प्रश्न: "भारत की तीव्र आर्थिक वृद्धि सभी वर्गों को समान रूप से लाभ नहीं पहुँचा पाई है।" समावेशी विकास में बाधा बनने वाली प्रमुख संरचनात्मक चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये और इस असमानता को दूर करने के लिये उपयुक्त नीतिगत उपाय सुझाइये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- इस प्रश्न का उत्तर देते हुए बताइये कि किस प्रकार भारत की तीव्र आर्थिक संवृद्धि समतामूलक विकास में परिवर्तित नहीं हुई है।
- समावेशी विकास में बाधा डालने वाली प्रमुख संरचनात्मक चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
- इस अंतर को समाप्त करने के लिये नीतिगत उपाय सुझाइये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
वित्त वर्ष 2023 में भारत की अर्थव्यवस्था 7.2% बढ़ी, फिर भी आय और संपत्ति असमानता बनी हुई है। क्रेडिट सुइस के अनुसार, शीर्ष 1% के पास राष्ट्रीय संपत्ति का 53% हिस्सा है। यद्यपि आर्थिक विकास प्रभावशाली रहा है, फिर भी समावेशी विकास— समाज के सभी वर्गों के लिये समान अवसर और संसाधनों तक अभिगम सुनिश्चित करना— एक चुनौती बनी हुई है।
मुख्य भाग:
समावेशी विकास में बाधा डालने वाली प्रमुख संरचनात्मक चुनौतियाँ:
- निरंतर निर्धनता और असमानता:
- भारत की 53% संपत्ति पर सबसे अमीर 1% लोगों का नियंत्रण है, जबकि सबसे निचले 50% लोगों के पास केवल 4.1% संपत्ति है (क्रेडिट सुइस रिपोर्ट)।
- उच्च आय असमानता सामाजिक गतिशीलता और आर्थिक समावेशिता को सीमित करती है।
- विशाल अनौपचारिक कार्यबल और बेरोज़गारी:
- भारत का 90% कार्यबल अनौपचारिक है, जिसके पास नौकरी की सुरक्षा, सामाजिक संरक्षण और उचित वेतन का अभाव है (ILO)।
- बेरोज़गारी की दर उच्च बनी हुई है, विशेष रूप से युवाओं एवं महिलाओं में तथा अल्प-रोज़गार एक प्रमुख मुद्दा है।
- क्षेत्रीय असमानताएँ:
- राज्यों के बीच महत्त्वपूर्ण आर्थिक अंतर (उदाहरण के लिये, बिहार का प्रति व्यक्ति GSDP महाराष्ट्र का 1/5वाँ हिस्सा है)।
- असमान बुनियादी अवसंरचना के विकास से अवसरों तक असमान पहुँच होती है।
- कार्यबल भागीदारी में लैंगिक असमानता:
- 81.8% महिलाएँ अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में काम करती हैं (ILO)।
- श्रम आय असमानता- आय असमानता में पुरुष का हिस्सा 82% हैं, जबकि महिलाओं की हिस्सेदारी केवल 18% है। (विश्व असमानता रिपोर्ट, 2022)।
- ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स (वर्ष 2022) में भारत 146 देशों में से 135वें स्थान पर है।
- कम वित्तीय साक्षरता और डिजिटल डिवाइड:
- भारत की केवल 27% जनसंख्या ही वित्तीय रूप से साक्षर है, जिससे उनकी ऋण और बचत तक अभिगम की क्षमता प्रभावित होती है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में सीमित डिजिटल अवसंरचना बैंकिंग और कल्याणकारी योजनाओं तक अभिगम को प्रतिबंधित करती है।
- सामाजिक बुनियादी अवसंरचना में अंतराल (स्वास्थ्य और शिक्षा):
- मानव विकास सूचकांक (वर्ष 2023)- भारत 193 देशों में से 134वें स्थान पर है।
- स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएँ अपर्याप्त हैं, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में।
