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प्रश्न :
प्रश्न 1. आत्मा एक उपवन और युद्धक्षेत्र दोनों है।
05 Apr, 2025 निबंध लेखन निबंध
प्रश्न 2. शक्ति प्रतिरोध में नहीं, बल्कि सहिष्णुता में निहित होती है।उत्तर :
1.आत्मा एक उपवन और युद्ध-क्षेत्र दोनों है।
- अपने निबंध को बेहतर बनाने के लिये उद्धरण:
- कार्ल युंग: "जो बाहर देखता है, वह स्वप्न देखता है; जो भीतर (आत्म) झाँकता है, वह जागता है।"
- महात्मा गांधी: "स्वयं को खोजने का सबसे श्रेष्ठ उपाय है— स्वयं को दूसरों की सेवा में खो देना।"
- मार्कस ऑरेलियस: "तुम्हारा नियंत्रण अपने मन (आत्म) पर है, बाह्य घटनाओं पर नहीं। इस सत्य को जानकर ही तुम सच्ची शक्ति प्राप्त कर सकते हो।"
- दार्शनिक पक्ष:
- स्व (आत्म/आत्मा) की द्वैत प्रकृति
- व्यक्ति के भीतर एक साथ दो स्तरों पर अस्तित्व होता है —
- आत्म एक उपवन (आश्रयस्वरूप) के रूप में: यह आत्म-चिंतन, पहचान, मूल्यबोध, नैतिक दिशा और आत्मिक उपचार का केंद्र होती है।
- युद्धक्षेत्र के रूप में आत्म: यह आत्मा के भीतर इच्छाओं व कर्त्तव्यों, भय व साहस, अहं और विनम्रता, मूल्यों व प्रलोभनों के बीच अंतर्द्वंद को दर्शाती है।
- मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण
- कार्ल युंग का 'छाया स्व/आत्म' सिद्धांत: युंग के अनुसार, स्व/आत्मा के वे अज्ञात और दमित पक्ष जो अचेतन पहलू होते हैं, यदि स्वीकार न किये जाएँ तो आंतरिक द्वंद्व का कारण बनते हैं। लेकिन यदि उन्हें समझकर एकीकृत किया जाए, तो व्यक्तित्व की संपूर्णता प्राप्त की जा सकती है।
- आध्यात्मिक और नैतिक व्याख्याएँ
- भारतीय दर्शन में आत्मा (आत्मन्): भारतीय चिंतन में आत्मा शांत, चिरस्थायी और दिव्य मानी जाती है। किंतु वह माया (भ्रम) और अविद्या (अज्ञान) से परे तभी पहुँच सकती है जब व्यक्ति आंतरिक संघर्ष से गुज़रे तथा आत्मबोध प्राप्त करे।
- भगवद् गीता का संदर्भ: कुरुक्षेत्र का युद्ध केवल बाह्य संग्राम नहीं है, बल्कि अर्जुन के अंतर्मन में चल रहे नैतिक द्वंद्व का प्रतीक है। यह स्वयं के भीतर चल रहे धर्म और अधर्म, कर्त्तव्य और मोह के संघर्ष को दर्शाता है।
- स्व (आत्म/आत्मा) की द्वैत प्रकृति
- संबंधित ऐतिहासिक और समकालीन विश्व उदाहरण:
- इतिहास में महान नेताओं के आंतरिक संघर्ष
- महात्मा गांधी: हिंसा बनाम अहिंसा, सत्य बनाम राजनीतिक आवश्यकता के साथ उनका निरंतर संघर्ष, स्वयं के भीतर नैतिक संघर्ष का उदाहरण है। उनका जीवन इस बात का उदाहरण है कि आत्मा में चलने वाला नैतिक द्वंद्व कैसे व्यक्ति की सोच और कार्यों को दिशा देता है।
- अब्राहम लिंकन: अमेरिका के इस राष्ट्रपति को संविधान के प्रति निष्ठा और दासप्रथा के विरुद्ध नैतिक कर्त्तव्य के बीच गंभीर द्वंद्व का सामना करना पड़ा। उनके निर्णय उनके अंतरात्मा के युद्धक्षेत्र का ही परिणाम हैं।
