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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न: 'विस्तारित पड़ोस' की अवधारणा भारत की विदेश नीति का केंद्र बन गई है। विश्लेषण कीजिये कि यह भारत के पारंपरिक पड़ोस से परे उसके रणनीतिक और आर्थिक संबंधों को किस प्रकार प्रभावित करती है? (250 शब्द)

    11 Feb, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • भारत की विस्तारित पड़ोस नीति के संदर्भ में जानकारी के साथ उत्तर दीजिये। 
    • भारत के विस्तारित पड़ोस संबंधों को आकार देने वाली प्रमुख पहलों पर प्रकाश डालिये। 
    • विस्तारित पड़ोस नीति के रणनीतिक निहितार्थों पर गहन विचार प्रस्तुत कीजिये।
    • इसकी चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए उपाय सुझाइये।
    • एक दूरदर्शी दृष्टिकोण के साथ उचित निष्कर्ष दीजिये। 

    परिचय

    भारत की ‘विस्तारित पड़ोस’ नीति अपने रणनीतिक उद्देश्यों को व्यापक बनाती है, ताकि इसके निकटवर्ती पड़ोसियों के अलावा दक्षिण पूर्व एशिया, पश्चिम एशिया, मध्य एशिया और हिंद-प्रशांत जैसे क्षेत्रों को भी शामिल किया जा सके। 

    • यह एक्ट ईस्ट पॉलिसी, कनेक्ट सेंट्रल एशिया, इंडो-पैसिफिक विज़न और भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन जैसी पहलों में स्पष्ट है।

    मुख्य भाग: 

    भारत की विस्तारित पड़ोस सहभागिता को आयाम देने वाली प्रमुख पहल 

    • दक्षिण पूर्व एशिया: 
      • एक्ट ईस्ट नीति (वर्ष 2014): ASEAN के साथ आर्थिक, समुद्री और सुरक्षा संबंधों को गहरा करना।
      • भारत-ASEAN समुद्री अभ्यास (वर्ष 2023): समुद्री सुरक्षा बढ़ाना और चीनी प्रभाव का मुकाबला करना।
      • क्वाड (भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया): हिंद-प्रशांत सुरक्षा को मज़बूत करना।
      • भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग और कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांज़िट परियोजना
    • पश्चिम एशिया: 
      • भारत-UAE व्यापक आर्थिक साझेदारी: UAE ने भारत से आयात के 99% के अनुरूप अपनी 97.4% टैरिफ लाइनों पर शुल्क समाप्त कर दिया।
        • वित्तीय लेनदेन के लिये UAE (वर्ष 2024) के साथ RuPay कार्ड और UPI एकीकरण, जिससे डॉलर पर निर्भरता कम होगी।
      • I2U2 पहल (भारत, इज़रायल, UAE, अमेरिका) (वर्ष 2022): खाद्य सुरक्षा, स्वच्छ ऊर्जा और व्यापार पर ध्यान केंद्रित।
      • चाबहार बंदरगाह विकास (ईरान): मध्य एशिया और अफगानिस्तान तक व्यापार पहुँच को सुविधाजनक बनाना।
      • ऊर्जा सहयोग को मज़बूत करने के लिये भारत-सऊदी रणनीतिक साझेदारी परिषद (वर्ष 2019)।
    • मध्य एशिया: 
      • ‘कनेक्ट सेंट्रल एशिया’ नीति (वर्ष 2012): राजनीतिक और सुरक्षा संबंधों को मज़बूत करना।
      • भारत-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन (वर्ष 2022): व्यापार, सुरक्षा और कनेक्टिविटी पर उच्च स्तरीय भागीदारी।
      • ताज़िकिस्तान के साथ सैन्य सहयोग: भारत फारखोर एयरबेस का संचालन करता है, जिससे उसकी सामरिक पहुँच बढ़ती है।
      • ऊर्जा सुरक्षा: भारत का लक्ष्य TAPI पाइपलाइन के माध्यम से तुर्कमेनिस्तान के गैस क्षेत्रों तक पहुँच बनाना है।
      • कनेक्टिविटी परियोजनाएँ: चाबहार बंदरगाह - INSTC: भारत, ईरान, मध्य एशिया और रूस को जोड़ता है, जिससे व्यापार लागत कम हो जाती है तथा पाकिस्तान की ज़रूरत नहीं पड़ती।
    • अफ्रीका:
      • भारत-अफ्रीका मंच शिखर सम्मेलन (वर्ष 2008 से): राजनयिक और विकास सहयोग को मज़बूत करना।
        • वर्ष 2023 में भारत की G20 अध्यक्षता के दौरान अफ्रीकी संघ (AU) को G20 का स्थायी सदस्य बनाया गया है।
      • रक्षा: भारत ने मोज़ाम्बिक और मेडागास्कर सहित कई अफ्रीकी देशों के साथ रक्षा समझौते किये हैं। 
        • वर्ष 2008 से, सोमालिया के तट पर भारतीय नौसेना के समुद्री डकैती विरोधी अभियानों ने भारतीय और वैश्विक समुद्री व्यापार दोनों को सुरक्षित रखा है।
      • नवीकरणीय ऊर्जा: भारत की अगुवाई में अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन ने अफ्रीका में सौर परियोजनाओं के लिये 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर निर्धारित किये हैं।

