प्रश्न. "भारत में जनजातीय समुदायों को अपनी सांस्कृतिक पहचान के संरक्षण और मुख्यधारा के विकास के साथ एकीकरण की दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ता है।" उपयुक्त उदाहरणों के साथ इस कथन पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में जनजातियों की वर्तमान स्थिति को परिभाषित करते हुए उत्तर दीजिये तथा बताइये कि उनका सांस्कृतिक संरक्षण और मुख्यधारा के साथ एकीकरण क्यों महत्त्वपूर्ण है।
- सांस्कृतिक संरक्षण और मुख्यधारा के साथ एकीकरण में चुनौतियों का गहन अध्ययन प्रस्तुत कीजिये।
- सांस्कृतिक संरक्षण और विकास के बीच संतुलन के लिये उपाय सुझाइये।
- एक भविष्यदर्शी कथन के साथ निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
भारत में जनजातीय समुदाय, जो कुल जनसंख्या का 8.6% है (जनगणना- 2011 के अनुसार), ऐतिहासिक रूप से प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए, अपनी विशिष्ट सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान बनाए रखते हुए स्वदेशी परंपराओं को संरक्षित करते आए हैं।
- उनके सांस्कृतिक संरक्षण तथा मुख्यधारा के साथ एकीकरण के बीच संतुलन बनाना उनके सशक्तीकरण और सतत् विकास के लिये महत्त्वपूर्ण है।
मुख्य भाग:
सांस्कृतिक संरक्षण में चुनौतियाँ:
- भूमि हस्तांतरण और विस्थापन
- खनन, बाँध और औद्योगिकीकरण जैसी बड़े पैमाने की विकास परियोजनाओं के कारण जनजातीय समुदायों को विस्थापित होना पड़ा है, जिससे उनकी पारंपरिक जीवनशैली बाधित हुई है।
- उदाहरण: ओडिशा के डोंगरिया कोंध ने नियमगिरि पहाड़ियों में बॉक्साइट खनन का विरोध किया क्योंकि इससे उनकी पवित्र भूमि और पारंपरिक आजीविका को खतरा था।
- पारंपरिक आजीविका का नुकसान
- जनजातीय समुदाय स्थानांतरणशील कृषि, पशुपालन और वन आधारित गतिविधियों पर निर्भर हैं।
- उदाहरण: हिमालय में रहने वाली अर्द्ध-खानाबदोश चलवासी जनजाति वन गुज्जरों को वन्यजीव संरक्षण कानूनों के कारण मौसमी प्रवास पर प्रतिबंध का सामना करना पड़ता है।
- स्वदेशी ज्ञान और प्रथाओं का क्षरण
- जैसे-जैसे युवा पीढ़ी शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन कर रही है, पारंपरिक औषधीय ज्ञान, कला और धारणीय कृषि पद्धतियाँ लुप्त होती जा रही हैं।
- उदाहरण: अरुणाचल प्रदेश की अपतानी जनजाति चावल उत्पादन और मात्स्यिकी का कार्य करती है, जो एक अत्यधिक संधारणीय पद्धति है, लेकिन इसके भुला दिये जाने का खतरा है।
- शहरीकरण और वैश्वीकरण के कारण सांस्कृतिक समरूपीकरण
- मुख्यधारा की शिक्षा और शहरी जीवन शैली के कारण पारंपरिक भाषा, वेशभूषा एवं रीति-रिवाज़ का ह्रास हो रहा है।
- उदाहरण: नीलगिरी की टोडा जनजाति को अपनी विशिष्ट टोडा भाषा के प्रयोग में कमी का सामना करना पड़ रहा है, जिसे स्कूलों में व्यापक रूप से नहीं पढ़ाया जाता है।
मुख्यधारा के विकास के साथ एकीकरण में चुनौतियाँ
- सामाजिक-आर्थिक हाशिये पर
- जनजातीय समुदायों को कम साक्षरता दर, अपर्याप्त स्वास्थ्य सेवा और सीमित रोज़गार के अवसरों का सामना करना पड़ता है।
- उदाहरण: आरक्षण के बावजूद, अनुसूचित जनजातियों के लिये सकल नामांकन अनुपात (GER) उच्च शिक्षा में राष्ट्रीय औसत से कम (AISHE रिपोर्ट 2020-21) है।
- वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 का कमज़ोर कार्यान्वयन
