नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 16 जनवरी से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. आपदा जोखिम न्यूनीकरण में देशज और पारंपरिक ज्ञान की भूमिका पर चर्चा कीजिये। विश्लेषण कीजिये कि स्थानीय समुदाय प्रथाओं को वैज्ञानिक दृष्टिकोणों के साथ किस प्रकार एकीकृत किया जा सकता है, ताकि अधिक प्रभावी आपदा प्रबंधन रणनीतियाँ विकसित की जा सकें। (250 शब्द)

    05 Mar, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 आपदा प्रबंधन

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • आपदा जोखिम न्यूनीकरण तथा देशज एवं पारंपरिक ज्ञान की भूमिका के बारे में संक्षिप्त जानकारी के साथ उत्तर दीजिये। 
    • आपदा जोखिम न्यूनीकरण में देशज और पारंपरिक ज्ञान की भूमिका के लिये प्रमुख तर्क एवं उदाहरण दीजिये। 
    • प्रभावी आपदा प्रबंधन के लिये देशज ज्ञान को वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ एकीकृत करने के उपाय सुझाइये। 
    • आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये सेंदाई फ्रेमवर्क का उल्लेख करते हुए निष्कर्ष निकालें। 

    परिचय: 

    आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) के लिये एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है जो वैज्ञानिक प्रगति को देशज और पारंपरिक ज्ञान (ITK) के साथ एकीकृत करता है। सदियों से, स्थानीय समुदायों ने प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने के लिये स्थानीय रूप से अनुकूली रणनीति विकसित की है, जो समुत्थानशक्ति प्रदर्शित करती है। 

    मुख्य भाग: 

    आपदा जोखिम न्यूनीकरण में स्वदेशी और पारंपरिक ज्ञान की भूमिका

    • पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ और आपदा पूर्वानुमान
      • आपदाओं का पूर्वानुमान करने के लिये स्थानीय समुदाय प्राकृतिक संकेतकों का उपयोग करते हैं:
        • सिक्किम की लेप्चा जनजाति भू-स्खलन और बाढ़ का पूर्वानुमान लगाने के लिये पशुओं के व्यवहार, बादलों की संरचना और हवा के पैटर्न का निरीक्षण करती है।
    • संधारणीय बुनियादी अवसंरचना और अनुकूली भवन-निर्माण कला
      • बाढ़ सहिष्णु आवास:
        • असम के माजुली द्वीप का मिशिंग समुदाय, संभावित बाढ़ स्तर से ऊपर चांग-घर (खंभे पर बने घर) बनाता है, जिससे मानसून के दौरान होने वाली क्षति कम होती है।
        • बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में बाँस और बेंत से निर्माण लचीलापन और संरचनात्मक मज़बूती सुनिश्चित करता है।
      • भूकंप प्रतिरोधी आवास:
        • सिक्किम का भूटिया समुदाय इंटरलॉकिंग बीम के साथ लकड़ी के घर बनाता है, जिससे भूकंपीय गतिविधियों के दौरान लचीलापन बना रहता है।
    • प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन और आपदा न्यूनीकरण
      • मैंग्रोव वनरोपण:
        • सुंदरबन समुदायों ने पारंपरिक रूप से मैंग्रोव वनों को संरक्षित किया है, जो चक्रवातों और तूफानी लहरों के विरुद्ध प्राकृतिक अवरोधक के रूप में कार्य करते हैं।
      • वेदिका कृषि और बाढ़ नियंत्रण:
        • नगालैंड में ज़ाबो कृषि प्रणाली जल संरक्षण और मृदा प्रतिधारण को एकीकृत करती है, जिससे भारी वर्षा के दौरान भूस्खलन का खतरा कम हो जाता है।
      • पारंपरिक जल संचयन:
        • राजस्थान में जोहड़ (मिट्टी के छोटे तालाब या पोखर) भूजल पुनर्भरण में सुधार करके सूखे के प्रभाव को कम करने में मदद करते हैं।

    प्रभावी आपदा प्रबंधन के लिये देशज ज्ञान को वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ एकीकृत करना: 

    • प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों को सुदृढ़ बनाना: पीढ़ियों से चला आ रहा देशज ज्ञान, पर्यावरणीय पैटर्न के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान करता है। 
      • आधुनिक प्रौद्योगिकी के साथ एकीकृत होने पर यह आपदा तैयारी और मोचन को बढ़ाता है।
      • उदाहरण: बांग्लादेश और ओडिशा में, स्थानीय मछुआरे लहरों के पैटर्न और हवा की दिशाओं का निरीक्षण करते हैं, जिसे मौसम संबंधी आँकड़ों के साथ मिलाने पर चक्रवात के पूर्वानुमान की सटीकता में सुधार होता है।
    • आपदा-प्रतिरोधी बुनियादी अवसंरचना के लिये पारंपरिक और आधुनिक इंजीनियरिंग का संयोजन: पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक तकनीकों के साथ मिलाने से आपदा-प्रतिरोधी क्षमता प्रबल होती है।
      • उदाहरण के लिये, असम में चांग-घरों (खंभे पर बने घर) को आधुनिक बाढ़-रोधी सामग्रियों जैसे कि प्रबलित बाँस और काष्ठ के साथ जोड़कर अधिक मज़बूत तथा टिकाऊ संरचना बनाई जा सकती है।
      • संधारणीय पारिस्थितिकी तंत्र आधारित आपदा प्रबंधन को बढ़ावा देना: स्वदेशी समुदायों की मदद से प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्जीवित करने से जलवायु अनुकूलन में वृद्धि होती है। 
        • गुजरात और राजस्थान में पारंपरिक बावड़ियों (बाओलियों) का पुनर्भरण किया जा सकता है और सूखे तथा जल संकट से निपटने के लिये इन्हें आधुनिक वर्षा जल संचयन तकनीकों से जोड़ा जा सकता है।
    • नीति एकीकरण और स्थानीय शासन
      • आपदा नीतियों में स्वदेशी प्रथाओं को मान्यता: NDMA पारंपरिक प्रथाओं को राष्ट्रीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यढाँचे में संस्थागत बना सकता है।
      • प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण: सरकारें और गैर सरकारी संगठन समुदायों को अपनी मूल प्रथाओं को वैज्ञानिक मान्यता के साथ दस्तावेज़ीकृत और परिष्कृत करने के लिये प्रशिक्षित कर सकते हैं, जिससे व्यापक रूप से उनका अंगीकरण सुनिश्चित हो सके।

    निष्कर्ष: 

    आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये सेंदाई फ्रेमवर्क पर आधारित प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों, सुदृढ़ अवसंरचना और स्थायी संसाधन प्रबंधन के माध्यम से आपदा जोखिम न्यूनीकरण में स्वदेशी ज्ञान एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2