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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न: कार्यकुशलता और परिणामों से संचालित विश्व में, क्या सदाचार और नैतिकता अभी भी शासन में प्रासंगिक हैं? उपयुक्त उदाहरणों के साथ आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। (150 शब्द)

    06 Feb, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • सदाचार नैतिकता के महत्त्व को संक्षेप में बताते हुए उत्तर दीजिये। 
    • शासन में सदाचार नैतिकता की प्रासंगिकता बताइये।
    • शासन में सदाचार नैतिकता की चुनौतियों पर गहन विचार प्रस्तुत कीजिये।
    • सद्गुण नैतिकता को दक्षता के साथ एकीकृत करने वाले मुख्य बिंदु बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये। 

    परिचय: 

    आज की दुनिया में दक्षता और परिणामों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, शासन में प्रायः नैतिकता की अपेक्षा परिणामों को प्राथमिकता दी जाती है। हालाँकि भ्रष्टाचार और असमानता जैसी चुनौतियों के बीच सदाचार नैतिकता जो नेतृत्व में नैतिक चरित्र के महत्त्व को उजागर करती है, विश्वास, सत्यनिष्ठा तथा दीर्घकालिक सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देने के लिये एक रूपरेखा प्रदान करती है, जो धारणीय शासन के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।

    मुख्य भाग: 

    शासन में सदाचार नैतिकता की प्रासंगिकता

    • नैतिक नेतृत्व और निर्णय-निर्माण सुनिश्चित करना: सद्गुणी नेता व्यक्तिगत लाभ की अपेक्षा सार्वजनिक भलाई को प्राथमिकता देते हैं तथा विश्वास एवं जवाबदेही को बढ़ावा देते हैं।
      • उदाहरण: लाल बहादुर शास्त्री ने एक बड़ी रेल दुर्घटना के बाद नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया, जिससे नेतृत्व में ईमानदारी और जवाबदेही का प्रदर्शन हुआ।
    • न्याय और निष्पक्षता के साथ दक्षता को संतुलित करना: विशुद्ध रूप से परिणाम-संचालित शासन समानता और समावेशिता की अनदेखी कर सकता है, जिसके लिये सदाचार नैतिकता आवश्यक है। 
      • उदाहरण: महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) कमज़ोर वर्गों को प्राथमिकता देकर आर्थिक दक्षता को सामाजिक न्याय के साथ संतुलित करते हुए गरीबों के लिये रोज़गार सुनिश्चित करता है।
    • प्रशासन में नैतिक ह्रास को रोकना: दक्षता-संचालित दृष्टिकोण भ्रष्टाचार, अल्पकालिकता और सहानुभूति की कमी को बढ़ावा दे सकता है, जिसे सदाचार नैतिकता से कम किया जा सकता है। 
      • उदाहरण: अशोक खेमका (IAS अधिकारी), राजनीतिक दबाव के बावजूद भूमि घोटालों को उजागर करने, भ्रष्टाचार के खिलाफ दृढ़ता और शासन में अल्पकालिकता का प्रदर्शन करने के लिये जाने जाते हैं।

    शासन में सदाचार नैतिकता की चुनौतियाँ

    • त्वरित परिणाम और आर्थिक विकास के लिये दबाव: बाज़ार संचालित शासन प्रायः नैतिक विचार-विमर्श की तुलना में दक्षता को प्राथमिकता देता है।
      • उदाहरण: उद्योगों के लिये पर्यावरणीय अनुमोदन में तेज़ी लाना, पारिस्थितिकी संवहनीयता से समझौता करना।
    • प्रशासनिक लालफीताशाही और परिवर्तन का प्रतिरोध: नैतिक शासन के लिये नैतिक साहस की आवश्यकता होती है, जो सख्त प्रशासनिक संरचनाओं के साथ संघर्ष कर सकता है।
      • उदाहरण: सत्येंद्र दुबे जैसे व्हिसलब्लोअर मामले (NHAI में भ्रष्टाचार को उजागर करना) नैतिक शासन के जोखिमों को दर्शाते हैं।
    • सदाचार नैतिकता में व्यक्तिपरकता और सांस्कृतिक विविधताएँ: सदाचार का गठन समाजों और राजनीतिक विचारधाराओं में भिन्न हो सकता है।
      • उदाहरण: पश्चिमी व्यक्तिवादी बनाम पूर्वी सामूहिकतावादी नैतिक कार्यढाँचे शासन को विभिन्न तरह से प्रभावित करते हैं।

    सदाचार नैतिकता को दक्षता के साथ एकीकृत करना

    • शासन में नैतिक तर्क को बढ़ावा देने के लिये लोक सेवकों के लिये नैतिक प्रशिक्षण (जैसे- मिशन कर्मयोगी) आवश्यक है।
    • नैतिक शासन को समाहित करने के लिये लोकपाल, RTI और नागरिक चार्टर जैसे संस्थागत ढाँचे
    • आधार और DBT जैसी प्रौद्योगिकी-संचालित पारदर्शिता दक्षता एवं नैतिक वितरण दोनों सुनिश्चित करती है।

    निष्कर्ष: 

    यद्यपि शासन के लिये दक्षता और परिणाम महत्त्वपूर्ण हैं, फिर भी न्याय, समावेशिता एवं दीर्घकालिक सामाजिक कल्याण के लिये सदाचार नैतिकता अपरिहार्य है। एक संतुलित दृष्टिकोण जो दक्षता को नैतिक शासन के साथ एकीकृत करता है, वह धारणीय और जन-केंद्रित प्रशासन को सुनिश्चित कर सकता है।

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