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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. एक कल्याणकारी राज्य के अपने नागरिकों के प्रति नैतिक दायित्व क्या हैं? भारत के संवैधानिक दर्शन और सामाजिक न्याय नीतियों के संदर्भ में विश्लेषण कीजिये। (150 शब्द)

    13 Feb, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • कल्याणकारी राज्य को परिभाषित करते हुए उत्तर दीजिये। 
    • कल्याणकारी राज्य के नैतिक दायित्वों को गहन विचार प्रस्तुत कीजिये।
    • नैतिक दायित्वों को पूरा करने में आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
    • किसी प्रासंगिक उद्धरण के साथ उचित निष्कर्ष दीजिये। 

    परिचय: 

    एक कल्याणकारी राज्य सामाजिक न्याय के सिद्धांत पर आधारित होता है, जो सभी नागरिकों, विशेषकर सीमांत समुदाय के लोगों की भलाई सुनिश्चित करता है।

    • कल्याणकारी राज्य में नैतिक शासन के लिये ऐसी नीतियों की आवश्यकता होती है जो समानता, समावेशिता और गरिमा को बढ़ावा दें तथा संसाधनों के उचित वितरण, मौलिक अधिकारों की सुरक्षा एवं वंचित वर्गों के सशक्तीकरण जैसी नैतिक जिम्मेदारियों के साथ संरेखित हों।

    मुख्य भाग: 

    कल्याणकारी राज्य के नैतिक दायित्व: 

    • मौलिक अधिकारों और मानव गरिमा का संरक्षण
      • एक कल्याणकारी राज्य को सभी नागरिकों के लिये बुनियादी स्वतंत्रता, समानता और सम्मान की गारंटी देनी चाहिये।
      • भारत का संवैधानिक आधार:
        • अनुच्छेद 14-18: समानता का अधिकार गैर-भेदभाव सुनिश्चित करता है।
        • अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार (गोपनीयता, पर्यावरण संरक्षण आदि के अधिकार को शामिल करने के लिये विस्तारित)।
      • उदाहरण: के.एस. पुत्तास्वामी बनाम भारत संघ (गोपनीयता का अधिकार, 2017) जैसे सर्वोच्च न्यायालय के फैसले व्यक्तिगत गरिमा के प्रति नैतिक प्रतिबद्धता को दृढ़ करते हैं।
    • सामाजिक एवं आर्थिक न्याय सुनिश्चित करना: 
      • एक कल्याणकारी राज्य को ऐतिहासिक अन्याय को दूर करना चाहिये तथा सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को दूर करना चाहिये।
        • रॉल्स का सिद्धांत सीमांत समुदायों के लिये सकारात्मक कार्रवाई का समर्थन करता है।
      • भारत का संवैधानिक आधार:
        • प्रस्तावना: सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय सुनिश्चित करता है।
        • DPSP (राज्य के नीति निदेशक तत्त्व): नीतियों के माध्यम से कल्याण सुनिश्चित करने में राज्य का मार्गदर्शन (अनुच्छेद 38, 39, 41, 43, 46) करते हैं।
      • उदाहरण:
        • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम गारंटीकृत रोज़गार के माध्यम से आर्थिक न्याय को बढ़ावा देता है।
    • संसाधनों का न्यायसंगत वितरण: 
      • नैतिक शासन के लिये समाज के कमज़ोर वर्गों के उत्थान की दिशा में धन और अवसरों का पुनर्वितरण आवश्यक है।
      • भारत का संवैधानिक आधार: अनुच्छेद 39(b): यह सुनिश्चित करता है कि "भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण सामान्य भलाई के लिये वितरित किया जाए।"
      • उदाहरण: भूमि सुधार, PM किसान सम्मान निधि, PM गरीब कल्याण अन्न योजना और आवश्यक वस्तुओं के लिये सब्सिडी।
    • सीमांत वर्गों का सशक्तीकरण : 
      • एक न्यायपूर्ण कल्याणकारी राज्य वंचित समूहों के उत्थान के लिये सकारात्मक कार्रवाई करता है, तथा राष्ट्रीय प्रगति में समान भागीदारी सुनिश्चित करता है।
    • भारत का संवैधानिक आधार:
      • अनुच्छेद 15(4) और 16(4): शिक्षा और रोज़गार में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिये सकारात्मक कार्रवाई।
      • उदाहरण:
        • अनुच्छेद 15(4) और 16(4) के तहत शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण नीतियाँ।
    • बुनियादी आवश्यकताओं तक सार्वभौमिक अभिगम (स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा): 
      • नैतिक शासन के लिये शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक सुरक्षा जैसी बुनियादी आवश्यकताएँ प्रदान करना आवश्यक है।
        • उपयोगितावाद अधिकतम सामाजिक लाभ के लिये सार्वजनिक वितरण प्रणाली और निशुल्क स्वास्थ्य सेवा जैसी कल्याणकारी योजनाओं को उचित ठहराता है।
    • भारत का संवैधानिक आधार:
      • अनुच्छेद 21A (शिक्षा का अधिकार) और अनुच्छेद 47: सार्वजनिक स्वास्थ्य और पोषण में सुधार करने का राज्य का कर्त्तव्य।
      • उदाहरण:
        • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP- 2020) समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देती है।
        • आयुष्मान भारत (PMJAY) कमज़ोर वर्गों को मुफ्त स्वास्थ्य बीमा प्रदान करता है।
    • पारदर्शिता, जवाबदेही और सहभागितापूर्ण शासन
      • नैतिक शासन के लिये निर्णय लेने में पारदर्शिता, जवाबदेही और सक्रिय नागरिक भागीदारी आवश्यक है।
      • भारत का संवैधानिक आधार:
        • सूचना का अधिकार (RTI अधिनियम, 2005) पारदर्शिता को सुदृढ़ करता है।
        • पंचायती राज (73वाँ एवं 74वाँ संशोधन) विकेंद्रीकृत शासन को बढ़ावा देता है।
      • उदाहरण: मनरेगा के अंतर्गत सामाजिक ऑडिट, केरल में भागीदारीपूर्ण शासन मॉडल।

