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प्रश्न :
प्रश्न. निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता बनाए रखने के लिये उपलब्ध संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों की प्रभावशीलता का आकलन कीजिये। इसके अलावा, आयोग की स्वायत्तता को और मज़बूत करने के लिये आवश्यक सुधारों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
25 Feb, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- निर्वाचन आयोग की संवैधानिक स्थिति की जानकारी प्रस्तुत करते हुए उत्तर दीजिये।
- ECI की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिये प्रमुख संवैधानिक और कानूनी सुरक्षा के महत्त्व की व्याख्या कीजिये।
- निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता के लिये चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए निर्वाचन आयोग की स्वायत्तता को सुदृढ़ करने की दिशा में सुधारों का सुझाव दीजिये।
- प्रश्न की मांग को संक्षेप में बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) एक संवैधानिक निकाय है जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिये जिम्मेदार है। यद्यपि संवैधानिक और कानूनी प्रावधान सुरक्षा प्रदान करते हैं, कार्यकारी प्रभाव, वित्तीय निर्भरता और कमज़ोर प्रवर्तन शक्तियों के संदर्भ में चिंताएँ बनी हुई हैं।
मुख्य भाग:
निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने वाले मौजूदा प्रावधानों की पर्याप्तता
- अनुच्छेद 324 के तहत संवैधानिक प्राधिकार: अनुच्छेद 324 निर्वाचन आयोग (ECI) को संसद, राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के पदों के लिये चुनावों के अधीक्षण, निर्देशन एवं नियंत्रण पर स्वायत्तता प्रदान करता है।
- हालाँकि, इसमें कार्यपालिका के प्रभाव के विरुद्ध संस्थागत सुरक्षा का अभाव है। (उदाहरण के लिये, निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति में कार्यपालिका की बड़ी भूमिका।)
- मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) के कार्यकाल की सुरक्षा: CEC को महाभियोग के अलावा किसी अन्य माध्यम से नहीं हटाया जा सकता है, जो सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान है, जिससे स्थायित्व सुनिश्चित होती है।
- हालाँकि, निर्वाचन आयुक्तों (EC) को समान सुरक्षा प्राप्त नहीं है, क्योंकि उन्हें मुख्य निर्वाचन आयुक्त की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है, जिससे वे सरकारी दबाव के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।
- वित्तीय स्वायत्तता प्रावधान: ECI के व्यय को भारत की समेकित निधि में संचित किया जाता है, जिससे आकस्मिक वित्तीय कटौती को रोका जा सके।
- हालाँकि, यह अभी भी बजट अनुमोदन के लिये कार्यपालिका पर निर्भर है, जिससे इसकी परिचालन स्वतंत्रता सीमित हो जाती है। (उदाहरण के लिये, CAG के विपरीत ECI के पास प्रत्यक्ष वित्तीय नियंत्रण का अभाव है।)
- न्यायिक सुरक्षा और पूर्व-निर्णय: सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों, जैसे टी.एन. शेषन बनाम भारत संघ (वर्ष 1995) ने चुनाव संचालन में ECI के स्वतंत्र अधिकार को बरकरार रखा।
- अनूप बरनवाल मामले (वर्ष 2023) के परिणामस्वरूप कॉलेजियम आधारित नियुक्ति प्रक्रिया के लिये निर्देश दिया गया, हालाँकि बाद में अधिनियम-2023 द्वारा इसे रद्द कर दिया गया, जिससे कार्यकारी नियंत्रण स्थापित हो गया।
- स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराने की शक्तियाँ: भारत निर्वाचन आयोग आदर्श आचार संहिता (MCC) को लागू कर सकता है और राजनीतिक दलों को विनियमित कर सकता है।
