प्रश्न: "भारत-अमेरिका संबंधों का 'अलग-थलग लोकतंत्रों' से 'रणनीतिक साझेदारों' तक का विकास बदलती वैश्विक गतिशीलता को दर्शाता है।" इस परिवर्तन का विशिष्ट मील के पत्थरों के साथ परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत-अमेरिका संबंधों में आए परिवर्तन के संदर्भ में जानकारी के साथ उत्तर दीजिये।
- भारत-अमेरिका संबंधों में विकास की प्रमुख उपलब्धियों पर प्रकाश डालिये।
- चुनौतियों पर गहन विचार प्रस्तुत करते हुए आगे की राह सुझाइये।
- एक दूरदर्शी दृष्टिकोण के साथ निष्कर्ष उचित दीजिये।
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परिचय:
विश्व के दो सबसे बड़े लोकतंत्र भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपने द्विपक्षीय संबंधों में उल्लेखनीय परिवर्तन किया है। शीत युद्ध के दौरान ‘अलग-थलग लोकतंत्र’ से लेकर ‘रणनीतिक साझेदार’ बनने तक, यह परिवर्तन भू-राजनीतिक गतिशीलता, आर्थिक अभिसरण और रक्षा सहयोग में परिवर्तन को दर्शाता है।
मुख्य भाग:
भारत-अमेरिका संबंधों का विकास:
- शीत युद्ध काल: अलगाव का दौर
- गुटनिरपेक्ष नीति (1950-1980 का दशक): भारत के गुटनिरपेक्ष रुख और सोवियत संघ के साथ घनिष्ठ संबंधों के कारण अमेरिका के साथ उसके संबंध तनावपूर्ण हो गए, जबकि अमेरिका का पाकिस्तान के साथ मज़बूत गठबंधन था।
- पाकिस्तान को अमेरिकी सैन्य सहायता: वर्ष 1954 के अमेरिकी-पाकिस्तान सैन्य समझौते और रक्षा उपकरण आपूर्ति ने इस अंतर को और बढ़ा दिया।
- परमाणु परीक्षण और प्रतिबंध: भारत के वर्ष 1974 के परमाणु परीक्षण (स्माइलिंग बुद्धा) के कारण अमेरिका ने प्रतिबंध लगा दिये, जिससे संबंधों में और दूरियाँ आ गईं।
- शीत युद्ध के बाद: आर्थिक और कूटनीतिक मेल-मिलाप (वर्ष 1990-2004)
- आर्थिक उदारीकरण (वर्ष 1991): भारत के आर्थिक सुधारों ने अमेरिकी निवेश को आकर्षित किया, जिससे आर्थिक अंतरनिर्भरता बढ़ी।
- सोवियत संघ के पतन के साथ ही भारत ने अपनी विदेश नीति को अमेरिका की ओर पुनः उन्मुख कर दिया।
- रणनीतिक साझेदारी में अगले कदम (NSSP, 2004): रक्षा, उच्च तकनीक व्यापार और अंतरिक्ष सहयोग की ओर बदलाव को चिह्नित किया।
- असैन्य परमाणु समझौता: निर्णायक मोड़ (वर्ष 2005-2008)
- वर्ष 2008 के असैन्य परमाणु समझौते ने भारत के परमाणु अलगाव को समाप्त कर दिया तथा उसे एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में मान्यता दी।
- भारत द्वारा NPT पर हस्ताक्षर न करने के बावजूद असैन्य परमाणु सहयोग को सक्षम बनाया गया।
- रक्षा और सामरिक सहयोग को सुदृढ़ करना (वर्ष 2010-2020)
- प्रमुख रक्षा साझेदार के रूप में पदनाम (वर्ष 2016): भारत को उच्च स्तरीय सैन्य प्रौद्योगिकी तक अभिगम की अनुमति दी गई।
- आधारभूत रक्षा समझौते: LEMOA (वर्ष 2016), COMCASA (वर्ष 2018), BECA (वर्ष 2020)
- संयुक्त सैन्य अभ्यास: मालाबार का विस्तार (अमेरिका-भारत-जापान-ऑस्ट्रेलिया), युद्ध अभ्यास और वज्र प्रहार।
