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प्रश्न :
अदिति, एक भारतीय वन सेवा (IFS) अधिकारी हैं, जो जनजाति बहुल क्षेत्र में प्रभागीय वन अधिकारी (DFOO) के पद पर कार्यरत हैं। उन्हें जनजातीय नेताओं के माध्यम से एक निजी बुनियादी अवसंरचना कंपनी द्वारा वन भूमि के बड़े हिस्से का निर्वनीकरण करने की शिकायतें मिली हैं। उनकी जाँच से पुष्टि होती है कि परियोजना वन अधिकार अधिनियम का उल्लंघन करती है, लेकिन राज्य सरकार इसे एक प्रमुख विकास पहल के रूप में बढ़ावा देती है। जनजातीय विस्थापन और पारिस्थितिकी विनाश के डर से परियोजना का सख्त विरोध करते हैं, जबकि कुछ कार्यकर्त्ता विरोध की धमकी देते हैं।
जैसे ही अदिति कार्रवाई करने के लिये तैयार होती है, मुख्य सचिव उसे ‘विकास के व्यापक हित’ में ‘सहयोग’ करने की सलाह देते हैं और यह संकेत देते हैं कि अगर वह विरोध करती है तो उसका तबादला भी हो सकता है। अदिति अब दुविधा का सामना कर रही है। अगर वह परियोजना पर रोक लगाती है, तो उसे राजनीतिक प्रतिक्रिया और कॅरियर के परिणामों का जोखिम उठाना पड़ता है। अगर वह ऐसा करने देती है, तो वह अपनी ईमानदारी और कानून से समझौता करती है। अगर वह जानकारी लीक करती है, तो वह राष्ट्रीय जाँच को आमंत्रित करती है, लेकिन उस पर कदाचार का आरोप लगाया जा सकता है।
प्रश्न:
1. इस मामले में कानूनी दायित्वों, शासन नैतिकता, पर्यावरण न्याय और व्यक्तिगत अखंडता पर ध्यान केंद्रित करते हुए नैतिक दुविधाओं का परीक्षण कीजिये।
07 Mar, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़
2. एक नैतिक लोक सेवक के रूप में, अदिति के लिये उपलब्ध संभावित कार्यवाई के तरीकों और उनके नैतिक एवं व्यावसायिक निहितार्थों का विश्लेषण कीजिये।
3. पारिस्थितिक संधारणीयता और हितधारक भागीदारी सुनिश्चित करते हुए भारत की पर्यावरणीय अनुमोदन प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के उपाय सुझाइये।उत्तर :
परिचय:
भारतीय वन सेवा की अधिकारी अदिति को उस समय नैतिक दुविधा का सामना करना पड़ा जब एक निजी कंपनी ने वन अधिकार अधिनियम, 2006 का उल्लंघन करते हुए राज्य समर्थित विकास परियोजना के लिये अवैध रूप से वन भूमि के बड़े हिस्से का निर्वनीकरण किया।
- यद्यपि जनजातीय समुदाय और कार्यकर्त्ता विस्थापन एवं पारिस्थितिकीय क्षति के कारण परियोजना का विरोध कर रहे हैं, मुख्य सचिव उन पर सहयोग करने के लिये दबाव डाल रहे हैं और संकेत दे रहे हैं कि यदि उन्होंने विरोध किया तो उनका स्थानांतरण कर दिया जाएगा।
मुख्य भाग:
1. इस मामले में नैतिक दुविधाएँ:
- कानूनी दायित्व बनाम राजनीतिक दबाव: अदिति वन अधिकार अधिनियम, 2006 से बंधी हुई है, जो जनजातीय समुदायों को उनकी भूमि पर कानूनी संरक्षण प्रदान करता है।
- हालाँकि, राज्य सरकार इस परियोजना को एक बड़ी विकास पहल के रूप में देखती है और उनसे सहयोग की अपेक्षा करती है।
- अगर वह कानून लागू करती है, तो वह राजनीतिक अधिकारियों को नाराज़ करने का जोखिम उठाती है। अगर वह राजनीतिक दबाव का पालन करती है, तो वह कानूनी और नैतिक दोनों ज़िम्मेदारियों का उल्लंघन करती है।
