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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. समकालीन लोक प्रशासन में अरस्तू की सद्गुण नैतिकता कितनी प्रासंगिक है? नैतिक शासन को सुनिश्चित करने में सद्गुणों के विकास की क्या भूमिका है? (150 शब्द)

    27 Feb, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • अरस्तू के सद्गुण नैतिकता के बारे में जानकारी देकर उत्तर प्रस्तुत कीजिये।
    • लोक प्रशासन में अरस्तू के सद्गुण नैतिकता की प्रासंगिकता बताइये।
    • नैतिक शासन के लिये सद्गुणों के विकास के उपायों पर प्रकाश डालिये।
    • उचित निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    अरस्तू की सद्गुण नैतिकता नैतिक निर्णय लेने के लिये चरित्र, नैतिक गुणों और व्यावहारिक ज्ञान (फ्रोनेसिस) को आवश्यक मानती है। लोक प्रशासन के संदर्भ में, जहाँ अधिकारी नैतिक दुविधाओं का सामना करते हैं, सद्गुण नैतिकता व्यक्तिगत ईमानदारी, ज़िम्मेदारी और निष्पक्षता को विकसित करने के लिये एक रूपरेखा प्रदान करती है, जिससे सुशासन सुनिश्चित होता है।

    मुख्य भाग:

    लोक प्रशासन में अरस्तू के सद्गुण नैतिकता की प्रासंगिकता:

    • चरित्र और ईमानदारी
      • ईमानदारी, साहस और न्याय जैसे गुणों वाले लोक प्रशासक, कानूनों और नियमों का पालन करने के अलावा नैतिक निर्णय लेने को भी सुनिश्चित करते हैं।
      • उदाहरण: एक आईएएस अधिकारी द्वारा अनैतिक परियोजनाओं को मंज़ूरी देने के लिये राजनीतिक दबाव का विरोध करना ईमानदारी को दर्शाता है।
    • स्वर्णिम मध्य मार्ग को बढ़ावा देना (निर्णय लेने में संयम)
      • अरस्तू ने अतिवाद (कमी या अधिकता) से बचने और निर्णय में संतुलन बनाए रखने की वकालत की।
        • शासन में प्रशासकों को अधिकार और सहानुभूति, पारदर्शिता और गोपनीयता, दक्षता तथा समावेशिता के बीच संतुलन बनाना चाहिये
      • उदाहरण: एक पुलिस अधिकारी मानव अधिकारों का सम्मान करते हुए कानून प्रवर्तन सुनिश्चित करता है।
    • व्यावहारिक बुद्धि का विकास (फ्रोनेसिस )
      • जटिल शासन परिदृश्यों में नैतिक दुविधाओं को हल करने के लिये लोक सेवकों को व्यावहारिक बुद्धिमता का प्रयोग करना चाहिये।
      • उदाहरण: आपदा प्रबंधन के दौरान सिविल सेवकों को निर्णायक तथा सहानुभूतिपूर्वक कार्य करना चाहिये (यदि आवश्यक हो तो लोगों को बलपूर्वक निकालना तथा मानवीय व्यवहार सुनिश्चित करना)।
    • सार्वजनिक विश्वास और नैतिक नेतृत्व
      • जब प्रशासक सद्गुणों को अपनाते हैं, तो वे नागरिकों का विश्वास अर्जित करते हैं, जिससे वैधता और शासन प्रभावशीलता बढ़ती है।
      • उदाहरण: ई. श्रीधरन (“भारत के मेट्रो मैन”) ने पेशेवर उत्कृष्टता, ईमानदारी और जवाबदेही का प्रदर्शन किया, जिससे सार्वजनिक परियोजनाओं का समय पर निष्पादन सुनिश्चित हुआ।
    • नियम-आधारित अनुपालन पर दीर्घकालिक संस्थागत नैतिकता
      • जबकि कानून और आचार संहिता न्यूनतम नैतिक मानदंड निर्धारित करते हैं, सद्गुण नैतिकता लिखित नियमों से परे आंतरिक नैतिक प्रतिबद्धता सुनिश्चित करती है।
      • उदाहरण: एक नौकरशाह बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करता है, भले ही कानून मामूली पर्यावरणीय समझौतों की अनुमति देता हो।

    नैतिक शासन के लिये सद्गुणों का विकास

    • प्रशिक्षण और नैतिक संवेदनशीलता
      • सार्वजनिक अधिकारियों को निष्पक्षता, साहस और विनम्रता जैसे गुणों को विकसित करने के लिये नैतिक प्रशिक्षण।
      • उदाहरण: LBSNAA का नैतिकता मॉड्यूल और मिशन कर्मयोगी नैतिक तर्क तथा नेतृत्व पर ज़ोर देता है।
    • रोल मॉडल और मेंटरशिप
      • नैतिक नेताओं से सीखने से सद्गुण-आधारित शासन की संस्कृति को बढ़ावा मिलता है
      • उदाहरण: टीएन शेषन (पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त) ने राजनीतिक दबावों के बावजूद चुनावी शुचिता बरकरार रखी।
    • नैतिक आचरण को संस्थागत बनाना
      • सद्गुणी आचरण को सुदृढ़ करने के लिये आचार समितियाँ, लोकपाल कार्यालय और मुखबिर सुरक्षा की स्थापना करना।
      • उदाहरण: लोकपाल अधिनियम सार्वजनिक अधिकारियों को जवाबदेह बनाकर ईमानदारी को बढ़ावा देता है।

    निष्कर्ष

    अरस्तू की सद्गुण नैतिकता समकालीन लोक प्रशासन में अत्यधिक प्रासंगिक बनी हुई है, क्योंकि शासन केवल कानूनों के बारे में नहीं है, बल्कि प्रशासकों के नैतिक चरित्र के बारे में भी है। सद्गुणों को विकसित करके, सार्वजनिक अधिकारी विश्वास, जवाबदेही और नैतिक शासन को बढ़ावा दे सकते हैं, जिससे न्यायपूर्ण तथा ज़िम्मेदार प्रशासन सुनिश्चित होता है।

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