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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    आप एक प्रतिष्ठित सरकारी विश्वविद्यालय में प्रवेश निदेशक हैं। प्रवेश प्रक्रिया चल रही है जिसमें सख्त योग्यता-आधारित मानदंड लागू किये गए हैं। अंतिम चयन से कुछ दिन पूर्व, आपको राज्य सरकार के एक वरिष्ठ लोक सेवा अधिकारी का फोन आता है, जो अपने बेटे के लिये (जो कट-ऑफ अंकों को पूरा नहीं करता है) प्रवेश का अनुरोध करता है। वह इस बात पर बल देता है कि विश्वविद्यालय के विस्तार परियोजनाओं के लिये सरकारी अनुदान प्राप्त करने में उसका समर्थन महत्त्वपूर्ण रहा है।

    साथ ही, कुलपति (VC) आपको एक निजी बैठक में सूचित करते हैं कि विश्वविद्यालय का वित्तपोषण एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर है और अधिकारी की सद्भावना भविष्य के अनुदान को सुरक्षित करने में मदद कर सकती है। कुलपति सुझाव देते हैं कि आप विश्वविद्यालय में उक्त छात्र के प्रवेश को समायोजित करने के लिये ‘विवेकाधीन कोटा’ का पता लगाएं।

    इस बीच, प्रवेश समिति का कनिष्ठ संकाय सदस्य प्रवेश सूची में अंतिम समय में किये गए असामान्य परिवर्तनों के बारे में निजी तौर पर आपके समक्ष चिंता व्यक्त करता है तथा संभावित बाह्य हस्तक्षेप की ओर संकेत करता है। आप निष्पक्षता बनाए रखने के अपने कर्त्तव्य और विश्वविद्यालय के वित्तीय स्थिरता को बनाए रखने की व्यावहारिक चुनौतियों के बीच दुविधा में हैं।

    प्रश्न

    1. इस मामले में शामिल नैतिक मुद्दों का अभिनिर्धारण कीजिये और उनका विश्लेषण कीजिये।

    2. प्रवेश निदेशक के रूप में आपके लिये उपलब्ध संभावित कार्यवाही के तरीकों का परीक्षण कीजिये। प्रत्येक विकल्प के गुण और दोष पर चर्चा कीजिये। आप कार्यवाही का कौन-सा रास्ता अपनाएंगे और क्यों?

    3. विश्वविद्यालय की प्रवेश प्रक्रिया में पारदर्शिता, निष्पक्षता और बाह्य दबावों का प्रतिरोध सुनिश्चित करने के लिये कौन-से संस्थागत सुधार लागू किये जा सकते हैं?

    21 Mar, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़

    उत्तर :

    परिचय:

    एक वरिष्ठ लोक सेवा अधिकारी अपने बेटे (जो प्रवेश मापदंड के कट-ऑफ अंकों को पूरा नहीं करता है) को प्रवेश देने के लिये विश्वविद्यालय के लिये सरकारी धन प्राप्त करने में उसकी भूमिका का हवाला देते हुए प्रवेश निदेशक पर दबाव डालता है। कुलपति सूक्ष्मता से इसका समर्थन करते हैं, संस्थान के वित्तीय संघर्षों को उजागर करते हैं, जबकि एक कनिष्ठ संकाय सदस्य प्रवेश सूची में अंतिम समय में किये गए असामान्य बदलावों के बारे में चिंता व्यक्त करता है।

    • यह मामला नैतिक सत्यनिष्ठा (योग्यता आधारित प्रवेश) और संस्थागत व्यावहारिकता (धन सुरक्षित करना), पारदर्शिता, निष्पक्षता और बाह्य प्रभाव के प्रतिरोध के बीच संघर्ष को प्रस्तुत करता है।

    मुख्य भाग:

    1.इस मामले में शामिल नैतिक मुद्दों का अभिनिर्धारण कीजिये और उनका विश्लेषण कीजिये।

