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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. भारत के विनिर्माण क्षेत्र की क्रांति में प्रौद्योगिकी और नवाचार की भूमिका का विश्लेषण कीजिये। उद्योग 4.0 के लिये भारत बेहतर तरीके से किस प्रकार तैयार हो सकता है? (250 शब्द)

    19 Mar, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 विज्ञान-प्रौद्योगिकी

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत के विनिर्माण क्षेत्र की क्रांति में प्रौद्योगिकी और नवाचार की भूमिका के संदर्भ में जानकारी के साथ उत्तर दीजिये।
    • भारत के विनिर्माण परिवर्तन में प्रौद्योगिकी और नवाचार की भूमिका के लिये प्रमुख तर्क और उदाहरण दीजिये तथा उद्योग 4.0 में भारत के परिवर्तन में बाधा डालने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
    • उद्योग 4.0 की तैयारी के लिये रणनीति सुझाइये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    • भारत का विनिर्माण क्षेत्र तकनीकी प्रगति एवं नवाचार से प्रेरित परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। मेक इन इंडिया और उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना जैसी नीतियों ने स्वचालन, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) में निवेश को बढ़ावा दिया है।
    • उद्योग 4.0 के साथ, भारत को उत्पादकता, वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये डिजिटल प्रौद्योगिकियों के अंगीकरण में तेज़ी लाने की आवश्यकता है।

    मुख्य भाग:

    भारत के विनिर्माण परिवर्तन में प्रौद्योगिकी और नवाचार की भूमिका:

    • डिजिटलीकरण और स्मार्ट विनिर्माण
      • AI, IoT, बिग डेटा और क्लाउड कंप्यूटिंग के अंगीकरण से उद्योगों में दक्षता बढ़ रही है, डाउनटाइम कम हो रहा है तथा पूर्वानुमानित प्रबंधन में सुधार हो रहा है।
        • उदाहरण: राष्ट्रीय क्वांटम मिशन और सेमीकंडक्टर निर्माण पहल (जैसे: धोलेरा में माइक्रोन का संयंत्र) उच्च तकनीक विनिर्माण को बढ़ावा दे रहे हैं।
    • बुनियादी अवसंरचना का विकास और रसद अनुकूलन
      • गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान सड़क, रेलमार्ग, वायुमार्ग और बंदरगाह कनेक्टिविटी को एकीकृत करता है, जिससे आपूर्ति शृंखला दक्षता में सुधार होता है।
        • समर्पित मालवहन गलियारे (DFC) और PM MITRA टेक्सटाइल पार्क औद्योगिक क्लस्टर विकास को बढ़ावा दे रहे हैं।
        • बजट 2025-26 में ₹11.21 लाख करोड़ का आवंटन बुनियादी अवसंरचना के विकास को मज़बूत करता है।
    • हरित एवं संधारणीय विनिर्माण
      • भारत नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन और FAME II (इलेक्ट्रिक मोबिलिटी प्रोत्साहन) जैसी पहलों के साथ संधारणीय उत्पादन की ओर बढ़ रहा है।
        • लक्ष्य: वर्ष 2030 तक 50% ऊर्जा गैर-जीवाश्म ईंधन से और प्रतिवर्ष 5 MMT ग्रीन हाइड्रोजन।
    • वैश्विक एकीकरण और आपूर्ति शृंखला पुनर्संरेखण
      • चाइना+1 रणनीति एप्पल, टेस्ला और सैमसंग जैसी वैश्विक कंपनियों को भारतीय उत्पादन सुविधाओं का विस्तार करने के लिये प्रोत्साहित कर रही है।
        • वित्त वर्ष 2023 में भारत का आईफोन निर्यात बढ़कर 5 बिलियन डॉलर हो गया, जो वैकल्पिक विनिर्माण केंद्र के रूप में भारत की प्रगति को दर्शाता है।

    भारत के उद्योग 4.0 में परिवर्तन में बाधा डालने वाली चुनौतियाँ:

    • उच्च रसद एवं आपूर्ति शृंखला लागत: भारत की रसद लागत (GDP का 14-18%) वैश्विक बेंचमार्क (8%) से अधिक है, जिससे निर्यात प्रतिस्पर्द्धा कम हो रही है।
    • कौशल अंतराल और श्रम बाज़ार में बाधाएँ: असंगठित क्षेत्र में 90% कार्यबल के साथ, AI-संचालित उत्पादन का अंगीकरण चुनौतीपूर्ण बना हुआ है।
    • कमज़ोर MSME इको-सिस्टम और ऋण संबंधी बाधाएँ: केवल 20% MSME के पास औपचारिक ऋण तक पहुँच है, जिससे नवाचार सीमित हो रहा है।
      • न्यून अनुसंधान एवं विकास निवेश (GDP का 0.65% बनाम चीन में 2.4%) उच्च तकनीक विनिर्माण में बाधा डालता है।
    • महत्त्वपूर्ण घटकों के लिये आयात निर्भरता: भारत 70% API और सेमीकंडक्टर घटकों का आयात चीन से करता है, जिससे आपूर्ति शृंखला जोखिम उत्पन्न होता है।
    • सत्र 2023-24 में सेमीकंडक्टर आयात 18.5% बढ़कर ₹1.71 लाख करोड़ हो गया।

    उद्योग 4.0 की तैयारी के लिये रणनीतियाँ

    • रसद और आपूर्ति शृंखला दक्षता बढ़ाना
      • मल्टी-मॉडल परिवहन को अनुकूलित करने और पारगमन विलंब को कम करने के लिये गति शक्ति मास्टर प्लान को त्वरित गति प्रदान किया जाना चाहिये।
      • वैश्विक व्यापार प्रतिस्पर्द्धा के लिये बंदरगाह आधुनिकीकरण और अंतर्देशीय जलमार्गों को सुदृढ़ किया जाना चाहिये।
    • उद्योग 4.0 के लिये कार्यबल को कुशल बनाना
      • AI, रोबोटिक्स, IoT और सेमीकंडक्टर पर ध्यान केंद्रित करते हुए स्किल इंडिया और PMKVY कार्यक्रमों का विस्तार किया जाना चाहिये।
      • कौशल अंतर को समाप्त करने के लिये उद्योग-अकादमिक सहयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
    • MSME इको-सिस्टम और अनुसंधान एवं विकास निवेश को सुदृढ़ करना
      • MSME की तरलता में सुधार के लिये ECLGS (आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना) का विस्तार किया जाना चाहिये।
      • स्वचालन और AI अभिगम को सुगम बनाने के लिये MSME के लिये प्रौद्योगिकी केंद्र स्थापित किया जाना चाहिये।
    • घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना और आयात निर्भरता को कम करना
      • चिप निर्माण सुविधाएँ स्थापित करने के लिये सेमीकॉन इंडिया कार्यक्रम (76,000 करोड़ रुपए) का विस्तार किया जाना चाहिये।
      • स्थानीय विनिर्माण को प्रोत्साहित करने के लिये इलेक्ट्रॉनिक घटकों के लिये विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) विकसित किया जाना चाहिये।
    • वैश्विक व्यापार साझेदारी और बाज़ार अभिगम का विस्तार
      • निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार के लिये यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और कनाडा के साथ लंबित मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) को अंतिम रूप दिया जाना चाहिये।
      • बहुराष्ट्रीय आपूर्ति नेटवर्क के साथ MSME को एकीकृत करके वैश्विक मूल्य शृंखलाओं (GVC) में भागीदारी को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।

    निष्कर्ष:

    भारत प्रौद्योगिकी, नवाचार और नीति समर्थन द्वारा संचालित विनिर्माण क्रांति के कगार पर है। डिजिटल परिवर्तन, संधारणीय विनिर्माण और वैश्विक भागीदारी का लाभ उठाकर, भारत स्वयं को उन्नत विनिर्माण में वैश्विक अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित कर सकता है तथा अपने विकसित भारत @2047 विज़न को प्राप्त कर सकता है।

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