- FRA जनजातीय समुदायों के भूमि अधिकारों को मान्यता देता है, लेकिन इसका कार्यान्वयन धीमा और अप्रभावी है।
- उदाहरण: वर्ष 2019 में, सर्वोच्च न्यायालय ने कानूनी संरक्षण में अंतराल को उजागर करते हुए 1 मिलियन से अधिक वनवासियों को बेदखल करने का आदेश दिया।
- जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण क्षरण
- जलवायु परिवर्तन वर्षा के पैटर्न, जैव-विविधता और पारंपरिक कृषि पद्धतियों को प्रभावित करता है, जिससे जनजातीय आजीविका अधिक असुरक्षित हो जाती है।
- उदाहरण: मेघालय की खासी जनजाति में अनियमित मानसून के कारण परंपरागत स्थानांतरणशील कृषि में गिरावट देखी गई है।
- मानव-वन्यजीव संघर्ष
- बढ़ते निर्वनीकरण और आवास की क्षति के कारण वन्य जीव मानव बस्तियों के निकट आ रहे हैं, जिससे जीवन एवं आजीविका को खतरा उत्पन्न हो रहा है।
- उदाहरण: वर्ष 2014-2022 के दौरान हाथियों के हमलों के कारण 3938 मानव मौतें दर्ज (MoEFCC रिपोर्ट) की गईं।
विकास के साथ सांस्कृतिक संरक्षण का संतुलन:
- विकास नीतियों में स्वदेशी ज्ञान को मान्यता देना और एकीकृत करना
- जनजातीय समुदायों की संधारणीय प्रथाओं का दस्तावेज़ीकरण किया जाना चाहिये तथा पर्यावरण संरक्षण प्रयासों में शामिल किया जाना चाहिये।
- उदाहरण: दक्षिण भारत के कडार लोग पुनर्योजी संसाधन संग्रहण का अभ्यास करते हैं, जिससे वन स्थायित्व सुनिश्चित होता है।
- पारिस्थितिकी पर्यटन और सतत् आजीविका को बढ़ावा देना
- समुदाय-आधारित पारिस्थितिकी-पर्यटन से जनजातीय संस्कृति और जैव-विविधता को संरक्षित रखते हुए आय का सृजन किया जा सकता है।
- उदाहरण: अंगामी जनजाति द्वारा प्रबंधित खोनोमा गाँव (नगालैंड) द्वारा इको-पर्यटन मॉडल का सफलतापूर्वक संचालन किया जाता है।
- वन अधिकारों और समुदाय-आधारित संरक्षण को सुदृढ़ करना
- संयुक्त वन प्रबंधन (JFM) कार्यक्रम को सुदृढ़ किया जाना चाहिये और FRA का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
- उदाहरण: अरुणाचल प्रदेश में इदु मिशमी जनजाति ने अपने वन के कुछ हिस्सों को सामुदायिक संरक्षित क्षेत्र घोषित किया है।
- जनजातीय हस्तशिल्प और स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा देना
- जनजातीय कारीगरों को समर्थन देने के लिये TRIFED और वन धन योजना जैसी सरकारी पहलों का विस्तार किया जाना चाहिये।
- उदाहरण: कर्नाटक की हक्की-पिक्की जनजाति हर्बल उत्पादों का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विपणन करती है, जिससे पारंपरिक ज्ञान को संरक्षित करते हुए आर्थिक लाभ सुनिश्चित होता है।
- जनजातीय पहचान को संरक्षित करने के लिये शैक्षिक सुधार
- भाषाई और सांस्कृतिक संरक्षण सुनिश्चित करने के लिये स्कूल पाठ्यक्रमों में जनजातीय भाषाओं एवं सांस्कृतिक अध्ययनों को शामिल किया जाना चाहिये।
- उदाहरण: एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (EMRS) का उद्देश्य सांस्कृतिक जड़ों को बनाए रखते हुए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना है।
निष्कर्ष
जनजातीय समुदायों को सशक्त बनाने के लिये एक सहक्रियात्मक दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो सांस्कृतिक संरक्षण को समावेशी विकास के साथ संतुलित करता हो। FRA कार्यान्वयन, इको-टूरिज़्म, स्वदेशी उद्योगों और शैक्षिक सुधारों को मज़बूत करने से उनका सतत् एकीकरण सुनिश्चित होगा।