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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. भारत में विकास-रोज़गार विसंगति के लिये जिम्मेदार संरचनात्मक कारकों पर चर्चा कीजिये तथा मज़बूत व रोज़गार-प्रधान विकास सुनिश्चित करने के लिये रणनीतिक हस्तक्षेप प्रस्तावित कीजिये। (250 शब्द)

    19 Mar, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत में विकास-रोज़गार विसंगति के संदर्भ में जानकारी के साथ उत्तर दीजिये। विकास-रोज़गार विसंगति के लिये जिम्मेदार संरचनात्मक कारकों पर प्रकाश डालिये। रोज़गार-प्रधान विकास सुनिश्चित करने के लिये रणनीतिक हस्तक्षेप का सुझाव दीजिये। उचित निष्कर्ष दीजिये।
    • भारत में विकास-रोज़गार विसंगति के संदर्भ में जानकारी के साथ उत्तर दीजिये।
    • विकास-रोज़गार विसंगति के लिये जिम्मेदार संरचनात्मक कारकों पर प्रकाश डालिये।
    • रोज़गार-प्रधान विकास सुनिश्चित करने के लिये रणनीतिक हस्तक्षेप का सुझाव दीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    भारत ने उच्च आर्थिक विकास (वित्त वर्ष 2025 में 6.4%) का अनुभव किया है, लेकिन इसका आनुपातिक रूप से रोज़गार सृजन में परिवर्तन नहीं हुआ है। बेरोज़गारी वृद्धि की घटना एक गंभीर चिंता का विषय है, जहाँ सकल घरेलू उत्पाद का विस्तार श्रम-प्रधान क्षेत्रों के बजाय पूंजी-प्रधान उद्योगों, स्वचालन और प्रौद्योगिकी-आधारित उत्पादकता द्वारा संचालित होता है।

    मुख्य भाग:

    विकास-रोज़गार विसंगति के लिये जिम्मेदार संरचनात्मक कारक

    • पूंजी-गहन विकास और स्वचालन
      • विनिर्माण, बैंकिंग एवं शासन जैसे उद्योगों में AI और स्वचालन के उदय ने कम-कुशल नौकरियों को उच्च तकनीक, उत्पादकता-संचालित कार्यों से प्रतिस्थापित कर दिया है।
        • उदाहरण: IndiaAI मिशन और BharatGen (वर्ष 2024), जो AI-संचालित शासन को बढ़ावा देते हैं, पारंपरिक सेवा-क्षेत्र की नौकरियों की मांग को कम कर सकते हैं।
    • कौशल अंतराल और शिक्षा एवं उद्योग की जरूरतों के बीच असंतुलन
      • भारत में मुख्यतः असंगठित कार्यबल (90%) है, जिसमें से केवल 20% कार्यबल ही औपचारिक रूप से कुशल है।
        • सेमीकंडक्टर निर्माण, AI और क्वांटम कंप्यूटिंग जैसे तकनीक-संचालित उद्योगों को कुशल पेशेवरों की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
    • डिजिटल डिवाइड और असमान रोज़गार सृजन
      • यद्यपि शहरी भारत 5G रोलआउट और स्टार्टअप इकोसिस्टम से लाभान्वित हो रहा है, ग्रामीण भारत इंटरनेट एक्सेस एवं डिजिटल साक्षरता में पीछे है।
        • भारत की 45% आबादी (665 मिलियन लोग) इंटरनेट का उपयोग नहीं करती है (वर्ष 2023), जिससे डिजिटल अर्थव्यवस्था और ई-कॉमर्स क्षेत्र में उनकी भागीदारी सीमित हो गई है।
    • कमज़ोर MSME इको-सिस्टम और ऋण संबंधी बाधाएँ
      • MSME सकल घरेलू उत्पाद में 30% और निर्यात में 40% का योगदान करते हैं, लेकिन केवल 20% को ही औपचारिक ऋण तक अभिगम प्राप्त है, जिससे विस्तार एवं रोज़गार सृजन में बाधा उत्पन्न होती है।
        • CRISIL का अनुमान है कि 6.3 करोड़ MSME में से केवल 2.5 करोड़ ने ही औपचारिक ऋण लिया है, जो वित्तपोषण में महत्त्वपूर्ण अंतर को दर्शाता है।
    • विनियामक अड़चनें और कठोर श्रम कानून
      • जटिल अनुपालन आवश्यकताएँ, श्रम-प्रधान उद्योगों जैसे कि वस्त्र, निर्माण और खाद्य प्रसंस्करण को विस्तार करने से रोकती हैं।
      • भारत की चार श्रम संहिताएँ पारित हो चुकी हैं, लेकिन उनका पूर्ण क्रियान्वयन नहीं हो पाया है, जिससे श्रम बाज़ार लोच में विलंब हो रहा है।

