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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न लोक सेवा में ‘नैतिक संकट’ की अवधारणा किस प्रकार उत्पन्न होती है तथा लोक सेवक रचनात्मक रूप से इसके शमन के लिये कौन-सी रणनीति अपना सकते हैं? (150 शब्द)

    20 Mar, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • नैतिक संकट को परिभाषित करते हुए उत्तर दीजिये।
    • लोक सेवा में नैतिक संकट की प्रमुख अभिव्यक्ति प्रस्तुत कीजिये।
    • नैतिक संकट के रचनात्मक ढंग से शमन की रणनीतियों पर प्रकाश डालिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय

    नैतिक संकट तब होता है जब लोक सेवक अपने नैतिक मूल्यों और अपने कार्य वातावरण की माँगों के बीच टकराव के कारण मनोवैज्ञानिक असुविधा का अनुभव करते हैं। यह तब उत्पन्न होता है जब लोक सेवकों को कार्रवाई का सही तरीका पता होता है लेकिन उन्हें संस्थागत, राजनीतिक या प्रशासनिक बाधाओं का सामना करना पड़ता है।

    मुख्य भाग:

    लोक सेवा में नैतिक संकट की अभिव्यक्ति

    लोक सेवकों को प्रायः ऐसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है जहाँ उन्हें राजनीतिक हस्तक्षेप, प्रणालीगत अकुशलता या कठोर पदानुक्रमिक संरचनाओं के कारण अपनी नैतिक मान्यताओं से समझौता करना पड़ता है।

    प्रमुख अभिव्यक्तियाँ निम्नलिखित हैं:

    • नैतिक मूल्यों और संगठनात्मक निर्देशों के बीच संघर्ष
      • जब लोक सेवकों पर त्रुटिपूर्ण नीतियों या अनैतिक निर्णयों को मंजूरी देने का दबाव डाला जाता है, जबकि उन्हें उनके नकारात्मक परिणाम पता होते हैं।
      • उदाहरण: एक लोक सेवक को उच्च अधिकारी के दबाव के कारण प्रदूषणकारी उद्योग के लाइसेंस को मंजूरी देने का काम सौंपा गया, जबकि उसे इसके पर्यावरणीय प्रभाव का पता था।
    • व्हिसलब्लोअर दुविधाएँ
      • सरकारी संस्थाओं में भ्रष्टाचार या कदाचार को उजागर करने पर प्रतिशोध का भय।
      • उदाहरण: संजीव चतुर्वेदी (IFoS अधिकारी) को AIIMS में भ्रष्टाचार को उजागर करने के कारण उत्पीड़न और कई स्थानांतरणों का सामना करना पड़ा।
    • संसाधन की कमी के कारण नैतिक समझौते
      • लोक सेवकों को तब संघर्ष करना पड़ सकता है जब बजटीय सीमाएँ उन्हें आवश्यक सेवाएँ प्रदान करने से रोकती हैं, जिससे उन्हें सामाजिक न्याय की तुलना में आर्थिक दक्षता को प्राथमिकता देने के लिये मजबूर होना पड़ता है।
      • उदाहरण: एक ज़िला कलेक्टर को महामारी के दौरान सीमित चिकित्सा आपूर्ति आवंटित करने के लिये मजबूर किया गया, जिससे उपचार किसे मिलेगा, इस बारे में नैतिक विकल्प चुनना कठिन हो गया।
    • अन्यायपूर्ण नीतियों को कायम रखने का दबाव
      • प्रशासक कभी-कभी ऐसी नीतियों को लागू करते हैं जिन्हें वे व्यक्तिगत रूप से अन्यायपूर्ण मानते हैं, लेकिन उन्हें चुनौती देने का अधिकार नहीं होता।
      • उदाहरण: विवादास्पद भूमि अधिग्रहण कानूनों का कार्यान्वयन, जो व्यक्तिगत आपत्तियों के बावजूद सीमांत समुदायों को विस्थापित करता है।

    नैतिक संकट के रचनात्मक ढंग से शमन की रणनीतियाँ:

    • नैतिक निर्णय लेने के कार्यढाँचे को सुदृढ़ करना
      • लोक सेवकों को नैतिक दुविधाओं को व्यवस्थित ढंग से सुलझाने में मदद करने के लिये स्पष्ट नैतिक दिशानिर्देश और निर्णय लेने संबंधी प्रोटोकॉल स्थापित किया जाना चाहिये।
      • अनैतिक प्रथाओं की रिपोर्ट करने वाले अधिकारियों की सुरक्षा के लिये मुखबिर संरक्षण नीतियों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
        • लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 ने भ्रष्टाचार की रिपोर्टिंग के लिये संस्थागत तंत्र बनाया, जिससे प्रतिशोध का डर कम हुआ।
    • खुले संचार और नैतिक नेतृत्व को बढ़ावा देना
      • सरकारी संस्थाओं के भीतर खुले संवाद की संस्कृति को बढ़ावा दिया जाना चाहिये, जिससे प्रशासकों को बिना किसी भय के अपनी बात कहने का अवसर मिले।
      • नेताओं को अंध आज्ञाकारिता लागू करने के बजाय नैतिक निर्णय लेने का समर्थन करना चाहिये।
    • नैतिक दृढ़ता और प्रशिक्षण को प्रोत्साहन
      • नैतिक नेतृत्व पर कार्यशालाएँ प्रशासकों को नैतिक दृढ़ता विकसित करने और दुविधाओं से प्रभावी ढंग से निपटने में मदद कर सकती हैं।
      • लोक सेवकों को संघर्ष समाधान और मूल्य-आधारित निर्णय लेने में प्रशिक्षित किया जाना चाहिये।
    • नैतिक संघर्षों को कम करने के लिये प्रशासनिक संरचनाओं में सुधार
      • शासन में अत्यधिक राजनीतिक हस्तक्षेप को कम करने के लिये प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सरल बनाया जाना चाहिये।
      • अनुचित प्रभाव को रोकने के लिये प्रमुख नियामक निकायों के लिये संस्थागत स्वायत्तता सुनिश्चित की जानी चाहिये।
        • उदाहरण: स्वतंत्र पुलिस कार्यप्रणाली के लिये सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश (प्रकाश सिंह केस, 2006) का उद्देश्य कानून प्रवर्तन पर राजनीतिक नियंत्रण को कम करना था।

    निष्कर्ष:

    लोक सेवा में नैतिक संकट एक अपरिहार्य चुनौती है, लेकिन नैतिक कार्यढाँचे, नेतृत्व समर्थन, प्रशिक्षण और प्रणालीगत सुधारों के माध्यम से इसका प्रबंधन किया जा सकता है। एक समुत्थानशील और सिद्धांतबद्ध प्रशासनिक को पारदर्शी, जवाबदेह एवं प्रभावी शासन सुनिश्चित करने के लिये नैतिक अखंडता के साथ संस्थागत जिम्मेदारियों को संतुलित करना चाहिये।

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