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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न: "सहकारी संघवाद प्रतिस्पर्द्धी संघवाद का मार्ग प्रशस्त कर रहा है, जबकि सहयोगात्मक संघवाद अब भी एक आदर्श बना हुआ है।" बदलते केंद्र-राज्य संबंधों के संदर्भ में इस प्रवृत्ति का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)

    11 Feb, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • भारत में संघवाद की बदलती प्रकृति के बारे में जानकारी के साथ उत्तर दीजिये। 
    • केंद्र-राज्य संबंधों की बदलती प्रकृति के समर्थन में तर्क दीजिये। 
    • सहयोगात्मक संघवाद को मज़बूत करने के उपाय सुझाइये।
    • एक दूरदर्शी दृष्टिकोण के साथ उचित निष्कर्ष दीजिये। 

    परिचय: 

    संविधान में एकात्मक और संघीय विशेषताओं को मिलाकर "राज्यों का संघ" की परिकल्पना की गई है और भारत में संघवाद एक गतिशील प्रक्रिया है, जो ऐतिहासिक, आर्थिक और राजनीतिक कारकों द्वारा आकार लेती है। 

    मुख्य भाग: 

    केंद्र-राज्य संबंधों का बदलता स्वरूप: 

    • सहकारी संघवाद: 
      • अवधारणा: एक संरचित, नीति-संचालित दृष्टिकोण जहाँ केंद्र और राज्य समन्वित योजना एवं वित्तीय अंतरण के माध्यम से साझा राष्ट्रीय लक्ष्यों की दिशा में मिलकर काम करते हैं।
      • प्रमुख विशेषताएँ:
        • योजना आयोग के माध्यम से केंद्रीकृत योजना (वर्ष 1950-2014) .
        • नीति समन्वय के लिये निश्चित तंत्र, जैसे राष्ट्रीय विकास परिषद (वर्ष 1952-2014)।
      • उदाहरण:
        • हरित क्रांति (वर्ष 1960-70 का दशक): कृषि विकास पर केंद्र-राज्य सहयोग।
        • सर्व शिक्षा अभियान (वर्ष 2001): शिक्षा के लिये एक केंद्र प्रायोजित योजना, जिसे राज्य की भागीदारी से क्रियान्वित किया गया।
      • चुनौतियाँ:
        • अति-केंद्रीकरण ने राज्यों की स्वायत्तता को सीमित कर दिया।
        • कठोर वित्तपोषण संरचनाएँ, अकुशलता को जन्म देती हैं।
        • वित्तीय आवंटन का राजनीतिकरण, सत्तारूढ़ दल के राज्यों को लाभ पहुँचाना।
    • प्रतिस्पर्द्धी संघवाद: 
      • अवधारणा: राज्य आर्थिक संसाधनों, निवेश, केंद्र पर निर्भरता कम करने और दक्षता को बढ़ावा देने के लिये सक्रिय रूप से प्रतिस्पर्द्धा करते हैं।
      • परिवर्तन के चालक:
        • इसके अलावा, भारत के 15वें वित्त आयोग (FC) ने राज्यों को अनुदान आवंटित करते समय कर प्रयास को 2.5% महत्त्व दिया।
        • आर्थिक उदारीकरण (वर्ष 1991) ने विकेंद्रीकृत आर्थिक निर्णय-प्रक्रिया को जन्म दिया।
        • योजना आयोग को समाप्त करने (वर्ष 2014) से केंद्रीय आर्थिक नियोजन कम हो गया तथा राज्य-प्रेरित विकास पर ज़ोर दिया गया।
        • 14वें वित्त आयोग (वर्ष 2015) ने केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी 32% से बढ़ाकर 42% कर दी, जिससे उन्हें अधिक वित्तीय स्वायत्तता (हालाँकि बाद में 15वें वित्त आयोग द्वारा इसे घटाकर 41% कर दिया गया) मिली।
      • उदाहरण:
        • आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम (वर्ष 2018): सामाजिक-आर्थिक संकेतकों में सुधार के लिये प्रदर्शन-आधारित वित्त पोषण।
        • उदय योजना (वर्ष 2015): विद्युत क्षेत्र में सुधार के लिये राज्यों के लिये प्रतिस्पर्द्धी मॉडल।
      • चिंताएँ:
        • राजकोषीय तनाव: कमज़ोर राजस्व आधार वाले राज्यों को प्रतिस्पर्द्धा करने में संघर्ष करना पड़ता है।
        • क्षेत्रीय असमानताएँ: धनी राज्य अधिक निवेश आकर्षित करते हैं तथा गरीब राज्य पीछे रह जाते हैं।
        • बाज़ार शक्तियों पर अत्यधिक निर्भरता, सामाजिक कल्याण उद्देश्यों की संभावित उपेक्षा को जन्म देती है।
    • सहयोगात्मक संघवाद: प्रगति पर एक दृष्टिकोण
      • अवधारणा: सहकारी संघवाद (जो केंद्र द्वारा संरचित और समन्वित है) के विपरीत, सहयोगात्मक संघवाद अधिक लचीला है, जिसमें स्वैच्छिक भागीदारी, सर्वोत्तम अभ्यास साझाकरण और राज्यों के बीच तथा केंद्र एवं राज्यों के बीच नीतियों का सह-विकास शामिल है।
      • सहयोग के प्रयास:
        • GST परिषद (वर्ष 2017): केंद्र और राज्यों के बीच संयुक्त कर नीति निर्माण के लिये एक संरचित मंच।
        • राज्य-नेतृत्व वाली पहल: इंदिरा सागर पोलावरम परियोजना में गोदावरी नदी के 80 TMC अधिशेष जल को कृष्णा नदी में स्थानांतरित करने की परिकल्पना की गई है जिसे आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र के बीच साझा किया जाएगा।
      • सहयोग में बाधा डालने वाली चुनौतियाँ:
        • निर्णय लेने का केंद्रीकरण:
          • NEET परीक्षा नीति: कुछ राज्यों के विरोध के बावजूद एक समान मानक लागू किये गए।
        • राजकोषीय असंतुलन:
          • GST मुआवज़े में विलंब (वर्ष 2020 के बाद) से राज्य की वित्तीय स्थिति पर दबाव पड़ा।