- शासन नैतिकता बनाम कैरियर परिणाम: एक लोक सेवक के रूप में, अदिति से ईमानदारी, निष्पक्षता और न्याय को बनाए रखने की उम्मीद की जाती है।
- मुख्य सचिव का ‘सहयोग’ करने का सुझाव और स्थानांतरण की निहित धमकी प्रशासनिक स्वतंत्रता के संदर्भ में चिंताएँ बढ़ाती है।
- अगर वह विरोध करती है, तो उसे अपने करियर में नुकसान उठाना पड़ सकता है। अगर वह झुकती है तो वह शासन की नैतिकता और संस्थाओं में जनता के भरोसे से समझौता करती है।
- पर्यावरणीय न्याय बनाम आर्थिक विकास: बुनियादी अवसंरचना परियोजना नौकरियों का सृजन कर सकती है और स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे सकती है, लेकिन इससे जनजातीय विस्थापन और पारिस्थितिक विनाश का भी खतरा है।
- यद्यपि आर्थिक विकास महत्त्वपूर्ण है, पर्यावरण संरक्षण एक संवैधानिक कर्त्तव्य है (अनुच्छेद 48A और अनुच्छेद 51A(g))।
- अगर अदिति इस परियोजना को अनुमति देती हैं, तो वे दीर्घकालिक पर्यावरणीय प्रभाव की अनदेखी करती हैं। अगर वे इसे रोकती हैं, तो उन्हें विकास में बाधा डालने वाला माना जाएगा।
- पारदर्शिता बनाम प्रशासनिक प्रोटोकॉल: जनता को कानूनी उल्लंघनों के बारे में जानकारी लीक करने से राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित हो सकता है और जवाबदेही तय हो सकती है।
- हालाँकि, ऐसी कार्रवाई को कदाचार या अवज्ञा माना जा सकता है, जिससे उसकी स्थिति खतरे में पड़ सकती है।
- अगर वह चुप रहती है, तो उच्च अधिकारियों द्वारा मामले को दबा दिया जा सकता है। उसे यह तय करना होगा कि क्या उसे सिस्टम के भीतर काम करना है या न्याय सुनिश्चित करने के लिये कोई साहसिक कदम उठाना है।
2. एक नैतिक लोक सेवक के रूप में, अदिति के लिये उपलब्ध संभावित कार्यवाई के तरीकों और उनके नैतिक एवं व्यावसायिक निहितार्थों का विश्लेषण कीजिये।
- कानून लागू करना और परियोजना रोकना:
- अदिति निजी कंपनी को कानूनी नोटिस जारी करके, वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत मामला दर्ज करके और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) से स्थगन आदेश प्राप्त करके सख्त कार्रवाई कर सकती है।
- यह विधिक सत्यनिष्ठा, पर्यावरणीय न्याय और जनजातीय अधिकारों को कायम रखता है।
- हालाँकि, यह दृष्टिकोण सुदृढ़ राजनीतिक प्रतिशोध को भड़का सकता है, जिसमें संभावित स्थानांतरण या कॅरियर में ठहराव भी शामिल है।
- यद्यपि यह कानूनी और नैतिक दृष्टि से सही है, लेकिन इसमें रणनीतिक कूटनीति का अभाव है, जिसके कारण यह एक उच्च जोखिम वाला विकल्प है।
- अदिति निजी कंपनी को कानूनी नोटिस जारी करके, वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत मामला दर्ज करके और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) से स्थगन आदेश प्राप्त करके सख्त कार्रवाई कर सकती है।
- प्रशासनिक चैनलों और उच्च अधिकारियों को शामिल करना