    नैतिक दायित्वों को पूरा करने में चुनौतियाँ

    • कार्यान्वयन में अंतराल: कल्याणकारी योजनाएँ प्रायः अकुशलता और भ्रष्टाचार (जैसे: PDS में लीकेज) का सामना करती हैं।
    • सामाजिक असमानताएँ: सकारात्मक कार्रवाई के बावजूद, जाति और लिंग आधारित भेदभाव (भारतीय महिलाएँ पुरुषों द्वारा अर्जित प्रत्येक 100 रुपए में से केवल 40 रुपए कमाती हैं) जारी है। 
    • प्रशासनिक लालफीताशाही: प्रशासनिक अक्षमताएँ कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन को धीमा कर देती हैं। (हाल ही में आई मनरेगा रिपोर्ट में भ्रष्टाचार, विलंब से मिलने वाली मज़दूरी, काम की कमी और पात्रता प्राप्त करने में प्रशासनिक बाधाओं के सदर्भ में श्रमिकों की शिकायतों पर प्रकाश डाला गया है।)

    निष्कर्ष:

    एक कल्याणकारी राज्य को अपने नैतिक दायित्वों को पूरा करने के लिये, शासन निष्पक्षता, गरिमा और समावेशिता पर आधारित होना चाहिये। जैसा कि बी.आर. अंबेडकर ने सही कहा था, "किसी भी समाज की प्रगति इस बात पर निर्भर करती है कि वह अपने सबसे कमज़ोर वर्गों के साथ कैसा व्यवहार करता है।" 

    इसलिये, एक कल्याणकारी राज्य में नैतिक शासन को केवल प्रशासन से कहीं अधिक न्याय और सशक्तीकरण को प्राथमिकता देनी चाहिये।

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