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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. फ्राँस की यूरोपीय और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थायी शक्ति के रूप में स्थिति भारत को विशिष्ट रणनीतिक लाभ प्रदान करती है। इस संदर्भ में, भारत-फ्राँस साझेदारी और इसके व्यापक बहुपक्षीय संबंधों पर पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)

    25 Feb, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • भारत के लिये फ्राँस के महत्त्व के संदर्भ में संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत करते हुए उत्तर दीजिये।
    • भारत के लिये फ्राँस की स्थिति के रणनीतिक लाभ के पक्ष में तर्क दीजिये।
    • भारत की बहुपक्षीय साझेदारी पर इसके प्रभाव का सुझाव दीजिये।
    • एक दूरदर्शी दृष्टिकोण के साथ उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    फ्राँस की यूरोपीय शक्ति और हिंद-प्रशांत क्षेत्र की स्थायी शक्ति के रूप में दोहरी पहचान भारत को विशिष्ट रणनीतिक लाभ प्रदान करती है। दोनों देश वैश्विक मामलों में रणनीतिक स्वायत्तता और बहुध्रुवीयता के लिये एक दृष्टिकोण साझा करते हैं, जिससे रक्षा, परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष एवं प्रौद्योगिकी में उनके सहयोग में वृद्धि होती है। 

    मुख्य भाग: 

    भारत के लिये फ्राँस की स्थिति के रणनीतिक लाभ: 

    • रक्षा और सामरिक साझेदारी: फ्राँस भारत का प्रमुख आयुध आपूर्तिकर्त्ता है, जिसके साथ राफेल जेट और स्कॉर्पीन पनडुब्बियों सहित कई सौदे हुए हैं।
      • संयुक्त सैन्य अभ्यास (जैसे: वरुण) हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा को बढ़ाते हैं।
      • FRIND-X पहल भारतीय और फ्राँसीसी रक्षा स्टार्टअप्स के बीच सहयोग को बढ़ावा देती है।
    • भारत-प्रशांत सुरक्षा और समुद्री सहयोग: फ्राँस स्वतंत्र, खुले और नियम-आधारित सागरीय व्यवस्था के लिये भारत के दृष्टिकोण से सहमत है।
      • रियूनियन द्वीप और न्यू कैलेडोनिया में सैन्य अड्डे हिंद महासागर तक सामरिक अभिगम को सक्षम बनाते हैं।
      • भारत, फ्राँस व अन्य देशों के बीच हिंद-प्रशांत त्रिपक्षीय सहयोग जलवायु अनुकूलन में सहायता करता है।
    • आर्थिक और व्यापारिक संबंध: 13.38 बिलियन डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार (सत्र 2023-24) के साथ फ्राँस भारत के सबसे बड़े यूरोपीय निवेशकों में से एक है।
      • भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC), जिसका केंद्र मार्सिले है, व्यापार को सुदृढ़ करता है।
    • अंतरिक्ष और एयरोस्पेस सहयोग: फ्राँस भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम (तृष्णा उपग्रह परियोजना) में दीर्घकालिक साझेदार रहा है।
      • मानव अंतरिक्ष उड़ान और ग्रह अन्वेषण में सहयोग से भारत की रणनीतिक स्वायत्तता बढ़ेगी।
    • असैन्य परमाणु सहयोग: फ्राँस ऊर्जा सुरक्षा के लिये स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) विकसित करने में भारत की सहायता कर रहा है।
      • 20,000 करोड़ रुपए का परमाणु ऊर्जा मिशन (बजट 2024-25) SMR में संयुक्त अनुसंधान को बढ़ावा देता है।
      • जैतापुर परमाणु संयंत्र (9,900 मेगावाट) विश्व का सबसे बड़ा परमाणु ऊर्जा संयंत्र बनने वाला है।
    • कृत्रिम बुद्धिमत्ता और तकनीकी नवाचार: कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर भारत-फ्राँस रोडमैप नैतिक कृत्रिम बुद्धिमत्ता विकास को बढ़ावा देता है।
      • भारतीय स्टार्टअप को फ्राँस में विश्व के सबसे बड़े स्टार्टअप इनक्यूबेटर, स्टेशन F तक अभिगम प्राप्त हुआ।
      • फ्राँस में भारत के UPI के विस्तार से वित्तीय प्रौद्योगिकी सहयोग मज़बूत होगा।

    भारत की बहुपक्षीय साझेदारी के लिये निहितार्थ: 

    • भारत-यूरोपीय संघ संबंधों को मज़बूत करना
      • भारत-यूरोपीय संघ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को अंतिम रूप देने में फ्राँस महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
      • यूरोपीय संघ के ग्रीन डील और डिजिटल मार्केट अधिनियम में भारत की साझेदारी को फ्राँस द्वारा सुगम बनाया जा सकता है।
    • भारत की हिंद-प्रशांत रणनीति को आगे बढ़ाना
      • हिंद महासागर और दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में संयुक्त नौसैनिक तैनाती भारत के क्षेत्रीय नेतृत्व को मज़बूत करती है।
      • फ्राँस की क्वाड प्लस साझेदारी भारत की हिंद-प्रशांत पहुँच का पूरक है।
    • जलवायु कूटनीति और नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देना
      • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) में फ्राँस की भूमिका भारत के हरित ऊर्जा संक्रमण में सहायक है। हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी एवं ऊर्जा भंडारण में सहयोग  भारत के डीकार्बोनाइज़ेशन लक्ष्यों को और तीव्र कर सकता है।
    • रक्षा और अंतरिक्ष कूटनीति का विस्तार: भारत प्रौद्योगिकी अंतरण के लिये NATO में फ्राँस के रक्षा प्रभाव का लाभ उठा सकता है।
      • हाइपरसोनिक और क्वांटम प्रौद्योगिकियों में सहयोग से भारत के अंतरिक्ष एवं रक्षा नवाचार को बढ़ावा मिलेगा।

    निष्कर्ष: 

    भारत-फ्राँस संबंध रणनीतिक स्वायत्तता, बहुध्रुवीयता और तकनीकी सहयोग के साझा सिद्धांतों पर आधारित हैं। इस साझेदारी को मज़बूत करने से भारत का वैश्विक प्रभाव बढ़ेगा, जो वर्ष 2047 तक विकसित भारत के उसके दृष्टिकोण के अनुरूप होगा।

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