    • निष्पक्षता और योग्यता का उल्लंघन
      • योग्यता आधारित प्रवेश में उम्मीदवारों का चयन केवल उनके शैक्षणिक प्रदर्शन और क्षमताओं के आधार पर करके निष्पक्षता सुनिश्चित की जाती है।
        • लोक सेवा अधिकारी के बेटे को स्थान देना उन योग्य विद्यार्थियों के साथ अन्याय होगा जो मानदंड तो पूरा करते हैं, लेकिन पक्षपात के कारण अपनी सीट खो सकते हैं।
        • इससे नकारात्मक उदहारण स्थापित होगा, प्रवेश प्रक्रिया में विश्वास कम होगा और विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा पर असर पड़ेगा।
    • शक्ति का मनमाना उपयोग और अनुचित प्रभाव
      • लोक सेवा अधिकारी अपने बेटे के लिये विशेषाधिकार प्राप्त करने हेतु अपने आधिकारिक पद का दुरुपयोग कर रहा है, जो निष्पक्षता एवं न्याय के सिद्धांतों (अनुच्छेद 14 - समानता का अधिकार) का उल्लंघन है।
        • कुलपति द्वारा ‘विवेकाधीन कोटा’ का उपयोग करने का सुझाव, बाह्य दबाव के तहत संस्थागत समझौते को दर्शाता है।
      • यह स्थिति सार्वजनिक संस्थाओं में वंशवाद और संरक्षणवाद के बड़े मुद्दे को प्रतिबिंबित करती है, जो संस्थागत अखंडता को कमज़ोर कर सकती है।
    • हितों का टकराव और संस्थागत अखंडता
      • विश्वविद्यालय की सरकारी अनुदान पर वित्तीय निर्भरता, वित्त पोषण बनाए रखने और नैतिक मानकों को कायम रखने के बीच नैतिक संघर्ष उत्पन्न करती है।
        • नैतिक अखंडता की तुलना में वित्तीय सुरक्षा को प्राथमिकता देने से दीर्घकालीक रूप से विश्वविद्यालय की विश्वसनीयता को नुकसान पहुँच सकता है।
      • कुलपति की भूमिका संस्थागत प्रशासन के बारे में चिंताएँ— “क्या वित्तीय स्थिरता नैतिक समझौते की कीमत पर सुनिश्चित की जानी चाहिये?” उत्पन्न करती है।
    • निर्णय लेने में पारदर्शिता और जवाबदेही
      • प्रवेश सूची में अंतिम क्षण में किये गए परिवर्तन पारदर्शिता की कमी और संभावित हेरफेर की चिंता उत्पन्न करते हैं।
        • यदि इस तरह के प्रभाव की अनुमति दी जाती है, तो भविष्य में अन्य शक्तिशाली व्यक्ति भी इसी तरह का हस्तक्षेप करने का प्रयास कर सकते हैं, जिससे प्रणालीगत भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा।
      • कनिष्ठ संकाय सदस्य द्वारा व्यक्त की गई चिंताएँ अनैतिक प्रथाओं के प्रति आंतरिक प्रतिरोध को इंगित करती हैं तथा व्हिसलब्लोअर संरक्षण एवं संस्थागत सुधारों की आवश्यकता पर प्रकाश डालती हैं।

    2. प्रवेश निदेशक के रूप में आपके लिये उपलब्ध संभावित कार्यवाही के तरीकों का परीक्षण कीजिये। प्रत्येक विकल्प के गुण और दोष पर चर्चा कीजिये। आप कार्यवाही का कौन-सा रास्ता अपनाएंगे और क्यों?

    विकल्प 1: वरिष्ठ लोक सेवक के अनुरोध को अस्वीकार किया जाए और योग्यता को सख्ती से कायम रखा जाए

    कार्रवाई: लोक सेवकों और कुलपति को स्पष्ट रूप से सूचित किया जाना चाहिये कि प्रवेश प्रक्रिया में योग्यता के आधार पर चयन किया जाता है तथा इसमें कोई अपवाद नहीं हो सकता।

    गुण:

    • निष्पक्षता, पारदर्शिता और संस्थागत विश्वसनीयता को कायम रखता है।
    • भविष्य में राजनीतिक हस्तक्षेप के लिये नकारात्मक मिसाल कायम होने से रोकता है।
    • विश्वविद्यालय की नैतिक अखंडता में छात्रों, शिक्षकों और आम जनता के बीच विश्वास को दृढ़ करता है।

    अवगुण:

    • इससे प्रशासनिक और राज्य सरकार के साथ संबंधों में तनाव आ सकता है, जिससे भविष्य में वित्त पोषण पर खतरा हो सकता है।
    • कुलपति को असमर्थन महसूस हो सकता है, जिससे संस्थागत संघर्ष उत्पन्न हो सकता है।
    • अल्पावधि में, विश्वविद्यालय को वित्तीय रूप से संघर्ष करना पड़ सकता है, जिससे विस्तार परियोजनाएँ प्रभावित हो सकती हैं।

    विकल्प 2: अनुरोध स्वीकार किया जाए और इसे ‘विवेकाधीन कोटा’ के अंतर्गत उचित ठहराया जाए

    कार्रवाई: लोक सेवक के बेटे को विशेष विवेकाधीन कोटे के तहत समायोजित किया जाए और इसे संस्थागत आवश्यकता के तहत उचित ठहराया जाए।

    गुण:

    • इससे विश्वविद्यालय के लिये निरंतर सद्भावना और वित्तपोषण सुनिश्चित होगा, जिससे दीर्घकाल में हजारों छात्रों को लाभ मिल सकेगा।
    • सरकार में प्रमुख हितधारकों के साथ संबंधों को मज़बूत बनाता है।
    • प्रशासनिक सामंजस्य बनाए रखते हुए कुलपति के साथ टकराव से बचा जाता है।

    अवगुण:

    • यह योग्यता-आधारित सिद्धांतों का उल्लंघन करता है, जिसके परिणामस्वरूप योग्य छात्रों के साथ अनुचित व्यवहार होता है।
    • इससे राजनीतिक हस्तक्षेप की मिसाल कायम हो सकती है तथा संस्थागत स्वायत्तता कमज़ोर हो सकती है।
    • यदि यह बात उजागर हो गई तो विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँच सकता है, जिससे जनता और मीडिया में नकारात्मक प्रतिक्रिया हो सकती है।