- परिवर्तित आर्थिक और व्यापार साझेदारी (वर्ष 2020 — वर्तमान)
- भारत में अमेरिकी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में वृद्धि हुई है, विशेष रूप से प्रौद्योगिकी, ऊर्जा और स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में।
- अमेरिका-भारत रणनीतिक स्वच्छ ऊर्जा साझेदारी (SCEP, 2021) का उद्देश्य नवीकरणीय ऊर्जा और हरित प्रौद्योगिकी है।
- सहयोग के उभरते क्षेत्र
- AI, क्वांटम कंप्यूटिंग और 5G:
- US-इंडिया आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इनिशिएटिव (वर्ष 2022) AI और साइबर सुरक्षा पर केंद्रित है।
- महत्त्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकी पहल (iCET, 2022) संयुक्त नवाचार को बढ़ावा देती है।
यद्यपि भारत-अमेरिका संबंधों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आया है, फिर भी प्रमुख चुनौतियाँ बनी हुई हैं:
- व्यापार बाधाएँ: भारत के व्यापार अधिशेष, टैरिफ एवं डेटा स्थानीयकरण पर अमेरिका की चिंताएँ; अमेरिकी इस्पात टैरिफ, GSP हटाने और WTO विवादों के साथ भारत के मुद्दे।
- सामरिक स्वायत्तता: भारत के रूस संबंध (S-400 सौदा) और तटस्थ यूक्रेन रुख से अमेरिकी संबंधों में तनाव; BRICS और SCO को संतुलनकारी कदम के रूप में देखा जा रहा है।
- रक्षा एवं प्रौद्योगिकी: सुरक्षा चिंताओं के कारण COMCASA/BECA में विलंब; अमेरिकी निर्यात नियंत्रण के कारण प्रौद्योगिकी तक अभिगम सीमित है।
- वीज़ा मुद्दे: H-1B वीज़ा प्रतिबंध और ग्रीन कार्ड बैकलॉग भारतीय पेशेवरों को प्रभावित करते हैं।
सामरिक साझेदारी को सुदृढ़ करने के उपाय:
- आर्थिक एवं व्यापारिक संबंध: द्विपक्षीय व्यापार समझौते में तेज़ी लाने, टैरिफ विवादों का समाधान करने तथा विनिर्माण में निवेश को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
- रक्षा एवं सुरक्षा: रक्षा प्रौद्योगिकी एवं व्यापार पहल के अंतर्गत संयुक्त रक्षा उत्पादन को बढ़ाने तथा साइबर सुरक्षा सहयोग में सुधार करने की आवश्यकता है।
- प्रौद्योगिकी और डिजिटल सहयोग: AI, क्वांटम कंप्यूटिंग और सेमीकंडक्टर में साझेदारी का विस्तार तथा भारत के डिजिटल बुनियादी अवसंरचना में अमेरिकी निवेश में वृद्धि की जा सकती है।
- हिंद-प्रशांत रणनीति: हिंद महासागर क्षेत्र में क्वाड सहयोग और समुद्री सुरक्षा को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
- आव्रजन एवं कार्यबल: H-1B वीज़ा प्रक्रियाओं को सरल बनाने तथा कुशल श्रमिकों के लिये ग्रीन कार्ड अनुमोदन में तेज़ी लाने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष:
भारत-अमेरिका संबंध दूर-दराज़ के लोकतंत्रों से अपरिहार्य रणनीतिक साझेदारों में बदल गए हैं। शीत युद्ध के तनावों से लेकर रक्षा, व्यापार, प्रौद्योगिकी और इंडो-पैसिफिक सुरक्षा में वर्तमान सहयोग तक, यह प्रक्षेपवक्र साझा लोकतांत्रिक मूल्यों, आर्थिक परस्पर निर्भरता एवं भू-राजनीतिक संरेखण को उजागर करता है।