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प्रश्न :
प्रश्न. भारत के परमाणु सिद्धांत और समकालीन भू-राजनीतिक परिवेश में इसकी प्रासंगिकता पर चर्चा कीजिये। बदलती वैश्विक सुरक्षा गतिशीलता को देखते हुए क्या भारत को अपनी ‘नो-फर्स्ट-यूज़’ नीति को संशोधित करने पर विचार करना चाहिये? (150 शब्द)
11 Mar, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंधउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत के परमाणु सिद्धांत के संदर्भ में जानकारी के साथ उत्तर दीजिये।
- भारत के परमाणु सिद्धांत के प्रमुख सिद्धांत बताते हुए वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य में भारत के परमाणु सिद्धांत की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालिये।
- NFU को संशोधित करने के पक्ष और विपक्ष में तर्क दीजिये।
- भारत की परमाणु नीति को सुदृढ़ करने के उपाय सुझाइये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय
भारत का परमाणु सिद्धांत इसकी नो-फर्स्ट-यूज़ (NFU) नीति और विश्वसनीय न्यूनतम अपरोध (CMD) पर आधारित है, जो क्षेत्र में रणनीतिक स्थिरता सुनिश्चित करता है।
- वर्ष 1998 में आधिकारिक तौर पर स्वयं को परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र घोषित करने के बाद से भारत ने रक्षात्मक रुख अपनाया है तथा आक्रामकता की बजाय प्रतिरोध पर ज़ोर दिया है।
मुख्य भाग:
भारत का परमाणु सिद्धांत: प्रमुख सिद्धांत
- नो-फर्स्ट-यूज़ (NFU) नीति: भारत ने परमाणु हथियारों का प्रयोग न करने की प्रतिज्ञा की है, जब तक कि उस पर पहले परमाणु हमला न किया जाए।
- विश्वसनीय न्यूनतम अपरोध (CMD): भारत के पास अपरोध के लिये पर्याप्त परमाणु शस्त्रागार है, लेकिन आक्रामक रुख के लिये नहीं।
- व्यापक जवाबी कार्रवाई: भारत या उसकी सेनाओं पर कोई भी परमाणु हमला व्यापक जवाबी कार्रवाई को आमंत्रित करेगा, जिससे अस्वीकार्य क्षति होगी।
- गैर-परमाणु राज्यों के विरुद्ध परमाणु हथियारों का प्रयोग न करना: भारत गैर-परमाणु राज्यों के विरुद्ध परमाणु हथियारों का प्रयोग न करने के लिये प्रतिबद्ध है।
वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य में भारत के परमाणु सिद्धांत की प्रासंगिकता
- निरस्त्रीकरण समर्थन के साथ परमाणु-अपरोध को संतुलित करना: भारत निरस्त्रीकरण सम्मेलन (CD), संयुक्त राष्ट्र (UN) और IAEA जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सार्वभौमिक निरस्त्रीकरण के लिये समयबद्ध कार्यढाँचे का आह्वान करता है।
- हालाँकि, वर्ष 2023 तक भारत के पास लगभग 160 परमाणु हथियार थे तथा K-4 जैसी पनडुब्बी-लॉन्च बैलिस्टिक मिसाइलों (SLBM) सहित इसका निरंतर आधुनिकीकरण, अप्रसार का समर्थन करते हुए भी परमाणु-अपरोध को सुदृढ़ करने की प्रतिबद्धता का संकेत देता है।
- चीन-पाकिस्तान परमाणु धुरी का प्रबंधन: भारत को चीन और पाकिस्तान से दो मोर्चों पर परमाणु खतरे का सामना करना पड़ रहा है, जिससे परमाणु-अपरोध एक रणनीतिक आवश्यकता बन गई है।
- चीन तेज़ी से अपने परमाणु त्रिकोण, हाइपरसोनिक मिसाइलों और MIRV क्षमताओं का आधुनिकीकरण कर रहा है, जिससे भारत की सुरक्षा के लिये चिंताएँ बढ़ रही हैं।
- पाकिस्तान की पूर्ण-स्पेक्ट्रम अपरोध नीति में कम क्षमता वाले TNW शामिल हैं, जिनका उपयोग पारंपरिक संघर्षों में किया जा सकता है, जो भारत के व्यापक जवाबी हमले के सिद्धांत को चुनौती देता है।
- उभरती हुई प्रौद्योगिकियाँ और परमाणु-अपरोध का भविष्य: हाइपरसोनिक हथियारों, साइबर वॉर और AI-संचालित परमाणु कमांड प्रणालियों की शुरूआत भारत की परमाणु स्थिति के लिये नई चुनौतियाँ पेश करती है।
- वर्ष 2019 के कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र साइबर हमले ने भारत के परमाणु बुनियादी अवसंरचना की कमज़ोरियों को प्रदर्शित किया।
क्या भारत को अपनी नो-फर्स्ट-यूज़ (NFU) नीति में संशोधन करना चाहिये?