- एकतरफा कार्रवाई करने के बजाय अदिति उचित प्रशासनिक चैनलों के माध्यम से इस मुद्दे को आगे बढ़ा सकती है, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) को सूचित कर सकती है तथा केंद्र सरकार या न्यायपालिका से हस्तक्षेप की मांग कर सकती हैं।
- वह परियोजना को रोकने या संशोधित करने को उचित ठहराने के लिये एक विस्तृत पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) रिपोर्ट भी प्रस्तुत कर सकती है।
- हालाँकि, उच्च प्रशासनिक हस्तक्षेप में समय लग सकता है और यह जोखिम भी है कि राजनीतिक प्रभाव कार्रवाई को दबा सकता है या उसमें विलंब कर सकता है, जिससे जनजातीय समुदायों एवं पर्यावरण को निरंतर नुकसान पहुँच सकता है।
- एकतरफा कार्रवाई करने के बजाय अदिति उचित प्रशासनिक चैनलों के माध्यम से इस मुद्दे को आगे बढ़ा सकती है, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) को सूचित कर सकती है तथा केंद्र सरकार या न्यायपालिका से हस्तक्षेप की मांग कर सकती हैं।
- जनजातीय समुदायों, सरकार और कंपनी के बीच मध्यस्थता
- अदिति जनजातीय नेताओं, पर्यावरण विशेषज्ञों, कंपनी प्रतिनिधियों और नीति निर्माताओं को एक साथ लाकर एक मध्यम मार्ग निकालने के लिये बहु-हितधारक संवाद शुरू कर सकती हैं।
- वह वैकल्पिक परियोजना स्थलों का समर्थन कर सकती हैं, जनजातीय समुदायों के लिये उचित पुनर्वास और मुआवज़ा सुनिश्चित कर सकती हैं तथा वनरोपण एवं पारिस्थितिकी-संवेदनशील निर्माण जैसे सख्त पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों पर बल दे सकती हैं।
- यह दृष्टिकोण व्यावहारिक नेतृत्व, संघर्ष समाधान और नैतिक कूटनीति को प्रदर्शित करता है।
- हालाँकि, यदि वार्ता विफल हो जाती है या सरकार सहयोग करने से इनकार कर देती है, तो उस पर निष्क्रियता या तुष्टिकरण का आरोप लगाया जा सकता है तथा जनजातीय समुदायों का प्रशासन पर विश्वास खत्म हो सकता है।
- अदिति जनजातीय नेताओं, पर्यावरण विशेषज्ञों, कंपनी प्रतिनिधियों और नीति निर्माताओं को एक साथ लाकर एक मध्यम मार्ग निकालने के लिये बहु-हितधारक संवाद शुरू कर सकती हैं।
- रणनीतिक मुखबिरी का प्रयोग करना
- यदि सभी प्रशासनिक और कूटनीतिक प्रयास विफल हो जाते हैं, तो अदिति व्हिसल ब्लोअर्स संरक्षण अधिनियम, 2014 का प्रयोग करके सार्वजनिक दबाव बनाने के लिये स्वतंत्र पर्यावरण एजेंसियों, मीडिया या न्यायपालिका को जानकारी लीक कर सकती है।
- इससे शासन में जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित होगी।
- हालाँकि, यह एक उच्च जोखिम वाला दृष्टिकोण है जिसे कदाचार या अवज्ञा के रूप में देखा जा सकता है, जिसके परिणामस्वरूप अनुशासनात्मक कार्रवाई या बर्खास्तगी हो सकती है।
- इससे प्रशासनिक अस्थिरता भी उत्पन्न हो सकती है, जिससे भविष्य के शासन में राजनीतिक हस्तक्षेप हो सकता है। हालाँकि चरम मामलों में नैतिक रूप से उचित है, लेकिन इसे अंतिम उपाय के रूप में ही अपनाया जाना चाहिये।
- यदि सभी प्रशासनिक और कूटनीतिक प्रयास विफल हो जाते हैं, तो अदिति व्हिसल ब्लोअर्स संरक्षण अधिनियम, 2014 का प्रयोग करके सार्वजनिक दबाव बनाने के लिये स्वतंत्र पर्यावरण एजेंसियों, मीडिया या न्यायपालिका को जानकारी लीक कर सकती है।