- संविधान और राष्ट्रीय स्व
- भारतीय संविधान की प्रस्तावना देश की आदर्शवादी आत्मा का प्रतिनिधित्व करती है — जो स्वतंत्रता, समानता, न्याय और बंधुत्व जैसे मूल्यों का ‘अभयारण्य’ अर्थात् आश्रय है। लेकिन व्यावहारिक राजनीति में ये मूल्य प्रायः संघर्ष का केंद्र बन जाते हैं, जहाँ सिद्धांत और सत्ता में संतुलन स्थापित करना चुनौतीपूर्ण होता है।
- नागरिक अधिकार आंदोलनों में आत्मिक संघर्ष:
- मार्टिन लूथर किंग जूनियर और नेल्सन मंडेला ने व्यक्तिगत पीड़ा को नैतिक स्पष्टता का आधार बनाया। उन्होंने आंतरिक क्रोध और अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करते हुए अपनी आत्मा को एक नैतिक आश्रय में रूपांतरित किया।
- समकालीन विश्व दुविधा
- मानसिक स्वास्थ्य और भावनात्मक द्वंद्व: आज का व्यक्ति मानसिक तनाव, अवसाद और पहचान के संकट से जूझ रहा है। यह इस बात का संकेत है कि आधुनिक जीवन का संघर्ष अब बाह्य से अधिक आंतरिक हो गया है, जहाँ मन स्वयं एक युद्धभूमि बन चुका है।
- सोशल मीडिया और दोहरा व्यक्तित्व
- डिजिटल युग में ऑनलाइन पहचान वास्तविक आत्म से भिन्न होती है, जिससे आंतरिक संघर्ष और असंतुलन उत्पन्न होता है। स्वीकृति और मान्यता की होड़ व्यक्ति को आत्म-संदेह व चिंता की स्थिति में पहुँचा देती है।
- सार्वजनिक सेवा में नैतिक दुविधाएँ
- प्रशासनिक अधिकारी एवं जननेता प्रायः व्यक्तिगत अंतरात्मा और संस्थागत आदेशों के बीच दुविधा का अनुभव करते हैं। ऐसे में उनका ‘स्व’ नैतिक मूल्यों का युद्धक्षेत्र बन जाता है।
- व्यक्तिगत मनोविज्ञान:
- आश्रय के रूप में आत्मा: ध्यान, आत्मचिंतन, अध्यात्म और लेखन जैसे माध्यमों से व्यक्ति आंतरिक स्थिरता और शांति की खोज़ करता है।
- घर्ष क्षेत्र के रूप में आत्मा: दबी हुई भावनाएँ, अपराधबोध, आघात और वैचारिक भ्रम व्यक्ति के भीतर तनाव एवं द्वंद्व उत्पन्न करते हैं, जिन्हें सुलझाना आवश्यक होता है।
- इतिहास में महान नेताओं के आंतरिक संघर्ष
निष्कर्षतः, जब व्यक्ति अपने आंतरिक संघर्षों पर विजय प्राप्त करता है, तो वही आत्मा जो पहले युद्धक्षेत्र थी, एक शांति-संकुल बन जाती है। यहीं से आत्मिक प्रबलता और नैतिक स्पष्टता का जन्म होता है, जो न केवल व्यक्ति को संबल देती है, बल्कि समाज को भी दिशा प्रदान करती है।
2. शक्ति प्रतिरोध में नहीं, बल्कि सहिष्णुता में निहित होती है।
- अपने निबंध को समृद्ध करने के लिये उद्धरण:
- नेल्सन मंडेला: “मेरी सफलता से मेरा मूल्यांकन मत करो, यह देखो कि मैं कितनी बार गिरा और फिर उठ खड़ा हुआ।”
- विक्टर फ्रेंकल: “जब हम किसी स्थिति को बदलने में असमर्थ हो जाते हैं, तब हमें स्वयं को बदलने की चुनौती मिलती है।”
