ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. ‘प्रमुख क्षेत्राधिकार’ का सिद्धांत राज्य द्वारा निजी संपत्ति के अधिग्रहण को किस प्रकार उचित ठहराता है? सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के प्रकाश में भारतीय संवैधानिक कानून के तहत इसके दायरे का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)

    01 Apr, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • ‘प्रमुख क्षेत्राधिकार के सिद्धांत’ की संक्षिप्त परिभाषा के साथ उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • चर्चा कीजिये कि यह राज्य द्वारा निजी संपत्ति के अधिग्रहण को किस प्रकार उचित ठहराता है।
    • भारतीय कानून के अंतर्गत इसके संवैधानिक दायरे का परीक्षण कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    ‘प्रमुख क्षेत्राधिकार’ का सिद्धांत राज्य को उचित मुआवज़े के साथ सार्वजनिक उपयोग के लिये निजी संपत्ति का अधिग्रहण करने का अधिकार देता है। प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन बनाम महाराष्ट्र राज्य (2024) मामले में सर्वोच्च न्यायालय के हालिया निर्णय ने इस शक्ति के दायरे को पुनः परिभाषित किया, जिसमें संवैधानिक सीमाओं के भीतर व्यक्तिगत संपत्ति अधिकारों और लोक कल्याण के बीच सावधानीपूर्वक संतुलन पर ज़ोर दिया गया।

    मुख्य भाग:

    प्रमुख क्षेत्राधिकार और संवैधानिक नींव का औचित्य

    • प्रमुख क्षेत्राधिकार संप्रभु शक्ति में निहित है, जो राज्य को वैध सार्वजनिक उद्देश्य के लिये निजी संपत्ति को अनिवार्य रूप से अधिग्रहित करने की अनुमति देता है।
      • यह बुनियादी अवसंरचना, कल्याणकारी योजनाओं और आर्थिक विकास के लिये भूमि अधिग्रहण को बढ़ावा देता है।
    • संविधान का अनुच्छेद 300A संपत्ति को संवैधानिक अधिकार के रूप में संरक्षित करता है, तथा केवल कानूनी प्राधिकार के माध्यम से ही इससे वंचित किया जा सकता है।
      • यद्यपि यह अब मौलिक अधिकार नहीं रहा, फिर भी व्यक्तिगत और आर्थिक स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिये यह आवश्यक है।
    • इस सिद्धांत के लिये तीन मुख्य शर्तें आवश्यक हैं: वैध सार्वजनिक उद्देश्य, कानूनी प्राधिकार और उचित मुआवज़ा।
      • ये सुनिश्चित करते हैं कि अधिग्रहण न्यायोचित है और व्यक्तिगत गरिमा का सम्मान करता है।
    • सुदर्शन चैरिटेबल ट्रस्ट बनाम तमिलनाडु (2018) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने सार्वजनिक हित में भूमि अधिग्रहण को बरकरार रखा, बशर्ते कि उचित मुआवज़ा सुनिश्चित किया जाए।
      • इस निर्णय ने जिम्मेदारी से प्रयोग किये जाने पर प्रमुख क्षेत्राधिकार की वैधता को सुदृढ़ किया।

    भारतीय कानून के तहत न्यायिक व्याख्या और दायरा

    • प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन बनाम महाराष्ट्र राज्य (2024) में, सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 39(b) संपत्ति अधिग्रहण को अधिकृत नहीं करता है।
      • इसके बजाय प्राधिकार सूची III की प्रविष्टि 42 और प्रमुख क्षेत्राधिकार के सिद्धांत से प्राप्त होता है।
    • निर्णय में कहा गया कि सभी निजी संपत्ति समुदाय के ‘भौतिक संसाधन’ के रूप में योग्य नहीं है तथा इससे पहले रंगनाथ रेड्डी और संजीव कोक मामले में दिये गए निर्णयों को खारिज़ कर दिया।
      • इसमें प्रकृति, अभाव और सामाजिक आवश्यकता के आधार पर मामला-दर-मामला परीक्षण का आह्वान किया गया।
    • न्यायालय ने पब्लिक ट्रस्ट सिद्धांत को लागू किया, जिसके तहत राज्य को सार्वजनिक लाभ के लिये आवश्यक संसाधनों का ट्रस्टी बनाया गया।
      • इससे अनियंत्रित अधिग्रहण सीमित होता है और स्थिरता को बढ़ावा मिलता है।
    • न्यायालय ने अनुच्छेद 31C की वैधता की पुनः पुष्टि की, लेकिन अनुच्छेद 300A के तहत संपत्ति के अधिकारों को मनमाने ढंग से दरकिनार न किया जाए, यह सुनिश्चित करने के लिये इसके उपयोग को प्रतिबंधित कर दिया।
      • इससे संवैधानिक संतुलन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा होती है।
    • फैसले में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि न्यायोचित मुआवज़े पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता, जिससे कानूनी अनुपालन के साथ-साथ आर्थिक निष्पक्षता भी दृढ़ होगी।
      • यह निर्णय अंबेडकर के आर्थिक लोकतंत्र के दृष्टिकोण के अनुरूप है तथा इसमें कठोर विचारधारा थोपने से परहेज़ किया गया है।

    निष्कर्ष:

    न्यायालय ने जनहित, प्रक्रियात्मक निष्पक्षता और मुआवज़े पर बल देकर प्रमुख क्षेत्राधिकार के दायरे को पुनः परिभाषित किया है। राज्य की शक्ति और संपत्ति के अधिकारों के बीच यह संतुलन न्याय एवं व्यक्तिगत गरिमा के लिये प्रतिबद्ध संवैधानिक लोकतंत्र की भावना को बनाए रखता है।

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