- मध्य मार्ग अपनाना: शर्तों का सीमित अनुपालन
- अदिति परियोजना को जारी रखने की अनुमति दे सकती हैं, लेकिन कड़े पर्यावरणीय नियम और सामुदायिक सुरक्षा उपाय लागू कर सकती हैं।
- इसमें वनों का शून्य वनीकरण, जनजातीय समुदायों का न्यूनतम विस्थापन और संवहनीय निर्माण प्रथाओं को सुनिश्चित करना शामिल है।
- वह जनजातीय कल्याण, स्वास्थ्य सेवा और कौशल विकास में कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) निवेश के लिये भी बल दे सकती हैं।
- यह विकल्प विकास को नैतिक जिम्मेदारी के साथ संतुलित करता है, लेकिन इसमें बहुत अधिक समझौता करने का जोखिम भी है।
- अदिति परियोजना को जारी रखने की अनुमति दे सकती हैं, लेकिन कड़े पर्यावरणीय नियम और सामुदायिक सुरक्षा उपाय लागू कर सकती हैं।
सबसे व्यावहारिक कार्यवाही:
अदिति को वैधानिकता, शासन नैतिकता और व्यावहारिक बाधाओं के बीच संतुलन बनाने के लिये विकल्प 2, 3 और 5 का संयोजन अपनाना चाहिये। उसे यह करना चाहिये:
- कानूनी अनुपालन और संस्थागत समर्थन सुनिश्चित करने के लिये प्रशासनिक चैनलों के माध्यम से इस मुद्दे को आगे बढ़ाया जाना चाहिये।
- हितधारकों के बीच मध्यस्थता करके एक स्थायी समाधान की तलाश की जानी चाहिये जो पर्यावरणीय क्षति को न्यूनतम करे तथा जनजातीय अधिकारों का सम्मान करे।
- सरकार के साथ सीधे टकराव से बचते हुए पर्यावरण और जनजातीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये परियोजना पर सख्त शर्तें लागू किया जाना चाहिये।
3. भारत की पर्यावरण मंजूरी प्रक्रिया को कारगर बनाने के उपाय:
- विनियामक कार्यढाँचे को सुदृढ़ बनाना
- पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) प्रक्रिया को वैज्ञानिक रूप से कठोर और स्वतंत्र बनाया जाना चाहिये:
- सीमित क्षेत्र सत्यापन के साथ प्रो-फॉर्मा मंजूरी के स्थान पर संचयी प्रभाव आकलन को अनिवार्य बनाया जाना चाहिये।
- नवीनतम जलवायु परिवर्तन और जैव-विविधता अनुसंधान के आधार पर पर्यावरण मानदंडों को अद्यतन किया जाना चाहिये।
- पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) प्रक्रिया को वैज्ञानिक रूप से कठोर और स्वतंत्र बनाया जाना चाहिये:
- पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाना
- भ्रष्टाचार और अनुचित राजनीतिक प्रभाव को रोकने के लिये, मंजूरी प्रक्रिया इस प्रकार होनी चाहिये:
- EIA रिपोर्ट, विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों और मंजूरी देने या अस्वीकार करने के कारणों के वास्तविक काल प्रकटीकरण के अधीन आवेदनों, अनुमोदनों व अस्वीकृतियों पर नज़र रखने के लिये एक ऑनलाइन सार्वजनिक निगरानी प्रणाली के माध्यम से डिजिटलीकरण किया जाना चाहिये।
- तृतीय पक्ष के ऑडिट को मंजूरी के बाद अनुपालन निगरानी के साथ मज़बूत किया जाना चाहिये।
- भ्रष्टाचार और अनुचित राजनीतिक प्रभाव को रोकने के लिये, मंजूरी प्रक्रिया इस प्रकार होनी चाहिये:
- सार्थक हितधारक भागीदारी को बढ़ावा देना