- हालाँकि, MCC के पास वैधानिक समर्थन का अभाव है, जिससे प्रवर्तन कमज़ोर हो जाता है। (उदाहरण के लिये, वर्ष 2019 में राजनेताओं द्वारा अभद्र भाषा के उल्लंघन के कारण केवल चेतावनी दी गई।)
- न्यायिक हस्तक्षेप के विरुद्ध कानूनी संरक्षण (अनुच्छेद 329): अनुच्छेद 329 चुनाव याचिकाओं को छोड़कर चुनावी मामलों में प्रत्यक्ष न्यायिक हस्तक्षेप पर रोक लगाता है, जिससे चुनावी प्रक्रिया में अनुचित विलंब को रोका जा सके।
- हालाँकि, अस्पष्टताएँ बनी हुई हैं, जिसके कारण न्यायालयों द्वारा विरोधाभासी व्याख्याएँ की जाती हैं, जिससे कभी-कभी चुनाव-संबंधी निर्णयों में विलंब होता है। (उदाहरण के लिये, विधायकों की अयोग्यता के मामलों में विलंब।)
- संस्थागत संरचना और प्रशासनिक समर्थन: चुनाव संचालन के लिये भारत निर्वाचन आयोग के पास केंद्र और राज्य स्तर पर एक स्थायी प्रशासनिक व्यवस्था है।
- हालाँकि, यह चुनावों के दौरान सरकारी कर्मियों (IAS, IPS अधिकारियों) पर निर्भर करता है, जिससे प्रशासनिक प्रभाव की चिंताएँ बढ़ जाती हैं। (उदाहरण के लिये, राज्य चुनाव अधिकारियों द्वारा पक्षपातपूर्ण व्यवहार के आरोप।)
निर्वाचन आयोग की स्वायत्तता को सुदृढ़ करने के लिये सुधार:
- नियुक्ति और पदच्युति के लिये संस्थागत सुधार: निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति हेतु प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश और विपक्ष दल के सदस्य को शामिल करते हुए एक कॉलेजियम प्रणाली शुरू करने के लिये 2023 अधिनियम को संशोधित किया जाना चाहिये।
- यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि निर्वाचन आयुक्तों (EC) को संस्थागत स्वतंत्रता को बनाए रखने और मनमाने ढंग से बर्खास्तगी के विरुद्ध सुरक्षा के लिये मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) के समान ही पदच्युति सुरक्षा प्राप्त हो।
- वित्तीय स्वायत्तता सुनिश्चित करना: भारत के निर्वाचन आयोग (ECI) के बजट को , नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) और सर्वोच्च न्यायालय के समान सीधे भारत की संचित निधि में जमा करने के लिये वित्तीय प्रावधानों में संशोधन करने की आवश्यकता है, जिससे वित्तीय स्वतंत्रता की गारंटी होगी और ECI को कार्यकारी प्रभाव से बचाया जा सकेगा।
- आदर्श आचार संहिता (MCC) के लिये कानूनी समर्थन को प्रबल करना: आदर्श आचार संहिता (MCC) को वैधानिक दर्जा दिया जा सकता है, जिससे इसके प्रावधान वैधानिक रूप से लागू हो सकेंगे और उल्लंघन पर कठोर दंड का प्रावधान हो सकेगा।
- चुनावी विवादों के त्वरित निर्णय की सुविधा के लिये एक समर्पित चुनाव न्यायाधिकरण की स्थापना करना, तथा उल्लंघनों का समय पर और प्रभावी समाधान सुनिश्चित करना।
- सशक्त दंड प्राधिकरण: चुनावों के दौरान उद्देश्यपूर्ण गलत सूचना और डीप फेक कंटेंट फैलाने वालों को दंडित करने के लिये विशिष्ट प्रावधान शुरू करने के लिये जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन किया जाना चाहिये।
- फर्ज़ी खबरें प्रसारित करने के लिये राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों पर सख्त दायित्व लागू किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष:
हालाँकि ECI के लिये सुरक्षा उपाय महत्त्वपूर्ण हैं, लेकिन पूरी तरह से पर्याप्त नहीं हैं। इसकी स्वायत्तता बढ़ाने के लिये इसे और सुदृढ़ करने की आवश्यकता है। कॉलेजियम आधारित नियुक्ति प्रक्रिया, वित्तीय स्वतंत्रता और MCC के लिये कानूनी समर्थन जैसे सुधार चुनावों में अधिक पारदर्शिता एवं निष्पक्षता सुनिश्चित कर सकते हैं तथा संस्थागत स्वायत्तता बढ़ा सकते हैं।
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