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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न: "राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियाँ संघीय सामंजस्य के बजाय संवैधानिक टकराव का स्रोत बन गई हैं।" इस संदर्भ में भारत में राज्यपाल के कार्यालय में सुधार के उपायों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    18 Feb, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • राज्यपाल के कार्यालय के संदर्भ में संक्षिप्त जानकारी देकर उत्तर प्रस्तुत दीजिये। 
    • राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों और संवैधानिक टकराव पर प्रकाश डालिये। 
    • संघीय सद्भाव को सुदृढ़ करने के लिये सुधार कीजिये। 
    • उचित निष्कर्ष दीजिये। 

    परिचय: 

    राज्य के संवैधानिक प्रमुख के रूप में राज्यपाल भारत के संघीय संरचना को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 

    • हालाँकि, विवेकाधीन शक्तियों (अनुच्छेद 163 के तहत) के बढ़ते प्रयोग (विशेष रूप से विधेयकों पर सहमति, सरकार गठन और राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करने जैसे क्षेत्रों में) के कारण केंद्र एवं राज्यों के बीच टकराव उत्पन्न हो गया है। 
    • इससे संघीय सद्भाव, राजनीतिक तटस्थता और संवैधानिक औचित्य को लेकर चिंताएँ उत्पन्न हो गई हैं।

    मुख्य भाग: 

    राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियाँ और संवैधानिक टकराव: 

    • विधायी विवेक
      • विधेयकों पर स्वीकृति रोकना या विलंब करना (अनुच्छेद 200, 201): राज्यपाल प्रायः विधेयकों पर स्वीकृति में विलंब करते हैं या उन्हें राष्ट्रपति के लिये आरक्षित रखते हैं, जिसके परिणामस्वरूप विधायी निष्क्रियता उत्पन्न हो जाती है।
        • उदाहरण: तमिलनाडु (2023) में राज्यपाल ने कई विधेयकों को रोक दिया, जिससे सर्वोच्च न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ा।
    • राजनीतिक विवेक
      • त्रिशंकु विधानसभा में सरकार गठन: स्पष्ट दिशा-निर्देशों के अभाव के कारण राज्यपाल अपनी पसंद की पार्टियों को आमंत्रित कर सकते हैं।
        • उदाहरण: कर्नाटक (वर्ष 2018) में राज्यपाल ने बिना बहुमत समर्थन वाली पार्टी को 15 दिन का समय दिया था, जिसे बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने कम कर दिया था।
      • राष्ट्रपति शासन की सिफारिश (अनुच्छेद 356): प्रायः विपक्ष के नेतृत्व वाली सरकारों को अस्थिर करने के लिये इसका दुरुपयोग किया जाता है।
        • उदाहरण: उत्तराखंड (वर्ष 2016) में राज्यपाल ने फ्लोर टेस्ट से ठीक पहले राष्ट्रपति शासन की सिफारिश की।
    • प्रशासनिक और संस्थागत भागीदारी 
      • विश्वविद्यालय नियुक्तियों में हस्तक्षेप: राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में राज्यपालों ने निर्वाचित सरकारों को दरकिनार कर दिया है।
        • उदाहरण: पश्चिम बंगाल (वर्ष 2023) में एकतरफा कुलपति नियुक्तियों के कारण कानूनी लड़ाई हुई।

    संघीय सद्भाव को सुदृढ़ करने के लिये सुधार: 

    • विधेयकों पर स्वीकृति के लिये समय-सीमा निर्धारित करना: सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि राज्यपालों को ‘यथाशीघ्र’ कार्यवाही करनी चाहिये।
      • पुंछी आयोग (वर्ष 2010) ने विधेयक पर विचार के लिये छह महीने की सीमा का सुझाव दिया था।
    • सरकार गठन के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देश: सरकारिया और पुंछी आयोगों ने मनमाने निर्णयों को रोकने के लिये स्पष्टता की आवश्यकता पर बल दिया।
      • एक संरचित क्रम का पालन करना:
        • चुनाव पूर्व गठबंधन
        • सबसे बड़ी पार्टी
        • चुनाव-पश्चात गठबंधन
    • नियुक्ति और हटाने की प्रक्रिया में सुधार: नियुक्ति से पहले मुख्यमंत्रियों के साथ परामर्श, जैसा कि सरकारिया आयोग ने सुझाव दिया था।
      • पुंछी आयोग (वर्ष 2010) ने सिफारिश की थी कि राज्यपाल गैर-राजनीतिक व्यक्ति होने चाहिये।
    • राज्यपालों को जवाबदेह बनाना: असंवैधानिक निर्णयों को रोकने के लिये (रामेश्वर प्रसाद केस, 2006) राज्यपालों के कार्यों की न्यायिक समीक्षा।
      • पारदर्शिता के लिये राज्यपालों को वार्षिक रिपोर्ट राज्य सभा को प्रस्तुत करना अनिवार्य किया गया।
    • अंतिम उपाय के रूप में राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356):
      • एस.आर. बोम्मई निर्णय (वर्ष 1994): राष्ट्रपति शासन अंतिम उपाय होना चाहिये और न्यायिक समीक्षा के अधीन होना चाहिये।
      • सरकारिया आयोग ने संपूर्ण सरकार को बर्खास्त करने के बजाय लक्षित हस्तक्षेप की सिफारिश की।
    • राज्यपालों के लिये महाभियोग प्रक्रिया शुरू करना
      • पुंछी आयोग ने राष्ट्रपति के समान ही महाभियोग प्रक्रिया का सुझाव दिया।
      • सर्वोच्च न्यायालय (बी.पी. सिंघल केस, 2010) ने फैसला सुनाया कि राज्यपाल को हटाने के लिये वैध कारण होने चाहिये।

    निष्कर्ष: 

    यद्यपि राज्यपाल भारत के संवैधानिक संरचना में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, फिर भी विवेकाधीन शक्तियों के लगातार दुरुपयोग ने केंद्र-राज्य तनाव को जन्म दिया है। स्पष्ट दिशा-निर्देश, समय-सीमा और जवाबदेही उपायों को लागू करने से यह सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी कि राज्यपाल राजनीतिक कौशल के लिये एक साधन के बजाय एक तटस्थ संवैधानिक प्राधिकारी बने रहें। एक बेहतर राज्यपाल का कार्यालय संघीय सद्भाव को सुदृढ़ करता है और लोकतांत्रिक सिद्धांतों को बनाए रखता है।

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