- जापानी कहावत: “सात बार गिरो, लेकिन आठवीं बार उठो।”
- महात्मा गांधी: “शक्ति शारीरिक क्षमता से नहीं आती, यह अडिग इच्छाशक्ति से उत्पन्न होती है।”
- सैद्धांतिक आयाम:
- प्रतिरोध बनाम सहिष्णुता/समुत्थानशक्ति
- प्रतिरोध से तात्पर्य विरोध या अवज्ञा से है, जो प्रायः निरंतर दबाव के कारण लंबे समय तक टिक नहीं पाता।
- इसके विपरीत, सहिष्णुता/समुत्थानशक्ति वह क्षमता है जिसके माध्यम से व्यक्ति या समाज आघात को सहन करता है, परिस्थितियों के अनुसार ढलता है और पहले की अपेक्षा अधिक दृढ़ता से उभरता है। समुत्थानशक्ति स्टोइक दर्शन के साथ संरेखित होती है, जिसमें बाह्य घटनाओं की अपेक्षा आंतरिक नियंत्रण पर ज़ोर दिया जाता है।
- सकारात्मक मनोविज्ञान के अनुसार सहिष्णुता को मानसिक शक्ति का ऐसा भंडार माना गया है जिसे व्यक्ति संकट या आघात के समय सक्रिय करता है।
- न्यूरोप्लास्टिसिटी से तात्पर्य मस्तिष्क की वह क्षमता से है, जिससे वह स्वयं को पुनः संगठित करता है — यह जैविक स्तर पर सहिष्णुता/समुत्थानशक्ति का परिचायक है, न कि केवल प्रतिरोध मात्र का।
- नैतिक पक्ष: जब व्यक्ति दबाव, संकट या दुविधा के समय भी अपने मूल्यों को बनाए रखता है, तो यह विद्रोह नहीं बल्कि नैतिक सहिष्णुता/समुत्थानशक्ति कहलाता है। यह मौन शक्ति, स्थायित्व और दीर्घकालिक प्रभावशीलता को दर्शाता है।
- प्रतिरोध बनाम सहिष्णुता/समुत्थानशक्ति
- ऐतिहासिक एवं समकालीन उदाहरण:
- भारत का स्वतंत्रता संग्राम
- गांधीजी के सत्याग्रह का अहिंसक प्रतिरोध, हिंसक विरोध से अधिक सहिष्णु व दृढ़ था, जिसमें जेल यात्राएँ, दमन, प्रतिबंध—इन सबके बावजूद आंदोलन अहिंसात्मक और धैर्यपूर्ण बना रहा।
- दांडी मार्च (वर्ष 1930): यह कोई शस्त्रयुक्त संघर्ष नहीं था, बल्कि प्रतीकात्मक सविनय अवज्ञा थी, जिसमें धैर्य और नैतिक दृढ़ता की झलक मिलती है।
- दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के बाद का पुनर्निर्माण:
- ट्रुथ एंड रिकॉंन्सीलियेशन कमीशन (TRC): प्रतिशोध के साथ प्रतिरोध करने के स्थान पर, दक्षिण अफ्रीका ने पुनर्स्थापनात्मक न्याय को अपनाया— यह राष्ट्र निर्माण में समुत्थानशक्ति का उदाहरण है।
- जापान का युद्धोत्तर पुनर्निर्माण:
- द्वितीय विश्व युद्ध के विनाश के बाद जापान ने असाधारण आर्थिक और तकनीकी समुत्थानशक्ति प्रदर्शित किया तथा वैश्विक औद्योगिक शक्ति के रूप में स्थापित हुआ। यह सतत् और दूरदर्शी अनुकूलन का उदाहरण है।
- प्राकृतिक आपदाएँ और शहरी समुत्थानशीलन
- केरल बाढ़ (वर्ष 2018): समुदाय द्वारा संचालित आपदा-मोचन और द्रुत पुनर्निर्माण प्रयासों ने प्रकृति के प्रति प्रतिक्रियात्मक प्रतिरोध की तुलना में अधिक समुत्थानशीलन प्रदर्शित किया।