    सर्वोत्तम कार्यवाही: विकल्प 1

    इस मामले के नैतिक और व्यावहारिक आयामों को देखते हुए, कई कार्यों को मिलाकर एक रणनीतिक दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिये:

    योग्यता आधारित प्रवेश को दृढ़ता से कायम रखना:

    • लोक सेवकों और कुलपति को स्पष्ट रूप से बताया जाना आवश्यक है कि प्रवेश नियमों में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता।
    • इसे व्यक्तिगत संघर्ष बनने से बचाने के लिये कानूनी और नैतिक कारणों (जैसे: समता के संवैधानिक सिद्धांत) का हवाला दिया जाना आवश्यक है।

    यह दृष्टिकोण क्यों?

    • नैतिकता और व्यावहारिकता में संतुलन– वित्तपोषण सुरक्षित करने के नैतिक तरीके ढूंढते हुए योग्यता कायम रहती है।
    • संस्थागत क्षति को रोकता है– सार्वजनिक प्रतिक्रिया या विश्वविद्यालय की विश्वसनीयता की हानि को रोकता है।
    • दीर्घकालिक शासन को सुदृढ़ करता है– भविष्य में इसी प्रकार की दुविधाओं को रोकता है।

    3.विश्वविद्यालय की प्रवेश प्रक्रिया में पारदर्शिता, निष्पक्षता और बाह्य दबावों का प्रतिरोध सुनिश्चित करने के लिये कौन-से संस्थागत सुधार लागू किये जा सकते हैं?

    • स्वतंत्र प्रवेश निरीक्षण समिति: वरिष्ठ संकाय और बाह्य विशेषज्ञों के एक स्थायी निकाय को प्रवेश की निगरानी करनी चाहिये, निष्पक्षता सुनिश्चित करनी चाहिये और अनुचित राजनीतिक प्रभाव को रोकना चाहिये।
      • यह एक जाँच एवं संतुलन तंत्र के रूप में कार्य करेगा, जिससे चयन प्रक्रिया पारदर्शी होगी।
    • डिजिटल और गुमनाम प्रवेश प्रक्रिया: AI-संचालित, स्वचालित प्रवेश मूल्यांकन मानवीय पूर्वाग्रह और राजनीतिक हस्तक्षेप को समाप्त कर सकता है।
      • एक पारदर्शी, ऑडिट-ट्रेल-इनेबल्ड सिस्टम अंतिम क्षण में अनधिकृत परिवर्तनों (जैसे: NTA काउंसलिंग) को प्रतिबंधित करेगी।
    • सख्त गैर-विवेकाधीन कोटा नीति: सभी प्रवेशों में पूर्व-निर्धारित, योग्यता-आधारित मानदंडों का सख्ती से पालन किया जाना चाहिये, जिसमें कानूनी रूप से अनिवार्य आरक्षण को छोड़कर, पक्षपात के लिये कोई जगह नहीं होनी चाहिये।
      • इससे संस्था में निष्पक्षता और जनता का विश्वास कायम रहेगा।
    • प्रवेश संबंधी आँकड़ों का अनिवार्य सार्वजनिक प्रकटीकरण: विश्वविद्यालय को प्रवेश के बाद चयन मानदंड, कट-ऑफ अंक और मेरिट सूची ऑनलाइन प्रकाशित करनी चाहिये।
      • इससे पारदर्शिता सुनिश्चित होती है और हितधारकों को प्रक्रिया की जाँच करने की सुविधा मिलती है।
    • स्वतंत्र निकायों द्वारा विनियामक निरीक्षण: UGC या एक स्वतंत्र मान्यता एजेंसी द्वारा नियमित ऑडिट एवं निगरानी योग्यता-आधारित मानकों का पालन सुनिश्चित कर सकती है।
    • वित्तपोषण के लिये वैकल्पिक समर्थन विकसित करना: वित्तपोषण संस्थागत उत्कृष्टता पर आधारित होना चाहिये, न कि व्यक्तिगत पक्षपात पर।
      • संभावित CSR योगदान, अनुसंधान अनुदान, या पूर्व छात्र-संचालित बंदोबस्ती वैकल्पिक वित्तपोषण तंत्र के रूप में काम कर सकते हैं। वै

    निष्कर्ष:

    प्रवेश में विश्वसनीयता और निष्पक्षता बनाए रखने के लिये बाह्य प्रभाव पर योग्यता को बनाए रखना महत्त्वपूर्ण है। साथ ही, राजनीतिक सद्भावना पर निर्भरता को कम करने के लिये स्थायी वित्तपोषण मॉडल की खोज़ की जानी चाहिये। एक संतुलित दृष्टिकोण– प्रणालीगत सुधारों द्वारा समर्थित दृढ़ नैतिक निर्णय लेना दीर्घकालिक संस्थागत अखंडता के लिये आवश्यक है।

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