भारत में एकल परिवार का प्रचलन संयुक्त परिवार से अधिक होता जा रहा है क्योंकि भारतीय समाज समूह की अपेक्षा व्यक्तिवाद की ओर अधिक आकर्षित हो रहा है। चर्चा कीजिये।
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा:
- सर्वप्रथम संक्षिप्त में प्रश्न के संदर्भ की व्याख्या करें।
- अपने मत/पक्ष का समर्थन न्यायोचित प्रमाणों/तर्कों के साथ करते हुए अंत में निष्कर्ष लिखें।
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यद्यपि भारत में एकल परिवार का प्रचलन संयुक्त परिवार से अधिक होता जा रहा है जिसके विविध कारण हैं तथापि व्यक्तिपरक चरित्र में वृद्धि एकल परिवार की बढ़ती प्रवृत्ति का परिणाम है न कि कारण।
भारत की परंपरागत परिवार व्यवस्था में संरचनात्मक तथा कार्यात्मक दोनों प्रकार के परिवर्तन हुए हैं। भारत की संयुक्त परिवार व्यवस्था कई कारणों से बाधित हुई है। अंग्रेज़ों के आगमन से उनके साथ लाए गए नए आर्थिक संगठनों, विचारधाराओं तथा प्रशासनिक प्रणालियों के कारण सांस्कृतिक स्वरूप में परिवर्तन अवश्यंभावी था।
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के उदय तथा उदारवाद के प्रसार ने संयुक्त परिवार की भावनाओं के समक्ष चुनौती पेश की। उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में संचार के तीव्र साधनों के चलते देश के दूरस्थ हिस्से भी एक-दूसरे के निकट आए। ग्रामीण अर्थव्यवस्था आत्मनिर्भर रहने के बजाय अधिक बाज़ारोन्मुख होती जा रही थी तथा नगरों का उदय हो रहा था। पाश्चात्य शिक्षा नौकरशाही संगठन का परिपालन करती थी। इन परिवर्तनों ने परंपरागत संयुक्त व्यवस्था को प्रभावित किया।
संयुक्त परिवार के विघटन तथा एकल परिवार की बढ़ती प्रवृत्ति के कारणः
- औद्योगीकरणः भारत में अंग्रेज़ों के आगमन के फलस्वरूप औद्योगीकरण की शुरुआत हुई तथा स्वतंत्रता के बाद इसमें तेज़ी आई, जिसके कारण ग्रामीण जनसंख्या का पलायन रोज़गार तथा बेहतर जीवन स्तर के लिये शहरी क्षेत्रों की ओर हुआ। उद्योगों में रोज़गार के कारण युवाओं की अपने परिवार के ऊपर निर्भरता घटी तथा वे अपने परिवार के मुखिया के नियंत्रण से मुक्त हुए।
- नगरीकरणः विगत कुछ दशकों में नगरीय जनसंख्या में तेज़ी से वृद्धि हुई है, जिसकी परिणति एकल परिवार की स्थापना के रूप में हुई है, क्योंकि शहर के निवासियों ने एकल परिवार को चुना है। नगरीकरण ने वैयक्तिकता तथा निजता के ऊपर बल दिया है। ऐसे शिक्षित व्यक्ति जो अच्छे रोज़गार प्राप्त करने में सफल रहते हैं, उनमें देखा गया है कि वे अधिक स्वतंत्रता पसंद करते हैं तथा रिश्तेदारों से सीमित संबंध रखना चाहते हैं। परिणामस्वरूप व्यक्ति अपने व्यावसायिक, शैक्षणिक, धार्मिक, मनोरंजन तथा राजनीतिक जीवन जैसे विभिन्न हितों को पूरा करता है।
