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प्रश्न :
प्रश्न. हिमालय में बढ़ती ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) की घटनाओं के पीछे के प्रमुख कारणों की व्याख्या कीजिये और इसके शमन तथा प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली विकसित करने के लिये प्रभावी रणनीतियाँ सुझाइये। (250 शब्द)
03 Mar, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोलउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड के संदर्भ में संक्षिप्त जानकारी के साथ उत्तर दीजिये।
- हिमालय में बढ़ते GLOF के कारण बताइये।
- GLOF के शमन रणनीतियों और पूर्व चेतावनी प्रणालियों का सुझाव दीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) ऐसी विनाशकारी घटना है जिसमें प्राकृतिक बाँधों, जैसे कि हिमोढ़ या हिम अवरोधों के क्षतिग्रस्त होने के कारण ग्लेशियल झीलों/हिमनदों से अचानक विशाल मात्रा में जल ढह कर नीचे के क्षेत्रों में बह जाता है। हजारों ग्लेशियल झीलों की उपस्थिति के कारण हिमालयी क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन, भू-वैज्ञानिक अस्थिरता और मानवजनित गतिविधियों के कारण GLOF घटनाओं में वृद्धि हो रही है।
मुख्य भाग:
हिमालय में बढ़ते GLOF के कारण:
- जलवायु परिवर्तन और बढ़ता तापमान
- ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियरों/हिमनदों के विगलन की गति तीव्र हो गई है, जिससे ग्लेशियरों पर बनी झीलों की संख्या और आयतन में वृद्धि हो रही है।
- केंद्रीय जल आयोग (CWC) ने भारत में हिमनद झील क्षेत्र में 33.7% की वृद्धि (वर्ष 2011-2024) की सूचना दी है, जो GLOF के उच्च जोखिम को दर्शाता है।
- हिमोढ़ और हिम अवरोध अस्थिरता
- अनेक हिमनद झीलें शिथिल रूप से निर्मित हिमोढ़ों द्वारा आबद्ध होती हैं, जो प्राकृतिक रूप से अस्थिर होती हैं।
- जल स्तर बढ़ने से इनका हाइड्रोस्टेटिक दाब बढ़ जाता है, जिससे हिमोढ़ बाँधों के टूटने की संभावना बढ़ जाती है।
- उदाहरण: सिक्किम में दक्षिण ल्होनाक GLOF (वर्ष 2023), जहाँ हिमोढ़ बाँध की अस्थिरता के कारण बाढ़ की विध्वंसकारी घटना हुई।
- अनेक हिमनद झीलें शिथिल रूप से निर्मित हिमोढ़ों द्वारा आबद्ध होती हैं, जो प्राकृतिक रूप से अस्थिर होती हैं।
- हिमस्खलन और भूस्खलन की आवृत्ति में वृद्धि
- पर्माफ्रॉस्ट/शीतस्थल के पिघलने और वर्षा के पैटर्न में बदलाव के कारण चट्टानों का वृहत मात्रा में स्खलन हो रहा है, बर्फ पिघल रही है तथा भूस्खलन हो रहा है, जिससे बड़ी मात्रा में जल विस्थापित हो रहा है और GLOF की स्थिति उत्पन्न हो रही है।
- उदाहरण: नेपाल में दिग त्सो झील GLOF (वर्ष 1985), जहाँ हिम-स्खलन से झील क्षतिग्रस्त होने के कारण बुनियादी अवसंरचना नष्ट हो गए।
- पर्माफ्रॉस्ट/शीतस्थल के पिघलने और वर्षा के पैटर्न में बदलाव के कारण चट्टानों का वृहत मात्रा में स्खलन हो रहा है, बर्फ पिघल रही है तथा भूस्खलन हो रहा है, जिससे बड़ी मात्रा में जल विस्थापित हो रहा है और GLOF की स्थिति उत्पन्न हो रही है।
- भूकंपीय और विवर्तनिक गतिविधि
- हिमालय क्षेत्र भूकंपीय दृष्टि से सक्रिय है तथा भूकंप के कारण हिमनद झीलों में भू-स्खलन हो सकता है, जिससे आकस्मिक जल-विस्थापन हो सकता है।
