प्रश्न. यह आकलन किस हद तक सही है कि मुगल साम्राज्य के पतन के लिये औरंगज़ेब की नीतियाँ ज़िम्मेदार थीं? इसके अतिरिक्त, साम्राज्य के विघटन में योगदान देने वाले अन्य कारणों की भी जाँच कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- मुगल साम्राज्य के पतन के संदर्भ में संक्षेप में बताते हुए उत्तर दीजिये।
- औरंगज़ेब की नीतियों के कारण मुगल साम्राज्य के पतन पर चर्चा कीजिये।
- मुगल पतन में योगदान देने वाले अन्य कारकों पर प्रकाश डालिये।
- मुगल पतन के बाद की घटना का उल्लेख करते हुए निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
मुगल साम्राज्य के पतन के लिये प्रायः औरंगज़ेब की नीतियों, विशेषकर उसकी धार्मिक रूढ़िवादिता और लंबे सैन्य अभियानों को जिम्मेदार ठहराया जाता है।
- यद्यपि औरंगज़ेब के शासनकाल ने निश्चित रूप से साम्राज्य को कमज़ोर करने में योगदान दिया, परंतु कई संरचनात्मक, आर्थिक और बाह्य कारकों ने भी अंततः इसके विघटन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
मुख्य भाग:
औरंगज़ेब की नीतियों के कारण मुगल साम्राज्य का पतन
- धार्मिक असहिष्णुता और मित्र राष्ट्रों का अलगाव
- औरंगज़ेब ने अकबर की धार्मिक सहिष्णुता की नीतियों को बदल दिया, जिससे हिंदुओं और सिखों में असंतोष फैल गया।
- उन्होंने गैर-मुसलमानों पर जज़िया कर पुनः लागू कर दिया, मंदिरों को नष्ट कर दिया और बलात् धर्मांतरण कराया, जिससे राजपूत, मराठा, जाट और सिख अलग-थलग पड़ गये।
- दक्कन नीति और सैन्य विस्तार
- दक्कन में औरंगज़ेब के आक्रामक विस्तार के कारण बीजापुर और गोलकुंडा पर कब्ज़ा कर लिया गया, जो पहले मराठों के खिलाफ बफर राज्यों के रूप में काम करते थे।
- मराठों के विरुद्ध उनके 25 वर्ष लंबे युद्ध (वर्ष 1680-1707) के कारण मुगल खजाना खाली हो गया, केंद्रीय प्रशासन को कमज़ोर पड़ गया तथा संसाधनों पर अत्यधिक दबाव पड़ा।
- मुगल कुलीनता और मनसबदारी व्यवस्था का कमज़ोर होना
- औरंगज़ेब के कुलीन वर्ग पर सख्त नियंत्रण से असंतोष उत्पन्न हुआ और गुटबाजी बढ़ गई।
- जागीरदारी संकट इसलिये उत्पन्न हुआ क्योंकि जागीर के रूप में दी जाने वाली उपजाऊ भूमि की कमी थी, जिसके कारण सरदारों में असंतोष उत्पन्न हुआ और सैन्य प्रभावशीलता कमज़ोर हो गई।
मुगल पतन में योगदान देने वाले अन्य कारक:
- कमज़ोर उत्तराधिकारी और उत्तराधिकार को लेकर युद्ध
- औरंगज़ेब की मृत्यु (वर्ष 1707) के बाद, साम्राज्य को उसके कमज़ोर और अयोग्य उत्तराधिकारियों के बीच उत्तराधिकार को लेकर बार-बार युद्धों से जूझना पड़ा।
- कुलीन वर्ग और क्षेत्रीय शासकों ने अपनी स्वतंत्रता कायम रखने के लिये इस अस्थिरता का लाभ उठाया।
- मुगल कुलीनता का पतन
- कुलीन वर्ग भ्रष्ट, विलासी और अकुशल हो गया तथा शासन की अपेक्षा व्यक्तिगत सुखों को प्राथमिकता देने लगा।
- तूरानी, फारसियों, अफगानों और हिंदुस्तानियों के बीच राजनीतिक गुटबाजी ने केंद्रीय सत्ता को कमज़ोर कर दिया।
- मुगल सेना का पतन
- मुगल सेना निम्नलिखित कारणों से अनुशासनहीन और विश्वासघाती हो गई:
- मनसबदारी प्रणाली की अकुशलता, जहाँ सैनिकों को सम्राट के बजाय अपने कमांडरों के प्रति वफादार होना पड़ता था।
- प्रायः विश्वासघात और द्रोह, जहाँ कुलीन वर्ग प्रायः व्यक्तिगत लाभ के लिये दुश्मन के साथ संपर्क करते थे।
- आर्थिक संकट और कृषि में गिरावट
- उच्च कराधान और राजस्व मांगों के कारण किसान विद्रोह एवं आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया।
- यूरोपीय प्रतिस्पर्द्धा और व्यापार मार्गों में व्यवधान के कारण व्यापार एवं वाणिज्य में गिरावट ने अर्थव्यवस्था को और भी कमज़ोर कर दिया।
- विदेशी आक्रमण और बाह्य दबाव
- नादिर शाह के आक्रमण (वर्ष 1739) और 18वीं शताब्दी के मध्य में अहमद शाह अब्दाली के बार-बार आक्रमणों ने साम्राज्य को गंभीर रूप से कमज़ोर कर दिया, जिससे इसकी सैन्य कमज़ोरियाँ उजागर हो गईं।
- पानीपत की तीसरी लड़ाई (वर्ष 1761) ने मुगल ताबूत में अंतिम कील सिद्ध हुई, क्योंकि साम्राज्य ने मराठों के हाथों अपनी सैन्य सर्वोच्चता खो दी।
निष्कर्ष:
मुगल साम्राज्य का पतन औरंगज़ेब की नीतियों, प्रशासनिक विफलताओं, आर्थिक संकटों और लगातार बाह्य आक्रमणों का परिणाम था। कमज़ोर केंद्र और बढ़ती क्षेत्रीय शक्तियों के कारण इसका पतन अवश्यंभावी हो गया, जिससे इसका अंतत: विघटन हो गया।