- फ़िल्टर करें :
- सैद्धांतिक प्रश्न
- केस स्टडीज़
-
प्रश्न :
एक युवा और ईमानदार IAS अधिकारी स्नेहा वर्मा, महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त ज़िले में ज़िला ग्रामीण विकास एजेंसी (DRDA) की CEO के रूप में कार्यरत हैं। वह जल शक्ति अभियान के तहत एक महत्त्वपूर्ण ₹50 करोड़ की जल संरक्षण परियोजना के कार्यान्वयन की देखरेख कर रही हैं, जिसका उद्देश्य फसल की विफलता और बड़े पैमाने पर पलायन को रोकना है। निविदाओं को अंतिम रूप देते समय, सबसे कम बोली लगाने वाला— XYZ प्राइवेट लिमिटेड, मज़बूत साख के साथ उभरता है। हालाँकि, स्नेहा को सहकर्मियों द्वारा अनौपचारिक रूप से फर्म के दूसरे राज्य में घटिया काम और रिश्वतखोरी में कथित संलिप्तता के बारे में चेतावनी दी जाती है, जबकि कोई औपचारिक दोषसिद्धि या ब्लैकलिस्ट स्थिति नहीं है।
स्थिति तब और बिगड़ जाती है जब एक स्थानीय विधायक स्नेहा से मिलने आता है तथा उसे सरस्वती इंफ्रा को ठेका देने के लिये दबाव डालता है, उसे तत्काल कार्रवाई करने का हवाला देता है और उसके आगामी तबादले के परिणामों का संकेत देता है। अगली सुबह, उसे एक अज्ञात ईमेल प्राप्त होता है जिसमें फर्म द्वारा पिछली परियोजनाओं में गुणवत्ता रिपोर्ट में हेरफेर करने के कथित साक्ष्य होते हैं। ग्रामीणों को मानसून-पूर्व परियोजना के निष्पादन की प्रतीक्षा है जिसमें स्नेहा ईमानदारी सुनिश्चित करने और विलंब से बचने के बीच उलझी हुई है जो आजीविका को नुकसान पहुँचा सकती है तथा राजनीतिक प्रतिक्रिया को आमंत्रित कर सकती है।
प्रश्न:
1. मामले में शामिल नैतिक मुद्दों का अभिनिर्धारण कर और उन पर चर्चा कीजिये।
2. स्नेहा के पास क्या विकल्प उपलब्ध हैं? उनमें से प्रत्येक का मूल्यांकन कीजिये। स्नेहा के लिये सबसे उपयुक्त कार्यवाही क्या होगी?3.दीर्घकाल में, सार्वजनिक संस्थाओं को विकासात्मक आवश्यकताओं की तात्कालिकता को संतुलित करते हुए सार्वजनिक खरीद में नैतिक अखंडता और पारदर्शिता किस प्रकार सुनिश्चित की जानी चाहिये?
04 Apr, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़उत्तर :
परिचय:
युवा और ईमानदार IAS अधिकारी स्नेहा को एक आवश्यक ग्रामीण विकास परियोजना के लिये निविदा प्रक्रिया में कुछ गड़बड़ियों की अज्ञात शिकायतें मिली हैं। अज्ञात आरोपों में कहा गया है कि जिस कंपनी को टेंडर मिलने वाला है— XYZ प्राइवेट लिमिटेड, उसके पक्ष में गलत तरीके से पक्षपात किया जा रहा है। साथ ही, स्थानीय विधायक (MLA) स्नेहा पर राजनीतिक दबाव बना रहा है कि इस टेंडर को वह त्वरित स्वीकृति दें।
मुख्य भाग:
(a) मामले में शामिल नैतिक मुद्दों का अभिनिर्धारण कर और उन पर चर्चा कीजिये।
- राजनीतिक हस्तक्षेप: निविदा को प्रभावित करने में विधायक की संलिप्तता प्रशासनिक निष्पक्षता और तटस्थता को कमज़ोर करती है।
- इस तरह का हस्तक्षेप सुशासन के लिये खतरा बनता है तथा निष्पक्ष प्रशासनिक कार्यप्रणाली को विकृत करता है।
- यह राजनीति को प्रशासनिक निर्णय लेने से अलग करने वाले स्थापित मानदंडों का भी उल्लंघन करता है।
- पारदर्शिता और जवाबदेही: गुणवत्ता रिपोर्ट में हेरफेर से निविदा आवंटन में पारदर्शिता के बारे में गंभीर नैतिक चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
- इससे सार्वजनिक जवाबदेही कमज़ोर होती है, जिसके परिणामस्वरूप परियोजना के परिणाम निम्नतर हो सकते हैं।
- सार्वजनिक प्रक्रियाओं में विश्वास बनाए रखने के लिये पारदर्शिता सुनिश्चित करना आवश्यक है।
- लोक सेवा में ईमानदारी: अनौपचारिक आरोपों को नजरअंदाज़ करने से स्नेहा की ईमानदारी पर असर पड़ सकता है तथा अनैतिक निर्णय लेने का जोखिम हो सकता है।