- स्थानीय समुदायों, पर्यावरण विशेषज्ञों और नागरिक समाज समूहों को निर्णय लेने में अधिक सशक्त भूमिका निभाना:
- सार्वजनिक सुनवाई स्थानीय भाषाओं में तथा पारदर्शी एवं सुलभ तरीके से की जानी चाहिये।
- स्थानीय और जनजातीय समुदायों के पारंपरिक पारिस्थितिक ज्ञान को पर्यावरणीय आकलन में शामिल किया जाना चाहिये।
- शिकायत निवारण तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये ताकि प्रभावित समुदायों को अन्यायपूर्ण मंजूरियों को चुनौती देने का अवसर मिल सके।
- स्थानीय समुदायों, पर्यावरण विशेषज्ञों और नागरिक समाज समूहों को निर्णय लेने में अधिक सशक्त भूमिका निभाना:
- सतत विकास लक्ष्यों (SDG) को मंजूरी मानदंडों में एकीकृत करना
- EC प्रक्रिया को भारत की सतत् विकास लक्ष्य प्रतिबद्धताओं के अनुरूप होना चाहिये, विशेष रूप से:
- SDG 13 (जलवायु परिवर्तन कार्रवाई) → परियोजनाओं में कार्बन शून्य उपायों को एकीकृत करना होगा।
- SDG 15 (थलीय जीवों की सुरक्षा) → जैव-विविधता संरक्षण के सख्त प्रोटोकॉल अनिवार्य किये जाने चाहिये।
- SDG 6 (स्वच्छ जल और साफ-सफाई) → जल निकायों को प्रभावित करने वाली परियोजनाओं की नियमबद्ध समीक्षा की जानी चाहिये।
- इससे यह सुनिश्चित होता है कि आर्थिक विकास दीर्घकालिक संधारणीयता की कीमत पर न हो।
- EC प्रक्रिया को भारत की सतत् विकास लक्ष्य प्रतिबद्धताओं के अनुरूप होना चाहिये, विशेष रूप से:
- बेहतर पर्यावरणीय निर्णय लेने के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना
- AI, उपग्रह इमेजिंग और GIS मैपिंग के अंगीकरण से पर्यावरण निगरानी अधिक वैज्ञानिक एवं डेटा-संचालित हो सकती है।
- रियल टाइम रिमोट सेंसिंग से वनों की कटाई, भूमि उपयोग में परिवर्तन और प्रदूषण के स्तर का पता लगाया जा सकता है।
- AI-संचालित प्रभाव आकलन दीर्घकालिक पारिस्थितिक क्षरण के मूल्यांकन में सटीकता में सुधार कर सकता है।
- निकासी के बाद अनुपालन और दंड को सख्त करना
- मंजूरी एक बार की स्वीकृति नहीं होनी चाहिये बल्कि एक सतत् प्रक्रिया होनी चाहिये जिसमें अनुपालन की सख्त निगरानी की जाती है। उपायों में शामिल हैं:
- स्वतंत्र एजेंसियों द्वारा अनिवार्य आवधिक पर्यावरणीय लेखा परीक्षा।
- उल्लंघन के लिये कठोर दंड, जिसमें गैर-अनुपालन के लिये मंजूरी रद्द करना भी शामिल है।
- इससे उद्योगों को नियमों की अनदेखी करने से रोका जा सकेगा तथा जिम्मेदार पर्यावरणीय प्रथाओं को बढ़ावा मिलेगा।
- मंजूरी एक बार की स्वीकृति नहीं होनी चाहिये बल्कि एक सतत् प्रक्रिया होनी चाहिये जिसमें अनुपालन की सख्त निगरानी की जाती है। उपायों में शामिल हैं:
निष्कर्ष:
संतुलित पर्यावरणीय मंजूरी प्रक्रिया को पारिस्थितिकी अखंडता या हितधारक अधिकारों से समझौता किये बिना कुशल निर्णय लेना सुनिश्चित करना चाहिये। पारदर्शिता, प्रौद्योगिकी, सामुदायिक भागीदारी एवं सख्त मंजूरी के बाद की निगरानी को एकीकृत करके, भारत अपने प्राकृतिक संसाधनों और कमज़ोर समुदायों की सुरक्षा करते हुए सतत् विकास प्राप्त कर सकता है।
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