ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. ऊर्जा सुरक्षा में उपलब्धता, अभिगम, सामर्थ्य और पर्यावरणीय संधारणीयता शामिल है। इस तथ्य का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये कि भारत की ऊर्जा स्रोत विविधीकरण रणनीति ऊर्जा सुरक्षा के इन आयामों को किस हद तक सुनिश्चित करती है। (250 शब्द)

    02 Apr, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • परिचय में ऊर्जा सुरक्षा को संक्षेप में परिभाषित कीजिये।
    • मुख्य भाग में, डेटा/उदाहरणों के साथ समालोचनात्मक रूप से परीक्षण कीजिये कि विविधीकरण किस प्रकार उपलब्धता, अभिगम, वहनीयता और संधारणीयता को सुनिश्चित करता है।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    ऊर्जा सांख्यिकी भारत- 2025 भारत की बढ़ती ऊर्जा मांग और विविध ऊर्जा मिश्रण की ओर इसके संक्रमण पर प्रकाश डालता है। विश्वसनीय उपलब्धता, न्यायसंगत अभिगम, आर्थिक वहनीयता और कम पर्यावरणीय प्रभाव द्वारा परिभाषित ऊर्जा सुरक्षा भारत के विकास के लिये महत्त्वपूर्ण है। कुल प्राथमिक ऊर्जा आपूर्ति (TPES) में 7.8% की वृद्धि एवं नवीकरणीय ऊर्जा के तेज़ी से विस्तार के साथ, भारत रणनीतिक रूप से अपनी ऊर्जा समुत्थानशक्ति बढ़ा रहा है।

    मुख्य भाग:

    ऊर्जा उपलब्धता सुनिश्चित करना:

    • विविधीकरण से जीवाश्म ईंधन के आयात पर निर्भरता कम हो जाती है तथा भू-राजनीतिक जोखिम (जैसे: वैश्विक संघर्षों के कारण तेल की कीमत में उतार-चढ़ाव) कम हो जाता है।
    • नवीकरणीय क्षमता 81,593 मेगावाट (वर्ष 2015) से बढ़कर 1,98,213 मेगावाट (वर्ष 2024) हो गई, जिसमें सौर एवं पवन ऊर्जा प्रमुख योगदानकर्त्ता रहे।
    • LNG, कोयला गैसीकरण और परमाणु ऊर्जा में विस्तार से बेस-लोड आपूर्ति सुदृढ़ होती है।
    • नवीकरणीय ऊर्जा की मौसमी परिवर्तनशीलता, पर्याप्त ऊर्जा भंडारण की कमी तथा धीमी गति के कारण संचरण अवसंरचना उन्नयन से ऊर्जा विश्वसनीयता के लिये जोखिम उत्पन्न होता है।

    सुगम्यता में वृद्धि:

    • हरित ऊर्जा कॉरिडोर, सौभाग्य योजना एवं DDUGJY ने ग्रामीण और अंतर-राज्यीय बिजली आपूर्ति में सुधार किया है।
    • ऑफ-ग्रिड सोलर सॉल्यूशन और माइक्रोग्रिड दूरदराज़ के क्षेत्रों में ऊर्जा आपूर्ति को बढ़ावा देते हैं।
    • राज्य डिस्कॉम की वित्तीय परेशानी, बिजली चोरी और उच्च संचरण घाटा (अभी भी 17% पर) अंतिम बिंदु तक ऊर्जा वितरण को सीमित करता है।
    • क्षेत्रीय असमानताएँ बनी हुई हैं, कुछ राज्य ग्रिड विस्तार और नवीकरणीय एकीकरण में पिछड़ रहे हैं।

    वहनीयता में सुधार:

    • भारत में सौर ऊर्जा की लागत विश्व में सबसे कम है, जो कि पैमाने की अर्थव्यवस्था और सरकारी प्रोत्साहनों के कारण संभव हो पाई है।
    • PLI, KUSUM और UJALA योजनाएँ निम्न आय वाले परिवारों के लिये ऊर्जा की सामर्थ्य को बढ़ावा देती हैं।
    • लिथियम और बैटरी भंडारण की बढ़ती लागत से भविष्य में नवीकरणीय ऊर्जा की सामर्थ्य पर खतरा मंडरा रहा है।
    • बिजली दरों में क्रॉस-सब्सिडी से जहाँ कमज़ोर उपभोक्ताओं को संरक्षण मिलता है, वहीं उद्योगों और वाणिज्यिक उपयोगकर्ताओं पर बोझ पड़ता है तथा प्रतिस्पर्द्धात्मकता प्रभावित होती है।
    • डिस्कॉम को निरंतर राहत निधि देने से सार्वजनिक वित्त पर दबाव पड़ता है, जिससे स्थायी मूल्य निर्धारण सुधार मुश्किल हो जाता है।

    पर्यावरणीय संधारणीयता को आगे बढ़ाना:

    • नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन 2,05,608 GWh (सत्र 2014-15) से बढ़कर 3,70,320 GWh (सत्र 2023-24) हो गया, जिससे कार्बन सांद्रता कम हो गई।
    • ग्रीन हाइड्रोजन मिशन, बायो-एनर्जी मिशन और FAME उद्योग एवं परिवहन में स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देते हैं।
    • कोयले पर 57% ऊर्जा निर्भरता एक चुनौती बनी हुई है, जिससे वायु प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन बढ़ रहा है।
    • EV अंगीकरण और हाइड्रोजन अवसंरचना में धीमी प्रगति, गतिशीलता में स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण को सीमित करती है।
    • बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं से जुड़ी पर्यावरणीय चिंताएँ (जैसे: विस्थापन, वनों की कटाई) विस्तार को जटिल बना देती हैं।

    प्रमुख चुनौतियाँ और अंतराल:

    • बड़े पैमाने पर भंडारण समाधानों की कमी के कारण नवीकरणीय ऊर्जा में रुकावट से ऊर्जा विश्वसनीयता प्रभावित होती है।
    • स्मार्ट ग्रिड और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर की धीमी गति से अंगीकरण के कारण ट्रांसमिशन दक्षता कमज़ोर हो जाती है।
    • कोयला संयंत्रों के विलंबित रूप से बंद होने तथा जीवाश्म ईंधन परियोजनाओं में बढ़ते निवेश से दीर्घकालिक कार्बन अवरोध का खतरा है।
    • हरित हाइड्रोजन, बैटरी भंडारण और अपतटीय पवन ऊर्जा के लिये उच्च पूंजीगत लागत बड़े पैमाने पर तैनाती में बाधा डालती है।
    • भारत की महत्त्वपूर्ण खनिज निर्भरता (जैसे: बैटरी भंडारण के लिये लिथियम, कोबाल्ट) बाह्य भेद्ताओं को बढ़ाती है।
    • विनियामक बाधाएँ और भूमि अधिग्रहण संबंधी मुद्दे स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं की गति को धीमा कर देते हैं।

    निष्कर्ष:

    भारत की विविध ऊर्जा रणनीति ने उपलब्धता, अभिगम, सामर्थ्य और संधारणीयता में सुधार किया है। पूर्ण ऊर्जा सुरक्षा प्राप्त करने के लिये, अब ध्यान भंडारण, ग्रिड सुधार और समावेशी स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण पर केंद्रित होना चाहिये। यह सुनिश्चित करने के लिये कि ऊर्जा परिवर्तन में कोई भी समुदाय पीछे न छूट जाए, समानता और संधारणीयता को संतुलित करने हेतु एक उचित संक्रमण कार्यढाँचा आवश्यक है।

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