    रोज़गार-प्रधान विकास सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक रणनीतिक हस्तक्षेप

    • उभरते उद्योगों के लिये कौशल और कार्यबल परिवर्तन
      • AI, रोबोटिक्स, सेमीकंडक्टर डिज़ाइन और हरित ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करते हुए PMKVY (कौशल भारत मिशन) का विस्तार किया जाना चाहिये।
      • स्कूलों और कॉलेजों में व्यावसायिक शिक्षा को सुदृढ़ किया जाना चाहिये तथा उद्योग 4.0 कौशल को एकीकृत किया जाना चाहिये।
    • MSME और उद्यमिता को सुदृढ़ बनाना
      • MSME की तरलता में सुधार लाने और संपार्श्विक आवश्यकताओं को कम करने के लिये ECLGS एवं MUDRA ऋणों का विस्तार किया जाना चाहिये।
      • क्लस्टर आधारित विकास के माध्यम से MSME में प्रौद्योगिकी अंगीकरण को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
    • श्रम-प्रधान विनिर्माण और घरेलू मूल्य शृंखलाओं को बढ़ावा देना
      • बड़े पैमाने पर रोज़गार सृजन करने के लिये श्रम-प्रधान क्षेत्रों (वस्त्र, खाद्य प्रसंस्करण, चमड़ा और हस्तशिल्प) के लिये PLI योजनाओं को लागू किया जाना चाहिये।
        • व्यवसाय स्थापना को सरल बनाने और निवेश को प्रोत्साहित करने के लिये प्लग-एंड-प्ले औद्योगिक क्षेत्रों का विस्तार किया जाना चाहिये।
    • ग्रामीण डिजिटल समावेशन और गिग इकॉनमी नौकरियों को बढ़ावा देना
      • डिजिटल नौकरी के अभिगम में सुधार के लिये ग्रामीण क्षेत्रों में PM WANI Wi-Fi कार्यान्वयन को गति दी जानी चाहिये।
      • ONDC और UPI-लिंक्ड फिनटेक सेवाओं जैसे प्लेटफॉर्मों के माध्यम से ग्रामीण उद्यमियों के लिये ई-कॉमर्स एवं गिग कार्य के अवसरों को एकीकृत किया जाना चाहिये।
    • अधिक लचीलेपन के लिये श्रम कानूनों में सुधार
      • औपचारिक रोज़गार सृजन को प्रोत्साहित करने के लिये चार श्रम संहिताओं का त्वरित कार्यान्वयन आवश्यक है।
      • डिजिटल और प्लेटफॉर्म-आधारित रोज़गार को समर्थन देने के लिये लचीले नियुक्ति मॉडल (गिग इकॉनमी विनियम) लागू किया जाना चाहिये।
    • हरित रोज़गार और सतत् विकास को प्रोत्साहन
      • कार्यबल परिवर्तन को सक्षम बनाने के लिये राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन नौकरी प्रशिक्षण कार्यक्रमों का विस्तार किया जाना चाहिये।
      • रीसाइक्लिंग, अपशिष्ट प्रबंधन और संधारणीय पैकेजिंग जैसे चक्रीय अर्थव्यवस्था आधारित उद्योगों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।

    निष्कर्ष:

    समावेशी और रोज़गार-प्रधान विकास सुनिश्चित करने के लिये, भारत को डिजिटल डिवाइड को समाप्त करना होगा, श्रम नीतियों में सुधार करना होगा, कार्यबल को पुनः प्रशिक्षित करने में निवेश करना होगा तथा MSME इको-सिस्टम को सुदृढ़ करना होगा। श्रम-प्रधान विनिर्माण, घरेलू मूल्य शृंखलाओं और हरित नौकरियों पर ध्यान केंद्रित करके, भारत संधारणीय एवं न्यायसंगत आर्थिक विकास प्राप्त कर सकता है।

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