प्रश्न. समकालीन शासन और प्रशासन में गांधीवादी नैतिकता की प्रासंगिकता पर चर्चा कीजिये। उपयुक्त उदाहरणों के साथ स्पष्ट कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- गांधीवादी नैतिकता के बारे में जानकारी के साथ उत्तर प्रस्तुत दीजिये।
- गांधीवादी नैतिकता के मूल सिद्धांत और उनकी समकालीन प्रासंगिकता बताइये।
- समकालीन चुनौतियों में प्रासंगिकता पर प्रकाश डालिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
महात्मा गांधी का नैतिक दर्शन, जो सत्य, अहिंसा, ट्रस्टीशिप, आत्म-अनुशासन और दूसरों की सेवा पर आधारित है, शासन एवं लोक प्रशासन के लिये एक नैतिक दिशा-निर्देश के रूप में काम करता है।
मुख्य भाग:
गांधीवादी नैतिकता के मूल सिद्धांत और उनकी समकालीन प्रासंगिकता
- सत्य – पारदर्शी शासन की नींव
- गांधीजी का मानना था कि सत्य को लोक-प्रशासन का मार्गदर्शन करना चाहिये। शासन में, इसका अर्थ पारदर्शिता, ईमानदारी और निष्ठा है।
- उदाहरण: RTI अधिनियम, 2005 नागरिकों को सरकारी कार्यप्रणाली के पीछे की सच्चाई से अवगत कराता है तथा पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देता है।
- अहिंसा – सद्भाव और संघर्ष समाधान को बढ़ावा देना
- अहिंसा केवल शारीरिक अहिंसा नहीं है बल्कि सम्मान, सहिष्णुता एवं शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व भी है।
- उदाहरण: सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने वाली पहल, जैसे ऑपरेशन सद्भावना और समन्वय के माध्यम से संघर्ष समाधान, गांधीवादी आदर्शों को प्रतिबिंबित करते हैं।
- सर्वोदय (सभी का कल्याण) और ट्रस्टीशिप- समावेशी विकास
- गांधीजी की सर्वोदय की अवधारणा सबसे कमज़ोर लोगों के उत्थान का आह्वान करती है।
- उदाहरण: अंत्योदय अन्न योजना, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना और आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम जैसी सरकारी योजनाएँ समाज के सबसे वंचित वर्गों को लक्षित करके इस लोकाचार को प्रतिबिंबित करती हैं।
- इसके अलावा, गांधीजी ने यह भी कहा कि धन और शक्ति को समुदाय के कल्याण के लिये ट्रस्ट में रखा जाना चाहिये।
- उदाहरण: कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत CSR दायित्व जिम्मेदार व्यावसायिक व्यवहार को बढ़ावा देते हैं।
- सादगी और आत्म-अनुशासन – लोक सेवकों का नैतिक आचरण
- गांधीजी ने अपने जीवन में उदाहरण प्रस्तुत किया और दिखाया कि नेतृत्व के लिये तपस्या, आत्म-संयम और नैतिक साहस की आवश्यकता होती है।
- उदाहरण: ई. श्रीधरन (भारत के मेट्रो मैन) जैसे प्रशासकों ने गांधीवादी मूल्यों को प्रतिबिंबित करते हुए सादगी और जन-सेवा का जीवन जिया।
- स्वराज और विकेंद्रीकरण
- गांधीजी का स्वराज का विचार केवल राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं था बल्कि सशक्त स्थानीय स्वशासन था।
- उदाहरण: पंचायती राज और शहरी स्थानीय निकायों की स्थापना करने वाले 73वें एवं 74वें संविधान संशोधन, गांधीजी के ग्राम गणराज्यों और ज़मीनी स्तर पर लोकतंत्र के दृष्टिकोण से गहनता से मेल खाते हैं।
समकालीन चुनौतियों में प्रासंगिकता:
समकालीन मुद्दा
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गांधीवादी नैतिक समाधान
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भ्रष्टाचार
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सत्य, आत्म-अनुशासन और लोक सेवा की भावना से प्रेरित
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वातावरण संबंधी मान भंग
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सादगी, स्थिरता और प्रकृति के प्रति सम्मान
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उपभोक्तावाद और असमानता
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ट्रस्टीशिप और स्वैच्छिक रूप से आवश्यकताओं में कमी
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प्रशासनिक निष्पक्षता
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दयालु शासन और सेवक नेतृत्व
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निष्कर्ष:
हालाँकि आज शासन में तकनीक, संस्थाओं और वैश्विक अंतरनिर्भरता का प्रभाव है, लेकिन गांधीवादी नैतिकता मानवीय गरिमा, लोक सेवा और नैतिक जिम्मेदारी में निहित शाश्वत सिद्धांत प्रदान करती है। शासन में गांधीवादी आदर्शों को पुनः जीवंत करना एक कदम पीछे हटना नहीं है, बल्कि वास्तव में नैतिक और सहानुभूतिपूर्ण लोक सेवा की ओर एक उन्नति है।