- शिक्षाः शिक्षा ने लोगों की अभिवृत्ति, धारणाओं तथा विचारधाराओं आदि को प्रभावित किया है। यह व्यक्तिवाद को बल देती है तथा लोगों को ऐसे रोज़गार के लिये तैयार करती है जो उन्हें अपने पैतृक स्थान पर नहीं मिल सकता है। परिणामस्वरूप लोग अपने पूर्वजों से अलग हो जाते हैं तथा नए रहन-सहन को आत्मसात कर लेते हैं।
- महिलाओं का सशक्तीकरणः शिक्षित भारतीय महिलाएँ आधुनिक पारिवारिक जीवन से प्रभावित हैं, अपने अधिकारों के प्रति सचेत हैं तथा पुरुषों के साथ बराबरी का दर्ज़ा चाहती हैं, वे अपना खर्च स्वयं उठा सकती हैं, जो कि उनमें स्वतंत्रता की भावना का संचार करता है और अंततः व्यक्तिवाद के रूप में परिणत होता है।
- पाश्चात्य संस्कृति का प्रभावः यह स्वतंत्रता तथा समानता की शिक्षा देती है जो कि व्यक्तिवाद को बढ़ावा देती है, साथ ही यह भौतिकवाद को भी बढ़ावा देती है।
- विवाह-व्यवस्था में परिवर्तनः विवाह की आयु में परिवर्तन, जीवनसाथी चुनने की आज़ादी तथा विवाह के प्रति अभिवृत्ति में परिवर्तन ने संयुक्त परिवार को प्रभावित किया है तथा परिवार के ऊपर पितृसत्तात्मक पकड़ ढीली हुई है।
- सामाजिक दायित्वः हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1929य हिंदू महिला संपत्ति का अधिकार अधिनियम, 1937य विशेष विवाह अधिनियम, 1954य हिंदू विवाह अधिनियम, 1955य दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 इत्यादि अधिनियमों ने पारस्परिक संबंधों, परिवार के संयोजन तथा संयुक्त परिवार की स्थिरता को प्रभावित किया है।
- जनाधिक्यः बढ़ती जनसंख्या ने कृषि तथा आवासीय भूमि के ऊपर अत्यधिक दबाव का निर्माण किया है। निर्धन तथा बेरोज़गार लोग जब दूरस्थ स्थानों पर रोज़गार पाते हैं तो स्वतः ही वे पृथक परिवार बनाते हैं तथा धीरे-धीरे उनका संयुक्त परिवार कमज़ोर हो जाता है।
- आवास की समस्याः शहरों में यह विकट समस्या है, जो लोगों को एकल परिवार के निर्माण की ओर प्रेरित करती है।
- कृषि तथा ग्रामोद्योग का पतनः संयुक्त परिवार का उदय कृषि समाज के उत्पाद के रूप में हुआ था तथा इसके विघटन की ज़िम्मेदारी औद्योगीकरण तथा नगरीकरण को दी जा सकती है।
- संचार तथा परिवहन का प्रसार
- पारिवारिक झगड़ेः पारिवारिक झगड़ों के कारण संयुक्त परिवार का विघटन हो रहा है। संपत्ति, पारिवारिक आय तथा व्यय, कार्यों का असमान वितरण इत्यादि झगडे़ की वज़ह हैं।
निष्कर्ष :
ऊपरोक्त प्रमाणों तथा तर्कों से यह स्पष्ट है कि समाज के व्यक्तिवादी घटनाओं तथा एकल परिवार की बढ़ती प्रवृत्ति के लिये कई कारक ज़िम्मेदार हैं। भारतीय समाज व्यक्तिवाद की ओर विवशता में बढ़ रहा है न कि विकल्प के तौर पर।
इसके बावजूद भारतीय समाज समूहवादी तथा सामाजिक एकजुटता और परस्पर निर्भरता को बढ़ावा देता है। भारतीय समाज समूहवाद का सार, मूल्यों तथा लाभों को जानता है। आज भी परिवार एक संसाधन की तरह है। यद्यपि संयुक्त परिवार से एकल परिवार की प्रवृत्ति बढ़ रही है परंतु परिवार अपने साथ एक समृद्ध विरासत रखता है।