- स्कूलों में अधिगम के परिणाम निम्न स्तर पर बने हुए हैं, जिससे दीर्घकालिक आर्थिक गतिशीलता प्रभावित हो रही है।
- अपर्याप्त बुनियादी अवसंरचना और बुनियादी सेवाएँ:
- भारत की एक चौथाई आबादी के पास बिजली की सुविधा नहीं है।
- अपर्याप्त ग्रामीण संपर्क, आवास और स्वच्छता के कारण शहरी-ग्रामीण अंतर बढ़ता जा रहा है।
अंतर को समाप्त करने के लिये नीतिगत उपाय:
- रोज़गार सृजन और कार्यबल का औपचारिकीकरण:
- नौकरी के अवसरों में सुधार के लिये MSME को बढ़ावा दिया जाना चाहिये (जैसे, PMEGP) तथा कौशल कार्यक्रमों (जैसे, PMKVY) का विस्तार किया जाना चाहिये।
- अनौपचारिक श्रमिकों को औपचारिक क्षेत्र में लाने के लिये श्रम संहिताओं को प्रभावी ढंग से लागू किया जाना चाहिये।
- सामाजिक सुरक्षा और कल्याण योजनाओं को गति देना:
- PMSYM (पेंशन) और आयुष्मान भारत (स्वास्थ्य सेवा) जैसी योजनाओं के माध्यम से सामाजिक सुरक्षा को सार्वभौमिक बनाया जाना चाहिये।
- ग्रामीण रोज़गार को समर्थन देने के लिये मज़दूरी दरों और कार्यदिवसों में वृद्धि करके MGNREGA को सुदृढ़ किया जाना चाहिये।
- वित्तीय और डिजिटल समावेशन:
- JAM ट्रिनिटी, RuPay और UPI के माध्यम से डिजिटल बैंकिंग और ऋण सुलभता का विस्तार किया जाना चाहिये।
- सीमांत समुदायों को सशक्त बनाने के लिये वित्तीय साक्षरता कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- क्षेत्रीय असमानताओं को कम करना:
- कनेक्टिविटी और आर्थिक गतिविधि में सुधार के लिये पिछड़े राज्यों में बुनियादी अवसंरचना में निवेश किया जाना चाहिये।
- पिछड़े क्षेत्रों के लिये लक्षित विकास कार्यक्रम, उद्योगों और सेवाओं पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
- विश्व बैंक का अनुमान है कि ब्रॉडबैंड पहुँच में 10% की वृद्धि से सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 1.38% बढ़ सकती है।
- शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा में सुधार:
- अधिगम के परिणामों में सुधार के लिये समग्र शिक्षा जैसी स्कूली शिक्षा पहलों को सुदृढ़ किया जाना चाहिये।
- ग्रामीण क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हुए आयुष्मान भारत के माध्यम से स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच का विस्तार किया जाना चाहिये।
- रोज़गार में लैंगिक समानता को बढ़ावा देना:
- महिलाओं के लिये ऋण और उद्यमशीलता सहायता तक समान पहुँच (उदाहरणार्थ: मुद्रा योजना) सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
- कार्यस्थल पर सुरक्षा, मातृत्व लाभ और लचीली कार्य स्थितियों को सुनिश्चित करके महिला कार्यबल की भागीदारी बढ़ाई जानी चाहिये।
निष्कर्ष:
सतत् विकास के लिये समावेशी विकास हासिल करना आवश्यक है, जो SDG1 (गरीबी उन्मूलन), SDG5 (लैंगिक समानता), SDG8 (उत्कृष्ट श्रम और आर्थिक विकास) और 10 (असमानताएँ कम करना) के साथ संरेखित है। रोज़गार, सामाजिक सुरक्षा, वित्तीय समावेशन और बुनियादी अवसंरचना में लक्षित नीतिगत हस्तक्षेप मौजूदा विकास अंतराल को समाप्त कर सकते हैं।