अंग्रेजों द्वारा अपनाई गई भू-राजस्व नीतियों पर चर्चा करें।
23 Nov, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर की रूपरेखा :
अंग्रेज़ों ने अपने बढ़ते हुए खर्चों की पूर्ति और अधिक मात्रा में धन कमाने के उद्देश्य से भारत के पारंपरिक भू-व्यवस्था में हस्तक्षेप करना प्रारंभ किया। आरंभ में क्लाइव और उसके उत्तराधिकारियों ने व्यापक बदलाव न करते हुए बिचौलियों की माध्यम से भू-राजस्व की वसूली की।
इसके बाद विभिन्न प्रशासकों ने विभिन्न क्षेत्रों में कई प्रकार की भू-राजस्व व्यवास्थाएँ चलाईं। जैसे- इज़ारेदारी प्रथा, स्थायी बंदोबस्त, रैयतवाड़ी और महालवाड़ी व्यवस्था।
इज़ारेदारी व्यवस्था
सर्वप्रथम वारेन हेस्टिंग्स ने बंगाल में सन् 1772 में ‘इज़ारेदारी प्रथा’ की शुरुआत की। यह एक पंचवर्षीय व्यवस्था थी, जिसमें सबसे ऊँची बोली लगाने वाले को भूमि ठेके पर दी जाती थी। सन् 1777 में पंचवर्षीय ठेके को वार्षिक कर दिया गया।
स्थायी बंदोबस्त या ज़मींदारी व्यवस्था
कार्नवालिस ने इज़ारेदारी व्यवस्था के दोषों को दूर करने के उद्देश्य से ‘स्थायी बंदोबस्त’ आरंभ की। यह व्यवस्था बंगाल, बिहार, उड़ीसा, बनारस और उत्तरी कर्नाटक में लागू की गई। स्थायी बंदोबस्त के तहत ज़मींदारों को भूमि का स्थायी मालिक बना दिया गया।
स्थायी बंदोबस्त के तहत ज़मींदार किसानों से वसूले गए कुल रकम का दस भाग (10/11 भाग) कंपनी को देते थे एवं शेष 1/11 भाग स्वयं रखते थे। यदि कोई ज़मींदार निर्धारित तिथि तक भू-राजस्व की निश्चित राशि नहीं जमा करता था तो उसकी ज़मींदारी नीलम कर दी जाती थी।
रैयतवाड़ी व्यवस्था
सन् 1820 में मद्रास के तत्कालीन गवर्नर टॉमस मुनरो ने रैयतवाड़ी व्यवस्था आरंभ की। यह व्यवस्था मद्रास, बंबई एवं असम के कुछ भागों में लागू की गई।
रैयतवाड़ी व्यवस्था के तहत लगभग 51 प्रतिशत भूमि आई। इसमें रैयतों या किसानों को भूमि का मालिकाना हक प्रदान किया गया। अब किसान स्वयं कंपनी को भू-राजस्व देने के लिये उत्तरदायी थे। इस व्यवस्था में भू-राजस्व का निर्धारण उपज के आधार पर नहीं बल्कि भूमि की क्षेत्रफल के आधार पर किया गया।
महालवाड़ी व्यवस्था
लार्ड हेस्टिंग्स द्वारा मध्य प्रांत, आगरा एवं पंजाब के क्षेत्रों में एक नई भू-राजस्व व्यवस्था लागू की गई, जिसे महालवाड़ी व्यवस्था नाम दिया गया। इसके तहत कुल 30 प्रतिशत भूमि आई।
इस व्यवस्था में महाल या गाँव के ज़मींदारों या प्रधानों से बंदोबस्त किया गया। इसमें गाँव के प्रमुख किसानों को भूमि से बेदखल करने का अधिकार था। महालवाड़ी व्यवस्था के तहत लगान का निर्धारण महाल या संपूर्ण गाँव के ऊपज के आधार पर किया जाता था।