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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. अनेक नीतिगत पहलों के बावजूद, भारत में वायु प्रदूषण एक निरंतर समस्या बनी हुई है। कार्यान्वयन में प्रमुख कमियों का अभिनिर्धारण कीजिये तथा वायु गुणवत्ता प्रबंधन में सुधार के उपाय सुझाइये। (250 शब्द)

    12 Mar, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • परिचय में, भारत के वायु प्रदूषण संकट और वैश्विक मूल्यांकन में इसकी रैंकिंग का संक्षेप में परिचय दीजिये।
    • प्रमुख कार्यान्वयन अंतरालों पर चर्चा कीजिये और वायु गुणवत्ता प्रबंधन में सुधार के उपाय– व्यावहारिक और नीति-संचालित समाधान सुझाइये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    विभिन्न नीतिगत पहलों के बावजूद, भारत विश्व के सबसे प्रदूषित देशों में शुमार है। वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट- 2024 में बताया गया है कि दिल्ली सबसे प्रदूषित राष्ट्रीय राजधानी बनी हुई है, जबकि बर्नीहाट (असम-मेघालय सीमा) विश्व का सबसे प्रदूषित शहर है। जबकि राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) जैसी नीतियाँ मौजूद हैं, असंगत कार्यान्वयन और समन्वय की कमी प्रभावी प्रदूषण नियंत्रण में बाधा डालती है।

    मुख्य भाग:

    वायु प्रदूषण नियंत्रण में प्रमुख कार्यान्वयन अंतराल:

    • नीतियों और विनियमों का कमज़ोर प्रवर्तन: राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) और ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP) जैसी रूपरेखाओं के बावजूद, राज्यों एवं शहरों में उनका कार्यान्वयन असंगत है।
      • दिल्ली सहित कुछ शहरों में NCAP के अंतर्गत आवंटित धनराशि का पूरा उपयोग नहीं हो पाया है।
    • अपर्याप्त वायु गुणवत्ता निगरानी: 130 शहरों में से 28 में अभी भी सतत् परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन (CAAQMS) नहीं हैं।
    • फसल अवशेष दहन का अप्रभावी प्रबंधन: बायो-डीकंपोज़र और वित्तीय प्रोत्साहन जैसी पहलों के बावजूद पंजाब, हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर पराली दहन किया जा रहा है। दिल्ली के सर्दियों के वायु प्रदूषण का 60% हिस्सा इसी मुद्दे से संबद्ध है।
    • तीव्र शहरीकरण और वाहनों की वृद्धि: भारत के परिवहन क्षेत्र में CO2 उत्सर्जन का 12% से अधिक हिस्सा है, दोपहिया वाहनों एवं बजट कारों में तेज़ी से वृद्धि के कारण यातायात भीड़ और वायु प्रदूषण में वृद्धि हो रही है।
    • बिजली उत्पादन के लिये जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता: स्वच्छ ऊर्जा विकल्पों को अपर्याप्त रूप से अपनाए जाने के कारण कोयला आधारित बिजली संयंत्र सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) उत्सर्जन में 50% से अधिक का योगदान करते हैं।
    • अनियमित औद्योगिक और निर्माण गतिविधियाँ: ईंट भट्टे, सीमेंट उद्योग और निर्माण धूल से निलंबित कणिका पदार्थ (SPM) में बहुत वृद्धि होती है, जिससे दिल्ली, गाज़ियाबाद और कानपुर जैसे शहरों में वायु प्रदूषण बढ़ जाता है।
    • सीमित सार्वजनिक जागरूकता और व्यवहार परिवर्तन: निम्नस्तरीय वायु गुणवत्ता से जुड़े स्वास्थ्य जोखिमों के संदर्भ में जागरूकता की कमी के कारण प्रदूषण नियंत्रण में नागरिक भागीदारी कम बनी हुई है।

    इन चुनौतियों से निपटने के लिये निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं:

    वायु गुणवत्ता प्रबंधन में सुधार के उपाय:

    • नीति कार्यान्वयन और उत्तरदायित्व को सुदृढ़ करना: गैर-अनुपालन के लिये वास्तविक काल दंड के साथ NCAP और GRAP के राज्य-स्तरीय प्रवर्तन को बढ़ाया जाना चाहिये।
      • सीमापार प्रदूषण के मुद्दों के समाधान के लिये क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण कार्य बल बनाया जाना चाहिये।
    • वायु गुणवत्ता निगरानी बुनियादी अवसंरचना का विस्तार: टियर-2 और टियर-3 शहरों में CAAQMS स्टेशनों की संख्या में वृद्धि की जानी चाहिये।
      • वास्तविक काल में प्रदूषण के हॉटस्पॉट पर नज़र रखने के लिये AI-आधारित उपग्रह निगरानी का उपयोग किया जाना चाहिये।
    • क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण के लिये एयरशेड विकास: एक ही वायु बेसिन को साझा करने वाले कई राज्यों में प्रदूषण नियंत्रण को समन्वित करने के लिये एयरशेड प्रबंधन को लागू किया जाना चाहिये।
      • कैलिफोर्निया एयर रिसोर्सेज़ बोर्ड (CARB) मॉडल के समान पड़ोसी राज्यों के बीच संयुक्त कार्य योजनाएँ विकसित की जानी चाहिये।
    • पराली दहन के लिये स्थायी समाधान: किसानों को जैव-अपघटक और फसल अवशेष प्रबंधन तकनीक अंगीकरण के लिये प्रत्यक्ष प्रोत्साहन प्रदान किया जाना चाहिये।
      • कृषि अपशिष्ट को जैव ईंधन में परिवर्तित करने के लिये संपीड़ित बायोगैस (CBG) संयंत्रों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
    • स्वच्छ ऊर्जा और हरित गतिशीलता की ओर संक्रमण: सब्सिडी और सुदृढ़ चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) के अंगीकरण में तीव्रता लाई जानी चाहिये।
      • पुराने, प्रदूषणकारी वाहनों पर अधिक कर लगाए जाने चाहिये तथा सार्वजनिक परिवहन विस्तार को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
      • पुराने कोयला आधारित संयंत्रों को शीघ्र बंद किया जाना चाहिये तथा सौर एवं पवन ऊर्जा को अपनाने को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
    • शहरी नियोजन और औद्योगिक विनियमन: उच्च प्रदूषण वाले क्षेत्रों में हरित शहरी स्थान और ऊर्ध्वाधर उद्यान विकसित किया जाना चाहिये।
      • निर्माण स्थलों पर एंटी-स्मॉग गन, धूल निरोधक तथा उन्नत एयर फिल्टर का उपयोग अनिवार्य किया जाना चाहिये।
    • जन जागरूकता और नागरिक भागीदारी: स्वच्छ भारत अभियान के समान देशव्यापी 'स्वच्छ वायु का अधिकार' अभियान शुरू किया जाना चाहिये।
      • उद्योगों को स्वच्छ प्रौद्योगिकी के अंगीकरण के लिये प्रोत्साहित करने हेतु वायु प्रदूषण सूचकांक आधारित कराधान लागू किया जाना चाहिये।
      • जागरूकता फैलाने के लिये यूट्यूब जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के साथ सहयोग किया जाना चाहिये।
        • उदाहरण के लिये पंचायती राज मंत्रालय ने पारदर्शिता और उत्तरदायित्व के बारे में जागरूकता फैलाने के लिये TVF की पंचायत वेब-सीरीज़ के साथ सहयोग किया है।

    निष्कर्ष:

    भारत के वायु प्रदूषण संकट के लिये सख्त प्रवर्तन, तकनीकी समाधान और सार्वजनिक भागीदारी की आवश्यकता है। स्थायी वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिये सरकारों और नागरिकों के बीच समन्वित प्रयास महत्त्वपूर्ण हैं। तत्काल कार्रवाई के बिना प्रदूषण स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था एवं पर्यावरण को  होने वाला नुकसान जारी रहेगा।

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