प्रश्न. क्या विवेक नैतिक आचरण के लिये एक अचूक मार्गदर्शक है, या यह सामाजिक परिस्थितियों से प्रभावित होता है? लोक सेवकों के लिये व्यावसायिक नैतिकता के संदर्भ में परीक्षण कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- विवेक को परिभाषित करके उत्तर दीजिये।
- विवेक को एक अचूक मार्गदर्शक और सामाजिक परिस्थितियों के परिणाम के रूप में तर्क दीजिये।
- लोक सेवा में विवेक और नैतिक कार्यढाँचे के बीच संतुलन के लिये उपाय सुझाइये।
- एक अच्छे उद्धरण के साथ अपने उत्तर का समापन कीजिये।
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परिचय:
विवेक वह आंतरिक नैतिक दिशासूचक है जो व्यक्तियों को सही और गलत में अंतर करने में मदद करता है। यद्यपि कुछ लोग इसे नैतिक आचरण के लिये एक अचूक मार्गदर्शक मानते हैं, वहीं अन्य लोग तर्क देते हैं कि यह सामाजिक, सांस्कृतिक और संस्थागत परिस्थितियों द्वारा आकार लेता है।
मुख्य भाग:
विवेक एक अचूक मार्गदर्शक के रूप में:
- स्वाभाविक नैतिक भावना: इमैनुअल कांट जैसे दार्शनिक तर्क देते हैं कि विवेक एक अंतर्निहित क्षमता है जो तर्क और सार्वभौमिक सिद्धांतों के आधार पर नैतिक कार्यों का मार्गदर्शन करती है।
- इसी प्रकार, जॉन रॉल्स का न्याय सिद्धांत निष्पक्षता और ‘मूल स्थिति’ की अवधारणा पर ज़ोर देता है, जहाँ नैतिक और न्यायपूर्ण सिद्धांतों का चयन ‘अज्ञानता के आवरण’ के पीछे किया जाता है, जिससे निर्णय लेने में निष्पक्षता और समानता सुनिश्चित होती है।
- निष्पक्ष नैतिक निर्णय: एक सुविकसित विवेक लोक सेवकों को भ्रष्टाचार और राजनीतिक प्रभाव जैसे बाह्य दबावों का विरोध करते हुए ईमानदारी के साथ कार्य करने में सक्षम बनाता है।
- प्रशासन से उदाहरण:
- दिल्ली मेट्रो परियोजना में ई. श्रीधरन का नेतृत्व प्रशासिनक चुनौतियों के बावजूद उनके अखंड नैतिक प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
- भ्रष्टाचार के विरुद्ध अशोक खेमका का रुख प्रणालीगत दबावों के बावजूद आंतरिक नैतिक संहिता के पालन को दर्शाता है।
- टी.एन. शेषन ने राजनीतिक प्रभाव का विरोध करने में नैतिक साहस का परिचय दिया।
सामाजिक अनुकूलन के परिणाम के रूप में विवेक:
- सांस्कृतिक और सामाजिक मानदंडों का प्रभाव: परिवार, शिक्षा और समाज से प्राप्त मूल्य व्यक्ति के नैतिक दृष्टिकोण को आयाम देते हैं।
- वंशवाद के प्रति सहनशील प्रणाली में पला-बढ़ा एक लोक सेवक अनजाने में पक्षपाती व्यवहार को सही ठहरा सकता है।
- संस्थागत और व्यावसायिक वातावरण: लालफीताशाही संस्कृति, राजनीतिक प्रभाव और साथियों का व्यवहार प्रायः नैतिक निर्णय की क्षमता को प्रभावित करते हैं।
लोक सेवा में विवेक और नैतिक कार्यढाँचे में संतुलन:
- संहिताबद्ध नैतिकता और कानून: लोक सेवकों को अपने अंतः करण को संवैधानिक मूल्यों, विधिक रूपरेखा (जैसे: आचरण नियम) और संस्थागत नैतिकता के अनुरूप संतुलित करना चाहिये।
- प्रशिक्षण और नैतिक अभिविन्यास: व्यावसायिक नैतिकता पर नियमित प्रशिक्षण (उदाहरण के लिये, LBSNAA और मिशन कर्मयोगी के माध्यम से) लोकतांत्रिक एवं मानवीय सिद्धांतों के अनुरूप विवेक को परिष्कृत करने में मदद करता है।
- इसमें संज्ञानात्मक पूर्वाग्रहों के बारे में जागरूकता कार्यक्रम भी शामिल होना चाहिये।
- नैतिक साहस और चिंतन: एक सुविचारित विवेक, आत्म-चिंतन और साथियों के साथ विचार-विमर्श के साथ मिलकर, व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों से परे नैतिक निर्णय लेने को सुनिश्चित करता है।
निष्कर्ष:
“There is no pillow as soft as a clear conscience” — ग्लेन कैंपबेल।
अर्थात् अंतःकरण की ईमानदारी और नैतिकता वह मार्गदर्शक होती है, जिसकी दिशा में चलकर व्यक्ति को मानसिक चिंता या अपराधबोध का सामना नहीं करना पड़ता।
यद्यपि नैतिक व्यवहार के लिये विवेक एक महत्त्वपूर्ण मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है, फिर भी यह सामाजिक परिस्थितियों के कारण पूर्ण नहीं है। लोक सेवकों के लिये, पेशेवर नैतिकता को व्यक्तिगत या सामाजिक पूर्वाग्रहों के बजाय संवैधानिक नैतिकता, सार्वजनिक सेवा मूल्यों और निरंतर नैतिक प्रशिक्षण द्वारा आयाम दिया जाना चाहिये।