नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 16 जनवरी से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    1. वास्तविक आनंद अंतिम लक्ष्य से नहीं बल्कि जीवन की यात्रा में निहित है।

    2. पर्यावरणीय न्याय सुनिश्चित करने के लिये दायित्वों का निष्पक्ष वितरण आवश्यक है।

    22 Feb, 2025 निबंध लेखन निबंध

    उत्तर :

    1. वास्तविक आनंद अंतिम लक्ष्य से नहीं बल्कि जीवन की यात्रा में निहित है।

    अपने निबंध को समृद्ध करने के लिये ये उद्धरण:

    • "आनंद कोई पड़ाव नहीं है जिस पर आप पहुँचते हैं, बल्कि यह यात्रा का एक तरीका है।" - मार्गरेट ली रनबेक
    • "सफलता एक यात्रा है, कोई मंज़िल नहीं। प्रायः काम करना परिणाम से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण होता है।" - आर्थर ऐश
    • "यात्रा का एक अंत होना अच्छी बात है; लेकिन अंत में यात्रा ही मायने रखती है।" - उर्सुला के. ले गिनी

    दार्शनिक परिप्रेक्ष्य:

    • सुकरात, बुद्ध और लाओ त्ज़ु जैसे प्राचीन दार्शनिकों ने भौतिकवादी उपलब्धियों की तुलना में आंतरिक संतुष्टि पर अधिक बल दिया।
    • ज़ेन बौद्ध धर्म और वेदांत जैसी पूर्वी परंपराएँ लक्ष्य निर्धारण के बजाय सजगता और वर्तमान क्षण के प्रति जागरूकता पर बल देती हैं।
    • अरस्तू की यूडेमोनिया (उत्कर्ष) की अवधारणा यह बताती है कि आनंद एक अंतिम बिंदु नहीं बल्कि सदाचारी जीवन जीने की एक सतत् प्रक्रिया है।

    मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य:

    • वयस्क विकास पर हार्वर्ड के "ग्रांट अध्ययन" से पता चलता है कि दीर्घकालिक खुशी वित्तीय सफलता के बजाय सार्थक संबंधों और व्यक्तिगत विकास से प्राप्त होती है।
    • तंत्रिका विज्ञान अनुसंधान से पता चलता है कि डोपामाइन, "हैप्पीनेस केमिकल", लक्ष्य प्राप्त करने के बजाय लक्ष्य की खोज़ के दौरान जारी होता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि लोग एक उपलब्धि हासिल करने के बाद अस्थायी संतुष्टि महसूस करते हैं, लेकिन जल्द ही नए लक्ष्यों की तलाश करने लगते हैं।
    • "हेडोनिक ट्रेडमिल" की अवधारणा यह बताती है कि मनुष्य नई उपलब्धियों के प्रति शीघ्रता से अनुकूलित हो जाता है, जिससे स्थायी आनंद निरंतर व्यक्तिगत संलग्नता पर निर्भर हो जाता है।

    सामाजिक एवं आर्थिक परिप्रेक्ष्य:

    • फिनलैंड और डेनमार्क जैसे स्कैंडिनेवियाई देश ‘वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट’ में सर्वोच्च स्थान पर हैं, तथा वे अपने आनंद का श्रेय केवल आर्थिक समृद्धि के बजाय सामाजिक सुरक्षा, कार्य-जीवन संतुलन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता की दृढ़ भावना को देते हैं।
    • अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धी कॉर्पोरेट वातावरण में रहने वाले लोग प्रायः वित्तीय सफलता प्राप्त करने के बावजूद थकान और असंतोष का अनुभव करते हैं, जिससे यह सिद्ध होता है कि केवल बाह्य लक्ष्य ही स्थायी आनंद सुनिश्चित नहीं करते हैं।

    व्यक्तिगत विकास और सफलता:

    • एलन मस्क और स्टीव जॉब्स जैसे प्रसिद्ध व्यक्तियों ने अंतिम परिणामों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय अधिगम, सृजन और नवाचार करने के प्रति अपने प्रेम के बारे में बात की है।
    • कई ओलंपिक खिलाड़ी पदक जीतने के बाद उपलब्धि-पश्चात अवसाद का अनुभव करते हैं, क्योंकि उनकी पूरी पहचान एक ही लक्ष्य से जुड़ी होती है, जो केवल मंजिल के बजाय प्रक्रिया का आनंद लेने के महत्त्व को दर्शाता है।

    सांस्कृतिक एवं साहित्यिक परिप्रेक्ष्य:

    • गांधीजी का मानना ​​था कि नैतिक साधन उतने ही महत्त्वपूर्ण हैं जितने वांछित लक्ष्य। उन्होंने सत्य, अहिंसा और नैतिक अखंडता पर बल दिया और कहा कि न्यायपूर्ण लक्ष्य अनैतिक या अन्यायपूर्ण तरीकों से हासिल नहीं किये जा सकते।
      • महात्मा गांधी का दर्शन कि "मार्ग ही लक्ष्य है" इस विचार के साथ संगत है कि पूर्णता किसी विशिष्ट उपलब्धि से नहीं, बल्कि यात्रा से मिलती है।

    2. पर्यावरणीय न्याय सुनिश्चित करने के लिये दायित्वों का निष्पक्ष वितरण आवश्यक है।

    अपने निबंध को समृद्ध करने के लिये उद्धरण:

    • "हमें पृथ्वी अपने पूर्वजों से विरासत में नहीं मिली है; बल्कि हमने इसे अपने बच्चों से उधार लिया है।"
    • "हमारी पृथ्वी के लिये सबसे बड़ा खतरा यह विश्वास है कि कोई और इसे बचा लेगा।" - रॉबर्ट स्वान

    नैतिक एवं न्यायिक परिप्रेक्ष्य:

    • अंतर-पीढ़ीगत समता की अवधारणा कहती है कि भावी पीढ़ियों को स्थायी संसाधनों वाले ग्रह को विरासत में पाने का अधिकार है और आज के कार्यों से उनकी भलाई को खतरे में नहीं डाला जाना चाहिये।
    • महात्मा गांधी की विचारधारा - "पृथ्वी प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकता के लिये पर्याप्त प्रदान करती है, लेकिन प्रत्येक व्यक्ति के लालच को पूरा नहीं करती" - जिम्मेदार उपभोग और निष्पक्ष पर्यावरणीय प्रबंधन के महत्त्व पर प्रकाश डालती है।

    वैश्विक परिप्रेक्ष्य:

    • विकसित देश, जो ऐतिहासिक रूप से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिये जिम्मेदार हैं, को जलवायु परिवर्तन को कम करने में अधिक जिम्मेदारी उठानी चाहिये, जैसा कि पेरिस समझौते में "साझा लेकिन विभेदित जिम्मेदारियों" के सिद्धांत में प्रतिबिंबित होता है।
    • भारत और ब्राज़ील जैसे देशों सहित ग्लोबल साउथ का तर्क है कि विकासशील अर्थव्यवस्थाओं पर समान उत्सर्जन कटौती लागू करना अन्यायपूर्ण है, क्योंकि उन्हें औद्योगिक विकास एवं गरीबी उन्मूलन की आवश्यकता है।
    • तुवालु और मालदीव जैसे छोटे द्वीपीय राष्ट्र, जो जलवायु परिवर्तन में सबसे कम योगदान देते हैं, बढ़ते समुद्री स्तर से असमान रूप से प्रभावित होते हैं तथा औद्योगिक देशों से तत्काल जलवायु कार्रवाई की मांग करते हैं।

    आर्थिक परिप्रेक्ष्य:

    • स्वीडन और कनाडा जैसे दृढ़ पर्यावरण नीतियों वाले देशों ने कार्बन कर एवं हरित प्रोत्साहन लागू किये हैं, जिससे यह प्रदर्शित होता है कि आर्थिक समृद्धि एवं संवहनीयता एक साथ संभव है।
    • जीवाश्म ईंधन उद्योग, जो 70% से अधिक कार्बन उत्सर्जन के लिये जिम्मेदार है, को सख्त नियमों और नवीकरणीय ऊर्जा की ओर निवेश को स्थानांतरित करके अधिक जिम्मेदारी लेनी चाहिये।
    • व्यक्तिगत उपभोक्ताओं के बजाय बड़ी कंपनियाँ निर्वनीकरण, प्रदूषण और पर्यावरण क्षरण में प्राथमिक योगदानकर्त्ता हैं, जिससे वैश्विक जलवायु नीतियों में कंपनियों का उत्तरदायित्व आवश्यक हो गया है।

    सामाजिक एवं मानवीय परिप्रेक्ष्य:

    • सीमांत समुदाय, जैसे अमेज़न की मूल जनजातियाँ और भारत के किसान, प्रायः निर्वनीकरण, जल की कमी और जलवायु आपदाओं का खामियाज़ा भुगतते हैं, जबकि पर्यावरण को होने वाले नुकसान में उनका योगदान सबसे कम होता है।
    • भोपाल गैस त्रासदी (वर्ष 1984) और फ्लिंट जल संकट (अमेरिका) जैसी पर्यावरणीय आपदाएँ इस बात पर प्रकाश डालती हैं कि किस प्रकार समाज के कमज़ोर वर्ग औद्योगिक लापरवाही से पीड़ित हैं तथा कठोर पर्यावरणीय न्याय नीतियों की आवश्यकता पर बल देती हैं।
    • भारत में, दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोग प्रायः अत्यधिक प्रदूषित क्षेत्रों में रहते हैं, जहाँ स्वच्छ जल की बहुत कम सुलभता होती है, जो पर्यावरणीय क्षरण और सामाजिक असमानता के बीच संबंध को दर्शाता है।

    वैज्ञानिक एवं तकनीकी परिप्रेक्ष्य:

    • हरित प्रौद्योगिकी में अग्रणी देशों, जैसे जर्मनी की एनर्जीवेंडे पहल, ने दर्शाया है कि सही नीतियों और निवेशों के साथ नवीकरणीय ऊर्जा में परिवर्तन संभव है।
    • भारत के अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) का उद्देश्य विकासशील देशों को सौर ऊर्जा का उपयोग करने में सहायता करना, जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करना तथा सतत् ऊर्जा तक न्यायसंगत अभिगम को बढ़ावा देना है।
    • स्मार्ट शहरी नियोजन पहल, जैसे कि सिंगापुर के हरित भवन विनियम और जापान के आपदा-प्रतिरोधी शहर मॉडल, आर्थिक विकास को बनाए रखते हुए पर्यावरणीय क्षति को कम करने के लिये रूपरेखा प्रदान करते हैं।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2