प्रश्न. “किस प्रकार दक्कन की समन्वयकारी परंपराओं ने, विशेषकर बहमनी और विजयनगर साम्राज्यों के अधीन, भारत की समग्र संस्कृति में योगदान दिया।” चर्चा कीजिये। ( 150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- बहमनी और विजयनगर साम्राज्यों के संदर्भ में जानकारी के साथ उत्तर दीजिये।
- बहमनी और विजयनगर साम्राज्य में समन्वयवाद पर प्रकाश डालिये।
- भारत की समग्र संस्कृति पर उनके प्रभाव पर गहन विचार प्रस्तुत कीजिये।
- विविधताओं के बावजूद उनके महत्त्व का उल्लेख करते हुए निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
मध्यकालीन भारत में दक्कन क्षेत्र दो प्रमुख शक्तियों - बहमनी सल्तनत (1347-1527) और विजयनगर साम्राज्य (1336-1646) के उदय का साक्ष्य बना।
- अपने राजनीतिक और धार्मिक विविधताओं के बावजूद, इन राज्यों ने एक समन्वित संस्कृति को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसमें स्वदेशी हिंदू परंपराओं को फारसी, इस्लामी और क्षेत्रीय प्रभावों के साथ मिश्रित किया गया।
मुख्य भाग:
बहमनी साम्राज्य में समन्वयवाद:
- कॉस्मोपॉलिटन सोसाइटी/ महानगरीय समाज
- बहमनी साम्राज्य विविध जातियों का मिश्रण था, जिसमें फारसी, अरब, तुर्क, अफगान, अब्देसिनियन और स्थानीय दक्कन हिंदू शामिल थे।
- इस साम्राज्य की शासन व्यवस्था में हिंदुओं को भी प्रमुख पदों पर नियुक्त किया गया तथा धार्मिक सह-अस्तित्व को बढ़ावा दिया गया।
- सुल्तान फिरोज़ शाह बहमनी और विजयनगर की राजकुमारी के बीच विवाह ने हिंदू-मुस्लिम संबंधों को मज़बूत किया।
- भाषा और साहित्य
- बहमनी संरक्षण में फारसी, अरबी और उर्दू (दखिनी बोली) का विकास हुआ।
- विविध समूहों के बीच, दक्खिनी उर्दू, जो कि हिंदुस्तानी का एक प्रारंभिक रूप था, एक आम भाषा बन गयी।
- सूफी संत ख्वाजा बंदे नवाज़ गेसू दराज़ ने भाषाई संलयन को बढ़ावा देते हुए दखिनी उर्दू में रचनाएँ की।
- इंडो-इस्लामिक वास्तुकला
- बहमनी शासकों ने फारसी स्थापत्य कला के तत्त्वों को शामिल किया, लेकिन स्थानीय शैलियों को भी अपनाया।
- इसकी विशेषताओं में ऊँची मीनारें, मज़बूत मेहराब, बड़े गुंबद और विशाल प्रांगण शामिल हैं, जो निम्नलिखित में देखे गए:
- गुलबर्ग: जामा मस्जिद, हफ्ता गुम्बज़।
- बीदर: मोहम्मद गवान का मदरसा, रंगीन महल।
- बीजापुर: गोल गुम्बज़, इब्राहिम रोज़ा।
- सूफी प्रभाव और सांस्कृतिक एकीकरण
- सूफीवाद ने हिंदू और इस्लामी परंपराओं को एकीकृत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- बहमनी शासकों ने सूफी संतों का सम्मान किया, जिसके परिणामस्वरूप दरगाह संस्कृति का उदय हुआ, जिसमें सभी समुदायों के अनुयायियों का स्वागत किया गया।
विजयनगर साम्राज्य में समन्वयवाद:
- धार्मिक और सामाजिक सद्भाव
- यद्यपि विजयनगर साम्राज्य मुख्यतः हिंदू था, फिर भी इसने विभिन्न धर्मों के प्रति सहिष्णुता दिखाई।
- मुसलमानों को प्रशासन और सेना में प्रतिनिधित्व दिया गया।
- भाषा और साहित्य
- कन्नड़, तेलुगु और तमिल दरबारी भाषाओं के रूप में विकसित हुईं।
- प्रारंभिक काल में द्विभाषी शिलालेख (कन्नड़-तेलुगु, संस्कृत-फारसी) मौजूद थे, जो सांस्कृतिक अंतर्मिश्रण को दर्शाते हैं।
- कला और वास्तुकला
- विजयनगर वास्तुकला, हालाँकि मुख्यतः द्रविड़ थी, लेकिन इसमें विशेष रूप से धर्मनिरपेक्ष संरचनाओं में भारतीय-इस्लामी प्रभावों को अपनाया गया था।
- रानी का स्नानघर, कमल महल और हाथी अस्तबल में विशिष्ट इस्लामी स्थापत्य कला की विशेषताएँ जैसे मेहराबदार दरवाज़े, गुंबद व ज्यामितीय पैटर्न प्रदर्शित होते हैं।
- संगीत और नृत्य
- विजयनगर काल में कर्नाटक संगीत का विकास हुआ, जो स्वदेशी और फारसी दोनों तत्त्वों से प्रभावित था।
- भरतनाट्यम और यक्षगान (एक नृत्य-नाट्य रूप) को संरक्षण दिया गया, जिसमें क्षेत्रीय लोक और शास्त्रीय परंपराओं का मिश्रण था।
- विदेशी आगंतुकों का प्रभाव
- अब्दुर रज्ज़ाक, निकोलो कोंटी और डोमिंगो पेस के यात्रा वृत्तांत विजयनगर एवं उसके बहुजातीय समाज की भव्यता पर प्रकाश डालते हैं।
- फारसी यात्रियों ने हिंदू-मुस्लिम व्यापार संबंधों का उल्लेख किया है, जो विचारों के जीवंत समन्वय को दर्शाता है।
भारत की समग्र संस्कृति पर प्रभाव:
- भाषाई सम्मिश्रण: दक्खिनी उर्दू के विकास ने बाद में हिंदुस्तानी के विकास के लिये मंच तैयार किया।
- वास्तुकला संश्लेषण: दक्कन की इंडो-इस्लामिक विशेषताओं ने मुगल और बाद में सल्तनत वास्तुकला को प्रभावित किया।
- धार्मिक सद्भाव: अनेक समुदायों के सह-अस्तित्व ने धार्मिक ध्रुवीकरण को कम किया और सांस्कृतिक बहुलवाद को बढ़ावा दिया।
- कलात्मक सम्मिश्रण: विजयनगर के कर्नाटक संगीत और बहमनी सूफी परंपराओं ने भारत की विविध कलात्मक विरासत में योगदान दिया।
निष्कर्ष:
विजयनगर और बहमनी साम्राज्यों ने अपने संघर्षों के बावजूद एक-दूसरे को प्रभावित किया और एक सामंजस्यपूर्ण, बहु-धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध भारतीय समाज की नींव रखी। उनके योगदान ने भारत की समन्वयकारी परंपराओं को आयाम दिया, धार्मिक और सांस्कृतिक एकीकरण की एक स्थायी विरासत को बढ़ावा दिया।