- ईमानदारी बनाए रखने के लिये चिंताओं का तुरंत और निष्पक्ष तरीके से समाधान करना आवश्यक है। ऐसा न करने पर प्रशासनिक प्रक्रियाओं में जनता का भरोसा समाप्त हो सकता है।
- लोक हित और कल्याण: उचित जाँच के बिना अनुबंध देने से लोक कल्याण और प्रभावी सेवा वितरण खतरे में पड़ जाता है।
- ग्रामीण आजीविका के लिये इस परियोजना का महत्त्व गुणवत्तापूर्ण परिणाम सुनिश्चित करने की दिशा में नैतिक दायित्वों को बढ़ाता है।
- उचित सावधानी की उपेक्षा से कमज़ोर समुदायों को नुकसान पहुँचता है।
- व्यावसायिक स्वायत्तता: स्नेहा के स्थानांतरण से संबंधित खतरे उसकी निष्पक्ष, स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता को चुनौती देते हैं।
- इस तरह का दबाव पेशेवर स्वायत्तता को खतरे में डालता है, जो लोक सेवकों के लिये एक आवश्यक नैतिक सिद्धांत है।
- स्वायत्तता बनाए रखने से निर्णय लेने की अखंडता की रक्षा होती है और नैतिक शासन कायम रहता है।
(b) स्नेहा के पास क्या विकल्प उपलब्ध हैं? उनमें से प्रत्येक का मूल्यांकन कीजिये। स्नेहा के लिये सबसे उपयुक्त कार्यवाही क्या होगी?
विकल्प 1: आरोपों को नज़रअंदाज़ करना, टेंडर को त्वरित स्वीकृति देना
- लाभ: परियोजना का तत्काल क्रियान्वयन; राजनीतिक दबाव को संतुष्ट करना; व्यक्तिगत कैरियर हितों को सुरक्षित करना।
- विपक्ष: परियोजना की गुणवत्ता को खतरा; निष्ठा से समझौता; जनता का विश्वास कमज़ोर होना; सम्भावित कानूनी दायित्व।
विकल्प 2: आरोपों पर रोक लगाकर पूरी जाँच का आदेश देना
- लाभ: पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित होती है; निष्ठा कायम रहती है; भविष्य में कानूनी या नैतिक मुद्दों में कमी आती है।
- विपक्ष: परियोजना में विलंब, ग्रामीण लाभार्थियों पर असर; व्यक्तिगत प्रतिक्रिया या दंडात्मक हस्तांतरण का खतरा।
विकल्प 3: मार्गदर्शन के लिये वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों से परामर्श करना
- लाभ: संस्थागत समर्थन प्राप्त होता है; व्यक्तिगत जोखिम कम होता है; वैधता और पारदर्शिता बढ़ती है।
- विपक्ष: निर्णय लेने में विलंब हो सकता है; राजनीतिक तनाव या प्रशासनिक प्रतिरोध बढ़ सकता है।
विकल्प 4: सशर्त पुरस्कार (निविदा पुरस्कार लेकिन समानांतर जाँच शुरू करना)
- लाभ: परियोजना की तात्कालिक आवश्यकताओं और अखंडता संबंधी चिंताओं के बीच संतुलन बनाता है; विलंब को कम करता है; लचीलापन बनाए रखता है।
- विपक्ष: यदि आरोप प्रमाणित हो जाएँ तो आंशिक समझौते की संभावना; फिर भी राजनीतिक प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ सकता है।
सबसे उपयुक्त कार्यवाही (विकल्प 3 और 4 का संयोजन):
- स्नेहा को अपनी चिंताओं को पारदर्शी रूप से प्रलेखित करने तथा संस्थागत समर्थन प्राप्त करने के लिये व्यावहारिक रूप से वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों (विकल्प 3) से परामर्श करना चाहिये।
- इसके साथ ही, उसे निविदा सशर्त प्रदान करनी चाहिये (विकल्प 4)— जिसमें स्पष्ट रूप से यह शर्त रखी जाए कि अनुबंध की निरंतरता आरोपों की शीघ्र और निष्पक्ष जाँच पर निर्भर करती है।
- यह दृष्टिकोण व्यावहारिक रूप से ईमानदारी, जवाबदेही समय पर परियोजना कार्यान्वयन और व्यक्तिगत कैरियर सुरक्षा के बीच संतुलन स्थापित करता है।
(c) दीर्घकाल में, सार्वजनिक संस्थाओं को विकासात्मक आवश्यकताओं की तात्कालिकता को संतुलित करते हुए सार्वजनिक खरीद में नैतिक अखंडता और पारदर्शिता किस प्रकार सुनिश्चित की जानी चाहिये?
