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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. शासन में भावनात्मक बुद्धिमत्ता को प्रायः संज्ञानात्मक बुद्धिमत्ता के समान ही महत्त्वपूर्ण माना जाता है। नैतिक नेतृत्व और लोक सेवा में इसकी भूमिका पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    13 Mar, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भावनात्मक बुद्धिमत्ता (EI) और शासन में इसके महत्त्व को संक्षेप में परिभाषित कीजिये। 
    • नैतिक नेतृत्व में EI की भूमिका पर उदाहरण सहित चर्चा कीजिये। 
    • प्रासंगिक मामलों के साथ लोक सेवा में EI के प्रभाव की व्याख्या कीजिये। 
    • उचित निष्कर्ष दीजिये। 

    परिचय:

    भावनात्मक बुद्धिमत्ता (EI) से तात्पर्य स्वयं और दूसरों में भावनाओं को पहचानने, समझने और प्रबंधित करने की क्षमता से है। शासन में, EI संज्ञानात्मक बुद्धिमत्ता का पूरक है, नैतिक नेतृत्व और कुशल लोक सेवा को प्रोत्साहन देता है। उच्च EI वाले लोक सेवक सहानुभूति, आत्म-नियमन और सामाजिक जागरूकता प्रदर्शित करते हैं, जिससे उत्तरदायी एवं नैतिक शासन सुनिश्चित होता है।

    मुख्य भाग:

    नैतिक नेतृत्व में भावनात्मक बुद्धिमत्ता की भूमिका:

    • आत्म-जागरूकता नैतिक निर्णय लेने में सक्षम बनाती है तथा नेताओं को संवैधानिक एवं नैतिक मूल्यों के साथ कार्यों को संरेखित करने में मदद करती है।
    • सहानुभूति समावेशी शासन को बढ़ावा देती है तथा यह सुनिश्चित करती है कि नीतियाँ सीमांत समुदायों की चिंताओं को दूर करें।
    • स्व-नियमन आवेगपूर्ण निर्णयों को रोकता है, प्रशासन में पारदर्शिता, धैर्य और नैतिक व्यवहार को बढ़ावा देता है।
    • ईमानदारी और जवाबदेही दृढ़ होती है, क्योंकि भावनात्मक रूप से बुद्धिमान नेता भ्रष्टाचार, पूर्वाग्रह एवं अनैतिक दबावों का विरोध करते हैं। 

    लोक सेवा में भावनात्मक बुद्धिमत्ता की भूमिका:

    • नागरिक-केंद्रित प्रशासन से जनता का विश्वास बढ़ता है, क्योंकि अधिकारी शिकायतों को करुणा और व्यावसायिकता के साथ निपटाते हैं।
    • शासन में संघर्ष समाधान भावनात्मक रूप से बुद्धिमान मध्यस्थता से लाभान्वित होता है, जिससे प्रशासनिक कठोरता कम होती है।
    • संकट प्रबंधन अधिक प्रभावी हो जाता है, जिससे आपात स्थितियों के दौरान शांत निर्णय लेने और स्पष्ट संचार सुनिश्चित होता है।
    • ‘मिशन कर्मयोगी’ जैसी नीतियों का उद्देश्य नैतिक सद्भाव को बढ़ावा देना, नागरिक-अनुकूल शासन एवं नैतिक निर्णय लेने को बढ़ावा देना है।

    निष्कर्ष:

    भावनात्मक बुद्धिमत्ता नैतिक नेतृत्व और उत्तरदायी शासन के लिये आवश्यक है, जो प्रशासन में उत्तरदायित्व, समावेशिता एवं विश्वास सुनिश्चित करती है। चूँकि शासन में करुणा एवं दक्षता की मांग बढ़ रही है, इसलिये निरंतर नैतिक शासन के लिये लोक सेवा प्रशिक्षण में भावनात्मक बुद्धिमत्ता को संस्थागत बनाया जाना चाहिये।

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