- उदाहरण: वर्ष 2015 में नेपाल भूकंप, जिससे क्षेत्र में ग्लेशियल झील के टूटने का खतरा बढ़ गया।
- हिमालय क्षेत्र भूकंपीय दृष्टि से सक्रिय है तथा भूकंप के कारण हिमनद झीलों में भू-स्खलन हो सकता है, जिससे आकस्मिक जल-विस्थापन हो सकता है।
- मानवजनित कारक
- सड़कों, जलविद्युत परियोजनाओं और शहरी बस्तियों के अनियमित निर्माण से GLOF का जोखिम बढ़ जाता है।
- निर्वनीकरण और खनन से ढलान की स्थिरता कमज़ोर हो जाती है, जिससे भूस्खलन और हिमोढ़ क्षरण की संभावना बढ़ जाती है।
- उदाहरण: सिक्किम में GLOF के कारण तीस्ता III बाँध का विनाश (वर्ष 2023) बुनियादी अवसंरचना की कमज़ोरी को उजागर करता है।
शमन रणनीतियाँ और पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ:
- संरचनात्मक उपाय
- ग्लेशियल झीलों की कृत्रिम जल निकासी
- साइफनिंग, स्पिलवे या सुरंगों के माध्यम से झील के जल-स्तर को नियंत्रित रूप से कम करने से बाढ़ का खतरा कम हो जाता है।
- हिमोढ़ बाँधों का सुदृढ़ीकरण
- वनस्पति एवं कंक्रीट संरचनाओं जैसे जियो-इंजीनियरिंग सॉल्यूशन के साथ प्राकृतिक बाँधों को सुदृढ़ करने से स्थिरता बढ़ती है।
- GLOF-रोधी बुनियादी अवसंरचना का निर्माण
- जलविद्युत संयंत्रों, पुलों और बस्तियों को सुरक्षित तुंगता पर डिज़ाइन करने तथा तटबंधों को मज़बूत करने से क्षति को कम किया जा सकता है।
- ग्लेशियल झीलों की कृत्रिम जल निकासी
- गैर-संरचनात्मक उपाय
- पूर्व चेतावनी प्रणाली (EWS)
- झील के विस्तार और अस्थिरता का पता लगाने के लिये रिमोट सेंसिंग, सैटेलाइट इमेजरी और स्वचालित सेंसर का उपयोग करके रियल टाइम मॉनिटरिंग की जानी चाहिये।
- निचले इलाकों की आबादी के लिये स्वचालित सायरन और समुदाय-आधारित अलर्ट की स्थापना की जानी चाहिये।
- ग्लेशियल झील खतरा क्षेत्रीकरण और जोखिम मैपिंग
- संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान करने के लिये GIS और रिमोट सेंसिंग का उपयोग करके उच्च जोखिम वाली झीलों की मैपिंग की जानी चाहिये।
- CWC ने भारत में 67 उच्च जोखिम वाली झीलों की पहचान की है, जिसमें लद्दाख, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश पर ध्यान केंद्रित किया गया है जो सही दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
- संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान करने के लिये GIS और रिमोट सेंसिंग का उपयोग करके उच्च जोखिम वाली झीलों की मैपिंग की जानी चाहिये।
- सामुदायिक जागरूकता और आपदा शमन
- स्थानीय समुदायों को निकासी अभ्यास, आपातकालीन मोचन और अनुकूली रणनीतियों में प्रशिक्षण दिया जाना चाहिये।
- पूर्व चेतावनी प्रणाली (EWS)
निष्कर्ष:
यूनेस्को जलवायु परिवर्तन और पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र कार्यक्रम के आधार पर जलवायु अनुकूलन, इंजीनियरिंग सॉल्यूशन एवं प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों को मिलाकर एक बहुआयामी दृष्टिकोण GLOF द्वारा उत्पन्न जोखिमों को कम करने के लिये आवश्यक है। डेटा साझाकरण और आपदा मोचन के लिये क्षेत्रीय सहयोग (भारत, नेपाल, भूटान, चीन) को मज़बूत करने से क्षेत्र में समुत्थानशक्ति बढ़ेगी।
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