंध: पारंपरिक संयुक्त परिवारों का स्थान एकल परिवारों ने ले लिया है।
- NFHS-5 के आँकड़ों के अनुसार, भारत में एकल परिवारों की हिस्सेदारी वर्ष 2016 के 56% से बढ़कर वर्ष 2019-21 में 58.2% हो गई।
- जाति एवं सामुदायिक संरचनाएँ: शहरी जीवन से कठोर जातिगत सीमाओं में कमी आती है हालाँकि आवास और रोज़गार तक पहुँच में यह सूक्ष्म रूप से दिखाई देती हैं।
- उदाहरणार्थ, शहरी IT केंद्रों और सेवा उद्योगों में विविध कार्य वातावरण से अक्सर जाति-आधारित संबद्धता की तुलना में योग्यता-आधारित सहभागिता को बढ़ावा मिलता है।
- लैंगिक भूमिकाएँ: शहरी महिला साक्षरता 82.7% है, जो ग्रामीण क्षेत्रों के 65% से अधिक है तथा स्वास्थ्य सेवा और IT जैसे क्षेत्रों में इसकी भागीदारी बढ़ रही है।
- सामाजिक रूप से शहरी महिलाएँ कॅरियर, विवाह एवं प्रजनन संबंधी विकल्पों में स्वायत्तता का अनुभव कर पाती हैं, जिसका उदाहरण कामकाजी माताएँ और महिलाओं के नेतृत्व वाले स्टार्टअप हैं।
शहरीकरण से संबंधित चुनौतियाँ:
- मलिन बस्तियों में वृद्धि : भारत में 65 मिलियन से अधिक लोग झुग्गी बस्तियों में रहते हैं (जनगणना 2011)। इससे निम्न स्वच्छता और अपर्याप्त आवास जैसी समस्याएँ बनी हुई हैं।
- PMAY (शहरी) जैसी योजनाओं के बावजूद, भूमि अधिग्रहण में देरी और सीमित लाभार्थी पहचान जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। G20 के दौरान दिल्ली की झुग्गियों को ध्वस्त करना, शहरी गरीबों के अधिकारों की भेद्यता को रेखांकित करता है।
- अनौपचारिक रोज़गार: लगभग 85% कार्यबल अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत है, जिसका सकल घरेलू उत्पाद में आधे से अधिक का योगदान है तथा निर्माण, घरेलू कार्य एवं सड़क विक्रय जैसे क्षेत्र अनियमित बने हुए हैं जिसके कारण नौकरी असुरक्षित होने के साथ औपचारिक लाभों तक पहुँच सीमित है।
- प्रवासियों का हाशिये पर होना: आंतरिक प्रवासियों (विशेष रूप से मौसमी प्रवासियों) को शहरी नियोजन से बाहर रखा जाता है। वर्ष 2020 के कोविड-19 लॉकडाउन से कल्याणकारी प्रणालियों में उनकी सीमित भागीदारी पर प्रकाश पड़ा है।
- सामाजिक अलगाव और मानसिक स्वास्थ्य: शहर की गुमनामी और प्रतिस्पर्द्धी जीवनशैली से मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को बढ़ावा मिलता है। WHO के अनुसार, भारत में लगभग 60 से 70 मिलियन लोग सामान्य एवं गंभीर मानसिक स्वास्थ्य विकारों से पीड़ित हैं।
निष्कर्ष
भारत के शहरीकरण में अपार परिवर्तनकारी क्षमता है। स्मार्ट सिटी मिशन के दिशा-निर्देश नागरिक-केंद्रित विकास, एकीकृत सेवाओं और स्थिरता पर केंद्रित हैं जो SDG 11 से संबंधित हैं जिसका उद्देश्य शहरों को समावेशी, सुरक्षित, अनुकूल और धारणीय बनाना है।
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