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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. “गांधार और मथुरा कला शाखाएँ प्राचीन भारत की दो अलग-अलग लेकिन परस्पर संबद्ध कलात्मक परंपराओं का प्रतिनिधित्व करती हैं”। इन शाखाओं ने भारतीय मूर्तिकला के विकास में किस प्रकार योगदान दिया? (150 शब्द)

    17 Mar, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • गांधार और मथुरा कला शाखाओं के संदर्भ में जानकारी के साथ उत्तर दीजिये। 
    • तालिका प्रारूप में गांधार और मथुरा कला शैलियों के बीच मुख्य अंतर स्पष्ट कीजिये।    
    • भारतीय मूर्तिकला में गांधार और मथुरा कला शाखाओं के योगदान पर प्रकाश डालिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये। 

    परिचय: 

    गांधार और मथुरा कला शाखाएँ दो प्रमुख मूर्तिकला परंपराएँ थीं जो प्राचीन भारत में पहली शताब्दी ईसा पूर्व और 5वीं शताब्दी ईसवी के दौरान विकसित हुई। हालाँकि दोनों बौद्ध धर्म से गहराई से प्रभावित थीं, लेकिन ये अलग-अलग सांस्कृतिक और भौगोलिक संदर्भों में विकसित हुईं। 

    मुख्य भाग: 

    गांधार और मथुरा कला शाखाओं की तुलना: 

    विशेषता

    गांधार कला शाखा 

    मथुरा कला शाखा 

    स्थान 

    उत्तर पश्चिम भारत (तक्षशिला, पेशावर, बामियान)

    मथुरा, उत्तर प्रदेश

    अवधि

    पहली शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर चौथी शताब्दी ईसवी तक

    पहली शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर पाँचवीं शताब्दी ईसवी तक

    सांस्कृतिक प्रभाव

    प्रबल ग्रीको-रोमन और फारसी प्रभाव

    विशुद्ध रूप से मूल भारतीय परंपरा

    प्रयुक्त सामग्री

    ग्रे बलुआ पत्थर, नीला-ग्रे शिस्ट, प्लास्टर

    लाल-धब्बेदार बलुआ पत्थर

    धार्मिक प्रभाव

    मुख्यतः बौद्ध धर्म (महायान)

    बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म, जैन धर्म

    बुद्ध का चित्रण

    यथार्थवादी, हेलेनिस्टिक शैली- लहराते बाल, माथे की रेखाएँ, अच्छी तरह से उत्कीर्णित शिल्प

    प्रतिष्ठित भारतीय शैली- चौड़े कंधे, मुस्कुराते हुए चेहरे, पद्मासन मुद्रा में मूर्तिकला की विशेषता 

    हालाँकि गांधार और मथुरा शाखा अपनी विशिष्ट विशेषताओं में भिन्न थी, लेकिन वे आपस में गहराई से जुड़ी रही, क्योंकि दोनों पर बौद्ध संरक्षण, कलात्मक आदान-प्रदान एवं स्तूपों व मठों में साझा रूपांकनों का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
    भारतीय मूर्तिकला में गांधार और मथुरा शाखाओं का योगदान

    • गांधार कला शाखा
      • बुद्ध के प्रतीकात्मक रूप का परिचय: गांधार कला से पहले, बुद्ध को प्रतीकों (जैसे: पदचिह्न, बोधि वृक्ष) का उपयोग करके चित्रित किया जाता था।
        • गांधार के मूर्तिकारों ने बुद्ध की पहली मानव-सदृश प्रतिमा बनाई।
      • भारतीय और ग्रीको-रोमन शैलियों का सम्मिश्रण: मानव आकृति का यथार्थवादी चित्रण, लिपटे वस्त्र और गहरी नक्काशी तकनीक ग्रीक एवं रोमन शैलियों से उद्धृत थी।
        • प्रभामंडल, लहराते बाल, मांसल कायिक संरचना और विस्तृत वस्त्र जैसी विशेषताएँ इस कला शाखा के प्रमुख तत्त्व बन गए।
      • स्तूप और मठ वास्तुकला का परिष्कार: गांधार कला ने स्तूपों और शैलकृत मठों के विकास में योगदान दिया, जिसने भारत व अन्य स्थानों पर बौद्ध वास्तुकला को प्रभावित किया।
        • उल्लेखनीय उदाहरण: बामियान बुद्ध (अफगानिस्तान), तक्षशिला मूर्तियाँ।
      • बौद्ध कला का मध्य एशिया और चीन तक प्रसार: रेशम मार्ग पर बौद्ध कला के प्रसार में गांधार शैली महत्त्वपूर्ण थी, जिसने चीनी, जापानी और मध्य एशियाई बौद्ध मूर्तिकलाओं को प्रभावित किया।
    • मथुरा कला शाखा 
      • भारतीय मूर्तिकला परंपरा का स्वदेशी विकास: गांधार के विपरीत, मथुरा कला मूल और शैली में पूरी तरह भारतीय थी।
        • इसने भारतीय मंदिर वास्तुकला और हिंदू मूर्तिकला शाखा की नींव रखी।
      • देवताओं का मानवीय चित्रण: मथुरा स्कूल ने विष्णु, शिव और यक्ष जैसे हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों की शुरुआत की।
        • जैन मूर्तिकला के विकास में भी इसका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।
      • सुस्पष्ट और ऊर्जावान रूप: इन आकृतियों में चौड़े कंधे, मज़बूत धड़ और शक्तिशाली भाव थे, जो एक आध्यात्मिक लेकिन ऊर्जावान उपस्थिति को दर्शाते थे।
        • मथुरा कला में ‘प्रसन्न बुद्ध’ ने गांधार कला की शांत या उदास अभिव्यक्तियों की तुलना में दिव्य आनंद पर ज़ोर दिया।
      • उत्तरोत्तर भारतीय कला पर प्रभाव: गुप्त काल (चौथी-छठी शताब्दी ई.) ने मथुरा कला को परिष्कृत किया, जिससे शास्त्रीय मूर्तिकला शैली का विकास हुआ, जिसने बाद में चोल, पल्लव और राजपूत मूर्तियों को प्रभावित किया।
        • उल्लेखनीय उदाहरण: सारनाथ बुद्ध, कटरा केशव देव मंदिर की मूर्तियाँ।

    निष्कर्ष: 

    गांधार कला ने यथार्थवादी और बाह्य प्रभाव डाला, जबकि मथुरा कला ने स्वदेशी और प्रतीकात्मक सौंदर्यशास्त्र को आयाम दिया। साथ में, उन्होंने बौद्ध, हिंदू और जैन प्रतिमा विज्ञान को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने भारतीय और वैश्विक कला परंपराओं पर एक स्थायी प्रभाव छोड़ा।

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