- खरीद का सुदृढ़ डिजिटलीकरण: सार्वजनिक संस्थाओं को पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये ई-टेंडरिंग प्लेटफॉर्म और ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए खरीद प्रक्रियाओं को पूरी तरह से डिजिटल बनाना होगा।
- इससे मानवीय हस्तक्षेप और भ्रष्टाचार न्यूनतम हो जाता है तथा निष्पक्षता या जवाबदेही से समझौता किये बिना खरीद की समयसीमा में तेज़ी आती है।
- सुदृढ़ निरीक्षण तंत्र: स्वतंत्र निरीक्षण निकायों या भ्रष्टाचार विरोधी प्रकोष्ठों को खरीद प्रक्रियाओं की नियमित निगरानी करनी चाहिये।
- आंतरिक और बाह्य दोनों प्रकार के सख्त ऑडिट मानक होने चाहिये, जिससे बिना किसी महत्त्वपूर्ण विलंब के अनैतिक प्रथाओं का शीघ्र पता लगाने तथा उन्हें रोकने में मदद मिल सके।
- पारदर्शी और समय पर संचार: सभी खरीद-संबंधी जानकारी का सक्रिय प्रकटीकरण सुनिश्चित किया जाना चाहिये, जिसमें मानदंड, मूल्यांकन पद्धतियाँ और अनुबंध का आधार शामिल हैं, यह जनता का विश्वास बढ़ाता है।
- इससे गलत सूचना भी कम होती है, राजनीतिक हस्तक्षेप घटता है तथा उत्तरदायित्व स्पष्ट होने से निर्णय लेने में तेज़ी आती है।
- क्षमता निर्माण और नैतिक प्रशिक्षण: लोक सेवा अधिकारियों को नैतिक खरीद प्रथाओं, प्रक्रियागत निष्पक्षता और अखंडता में नियमित रूप से प्रशिक्षण देने से संस्थाओं के भीतर नैतिक संस्कृति को बढ़ावा मिलता है।
- क्षमता निर्माण से यह सुनिश्चित होता है कि अधिकारी कार्यकुशलता से समझौता किये बिना नैतिक रूप से अत्यावश्यक विकास परियोजनाओं का प्रबंधन करने में सक्षम हों।
- संस्थागत शिकायत एवं निवारण तंत्र: प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने से हितधारकों को अपनी चिंताओं को तेज़ी से उठाने की सुविधा मिलती है, जिससे त्वरित कार्रवाई संभव हो पाती है।
- कुशल और पारदर्शी निवारण प्रणालियाँ यह सुनिश्चित करती हैं कि समय-संवेदनशील विकासात्मक दबावों के तहत भी अखंडता बरकरार रखी जाए।
निष्कर्ष:
स्नेहा को व्यावहारिक रूप से कार्य करना चाहिये, वरिष्ठ अधिकारियों से परामर्श करके नैतिक ईमानदारी के साथ परियोजना की तात्कालिकता को संतुलित करना चाहिये और जाँच लंबित रहने तक निविदा को सशर्त रूप से स्वीकृति प्रदान करना चाहिये। पुनरावृत्ति को रोकने के लिये डिजिटलीकरण, पारदर्शिता और निरीक्षण तंत्र जैसे दीर्घकालिक समाधान महत्त्वपूर्ण हैं। अंततः, नैतिक शासन के माध्यम से जनता का विश्वास बनाए रखना सर्वोपरि है।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Print - राजनीतिक हस्तक्षेप: निविदा को प्रभावित करने में विधायक की संलिप्तता प्रशासनिक निष्पक्षता और तटस्थता को कमज़ोर करती है।