    सहयोगात्मक संघवाद को मज़बूत करने के उपाय: 

    • संस्थागत सुदृढ़ीकरण:
      • अंतर्राज्यीय परिषद (अनुच्छेद 263) को एक सक्रिय विवाद समाधान निकाय के रूप में पुनर्जीवित किया जाएगा।
      • निष्पक्ष राजकोषीय वितरण सुनिश्चित करने के लिये वित्त आयोग की भूमिका को सुदृढ़ किया जाना चाहिये।
        • बेहतर स्थानीय शासन के लिये राज्य वित्त आयोगों को सशक्त बनाया जाना चाहिये।
    • संतुलित राजकोषीय अंतरण:
      • राज्यों को समय पर GST मुआवज़ा सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
      • केंद्र के विवेकाधीन अनुदान और उपकर में कमी लाकर राज्यों को अधिक वित्तीय स्वतंत्रता प्रदान की जानी चाहिये।
    • स्वैच्छिक सहयोग को प्रोत्साहित करना:
      • सर्वोत्तम प्रथाओं (जैसे: सतत् शहरी विकास, डिजिटल शासन) के आदान-प्रदान के लिये राज्य-संचालित नीति नेटवर्क स्थापित की जानी चाहिये।
      • क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग (जैसे, पूर्वी और पूर्वोत्तर राज्य औद्योगिक गलियारों के लिये मिलकर काम करें) को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। 
    • आम सहमति आधारित निर्णय लेना:
      • NITI आयोग को नीतिगत आम सहमति बनाने में मदद करनी चाहिये, न कि केवल राज्यों की रैंकिंग करनी चाहिये।
      • सह-विधान मॉडल को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये जहाँ केंद्र और राज्य दोनों प्रमुख राष्ट्रीय नीतियों का मसौदा तैयार कर सकें।

    निष्कर्ष: 

    एक सच्चे संतुलित संघीय ढाँचे के लिये संस्थागत मज़बूती, राज्यों के लिये वित्तीय स्वायत्तता और स्वैच्छिक सहयोग के लिये तंत्र की आवश्यकता होती है। विश्वास आधारित केंद्र-राज्य संबंधों को बढ़ावा देकर, भारत यह सुनिश्चित कर सकता है कि संघवाद समावेशी विकास, सुशासन और राष्ट्रीय विकास के लिये एक शक्ति बना रहे, क्योंकि मज़बूत राज्य एक मज़बूत राष्ट्र बनाते हैं’

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