NFU को संशोधित करने के पक्ष में तर्क
NFU को संशोधित करने के विरुद्ध तर्क
1. पाकिस्तान के सामरिक परमाणु हथियारों के अनुकूल होना- पाकिस्तान के सामरिक परमाणु हथियार परमाणु सीमा को कम करते हैं, जिससे भारत की बड़े पैमाने पर जवाबी कार्रवाई कम विश्वसनीय हो जाती है। लचीला रुख अपरोध को मज़बूत कर सकता है।
1. भारत की जिम्मेदार छवि- NFU भारत की वैश्विक निरस्त्रीकरण प्रतिबद्धता के साथ संरेखित है और कूटनीतिक विश्वसनीयता को बढ़ाता है। यह बदलाव बहुत बड़ा हो सकता है।
2. चीन के परमाणु विस्तार का मुकाबला करना- चीन का बढ़ता शस्त्रागार और इंडो-पैसिफिक में उसकी आक्रामकता भारत की प्रतिरोधक क्षमता को चुनौती देती है। एक अधिक अस्पष्ट सिद्धांत अपरोधक क्षमता को प्रबल कर सकता है।
2. दक्षिण एशियाई हथियारों की दौड़ से बचना- NFU से दूर जाने से पाकिस्तान अधिक आक्रामक परमाणु रुख अपना सकता है, जिससे अस्थिरता बढ़ सकती है।
3. रणनीतिक संकेत - एक लचीली परमाणु नीति, विरोधियों को यह मानने से रोकती है कि भारत की प्रतिक्रिया हमेशा संयमित होगी, जिससे गलत अनुमानों में कमी आएगी।
3. सेकंड स्ट्राइक को दृढ़ करना - NFU को संशोधित करने के बजाय, भारत विभिन्न तरीकों से अपरोध को दृढ़ कर सकता है।
भारत की परमाणु रणनीति को सुदृढ़ करना:
- भारत के परमाणु-अपरोध का आधुनिकीकरण
- द्वितीय-आक्रमण क्षमता को बढ़ाने के लिये मल्टीपल इंडिपेंडेंटली टार्गेटेबल रीएंट्री व्हीकल्स (MIRV) का विकास किया जाना चाहिये।
- सुनिश्चित प्रतिरोध के लिये भारत के पनडुब्बी-प्रक्षेपित बैलिस्टिक मिसाइल (SLBM) कार्यक्रम को आगे बढ़ाया जाना चाहिये।
- रणनीतिक संचार और अस्पष्टता को बढ़ाना
- NFU को बरकरार रखने की आवश्यकता है, लेकिन अपरोध लचीलेपन को बढ़ाने के लिये रणनीतिक अस्पष्टता लागू किया जाना चाहिये।
- परमाणु जवाबी कार्रवाई के लिये शर्तें स्पष्ट की जानी चाहिये तथा यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि विरोधी भारत के सिद्धांत का फायदा न उठा सकें।
- वैश्विक शस्त्र नियंत्रण में भारत की कूटनीतिक भागीदारी का विस्तार
- चीन और पाकिस्तान को समान परमाणु संयम व्यवस्था में लाने के लिये बहुपक्षीय नो फर्स्ट यूज़ (NFU) संधि का समर्थन किया जाना चाहिये।
- परमाणु अप्रसार मानदंडों को आकार देने के लिये NSG, IAEA और वैश्विक हथियार नियंत्रण पहल के साथ जुड़ाव को मज़बूत किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष:
यद्यपि फर्स्ट-यूज़ (FU) नीति अपनाने से तनाव बढ़ने का खतरा बढ़ सकता है, किंतु सेकंड स्ट्राइक क्षमताओं को सुदृढ़ करना, रणनीतिक अस्पष्टता को बढ़ाना तथा परमाणु अपरोध को आधुनिक बनाना अधिक संतुलित और उत्तरदायी दृष्टिकोण होगा।
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