    विस्तारित पड़ोस नीति के रणनीतिक निहितार्थ

    आयाम

    निहितार्थ

    आर्थिक विकास

    व्यापार और निवेश के लिये बाज़ारों का विस्तार (ASEAN, अफ्रीका, खाड़ी)

    ऊर्जा सुरक्षा

    तेल और गैस आयात में विविधता लाना (पश्चिम एशिया, मध्य एशिया, अफ्रीका)

    समुद्री सुरक्षा

    हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नौसेना की उपस्थिति को मज़बूत करना तथा हिंद महासागर में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करना (जैसे: हंबनटोटा बंदरगाह)

    भू-राजनीतिक लाभ

    बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं के साथ चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) का मुकाबला करना।

    कनेक्टिविटी संवर्द्धन

    बेहतर क्षेत्रीय एकीकरण के लिये INSTC, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा, भारत-म्याँमार-थाईलैंड राजमार्ग।

    विस्तारित पड़ोस नीति के कार्यान्वयन में चुनौतियाँ

    • चीन का बढ़ता प्रभाव: स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स बंदरगाह और BRI परियोजनाएँ भारत के सामरिक अभिगम को सीमित करती हैं।
    • बुनियादी अवसंरचना का धीमा क्रियान्वयन: चाबहार बंदरगाह और भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग जैसी प्रमुख परियोजनाओं में विलंब से क्षेत्रीय संपर्क कमज़ोर हो रहा है।
    • भू-राजनीतिक अनिश्चितताएँ: अमेरिका-ईरान तनाव का चाबहार पर प्रभाव; पश्चिम एशिया में तनाव बढ़ने से (इज़रायल-हमास युद्ध) सहयोग प्रभावित। 
    • व्यापार बाधाएँ: भारत की क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी से उद्योगों को सुरक्षा मिलती है, लेकिन ASEAN बाज़ार तक पहुँच कम हो जाती है।

    विस्तारित पड़ोस नीति के उन्नत कार्यान्वयन के लिये उपाय: 

    • क्षेत्रीय संपर्क को मज़बूत करना: चाबहार बंदरगाह और INSTC परियोजनाओं में तेज़ी लाए जाने की आवश्यकता है।
    • चीन के प्रभाव का मुकाबला करना: डायमंड ऑफ नेकलेस पहल के माध्यम से ASEAN, मध्य एशिया और अफ्रीका में भारत के बुनियादी अवसरंचना के निवेश को बढ़ाए जाने की आवश्यकता है।
    • रक्षा कूटनीति को बढ़ावा देना: खाड़ी देशों, अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया के साथ सैन्य साझेदारी का विस्तार किया जाना चाहिये।
    • आर्थिक एकीकरण: व्यापार बढ़ाने के लिये ASEAN और अफ्रीका के साथ द्विपक्षीय FTA पर वार्ता की जानी चाहिये।
    • प्रौद्योगिकी कूटनीति का लाभ उठाना: उभरते बाज़ारों में AI, फिनटेक और अंतरिक्ष सहयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।

    निष्कर्ष: 

    भारत की विस्तारित पड़ोस नीति ने इसे एक क्षेत्रीय और वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित किया है, जिससे आर्थिक विकास, रणनीतिक सुरक्षा एवं भू-राजनीतिक प्रभाव सुनिश्चित हुआ है। हालाँकि, अपने नेतृत्व को बनाए रखने के लिये, भारत को कनेक्टिविटी बढ़ाने, चीन के प्रभाव का मुकाबला करने तथा आर्थिक साझेदारी को गहरा करने की आवश्यकता है। इस दृष्टिकोण की सफलता 21वीं सदी की वैश्विक व्यवस्था को आयाम देने में भारत की भूमिका को परिभाषित करे सकेगी।

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