- समकालीन विश्व उदाहरण:
- कोविड-19 महामारी के दौरान वैश्विक स्तर पर जन-स्वास्थ्य, शिक्षा और अर्थव्यवस्था में आए संकटों के बीच समुत्थानशक्ति ही पुनर्निर्माण की आधारशिला बनी।
- तटीय शहरों द्वारा जलवायु अनुकूल अवसंरचना का निर्माण यह दर्शाता है कि समुत्थानशीलन ही भविष्य का मार्ग है, मात्र प्रतिरोध पर्याप्त नहीं।
- अफगानिस्तान में महिला शिक्षा समर्थन: जहाँ प्रत्यक्ष विरोध संभव नहीं, वहाँ अफगानिस्तान में कुछ महिलाएँ अब भी भूमिगत रूप से शिक्षण का कार्य कर रही हैं। यह प्रत्यक्ष प्रतिरोध नहीं, बल्कि एक शांत और प्रभावशाली समुत्थानशक्ति है, जो धीरे-धीरे सामाजिक परिवर्तन की बुनियाद तैयार कर रही है। यह दर्शाता है कि स्थायी परिवर्तन केवल टकराव से नहीं, बल्कि दृढ़ निश्चय और धैर्यपूर्ण प्रयासों से आता है।
- भारत का स्वतंत्रता संग्राम
- व्यक्तिगत मनोविज्ञान:
- व्यक्तियों में लचीलापन: समुत्थानशक्ति उन व्यक्तियों में देखा जाती है जो जीवन की कठिनतम परिस्थितियों— जैसे कि कैंसर, दुर्व्यवहार या गंभीर आघात के बावजूद फिर से आत्मविश्वास और उद्देश्य के साथ आगे बढ़ते हैं।
- ग्रोथ माइंडसेट (कैरोल ड्वेक): यह दृष्टिकोण दर्शाता है कि असफलताओं से सीखकर आगे बढ़ने की मानसिकता ही दीर्घकालिक सफलता की कुंजी है। कठिनाइयों का विरोध करने के बजाय, उनसे सीखना और स्वयं को परिवर्तित करना समुत्थानशक्ति की पहचान है।
- भावनात्मक लचीलापन: नौकरी छूटना, व्यक्तिगत संबंधों का टूटना या जीवन में असफलताएँ— इन सभी स्थितियों में भी जो व्यक्ति अपने मूल्यों एवं लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्ध रहता है, वह भावनात्मक रूप से समुत्थानशील कहलाता है। यही आत्मबल भविष्य निर्माण की नींव है।
- रूपकात्मक प्रतिबिंब:
- बाँस का पेड़ बनाम ओक: बाँस का पेड़ झुकता है लेकिन टूटता नहीं है— यह लचीलापन है। लेकिन ओक का पेड़ कठोर होकर प्रतिरोध करता है और अत्यधिक दबाव में टूट सकता है — यह प्रतिरोध की सीमाएँ दर्शाता है।
- जल का प्रतीक: जल बहता है, मार्ग खोज़ता है, चट्टानों को भी धीरे-धीरे काटता है। इसकी शक्ति प्रतिरोध में नहीं, बल्कि निरंतरता और समुत्थानशक्ति में है। जल का यह गुण बताता है कि नरम होते हुए भी शक्ति किस प्रकार स्थायी और परिवर्तनकारी हो सकती है।
- निष्कर्षतः, सहिष्णुता/समुत्थानशक्ति/लचीलापन केवल प्रतिक्रिया नहीं है, बल्कि एक मूल्य, मनोवृत्ति और रणनीति है। प्रतिरोध क्षणिक हो सकता है, लेकिन सहिष्णुता व्यक्ति और समाज को दीर्घकालीन स्थायित्व, नैतिक स्पष्टता व आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करती है।
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