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प्रश्न :
प्रश्न. "भारतीय संविधान की छठी अनुसूची कुछ क्षेत्रों को स्वायत्तता प्रदान करती है, लेकिन इसके कारण शासन से जुड़ी चुनौतियाँ भी उत्पन्न हुई हैं।" समकालीन भारत में छठी अनुसूची की प्रासंगिकता और इसके प्रभावों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
04 Feb, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- छठी अनुसूची के संदर्भ में संक्षिप्त जानकारी के साथ उत्तर देते हुए इसके द्वारा दी गई स्वायत्तता पर गहन विचार प्रस्तुत कीजिये।
- छठी अनुसूची के अंतर्गत शासन में चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
- समकालीन भारत में छठी अनुसूची की प्रासंगिकता बताइये।
- छठी अनुसूची की प्रासंगिकता को उभरती आवश्यकताओं के साथ संरेखित करने के उपाय सुझाइये।
- एक दूरदर्शी दृष्टिकोण के साथ उत्तर को समाप्त कीजिये।
परिचय:
भारतीय संविधान की छठी अनुसूची संविधान सभा द्वारा गठित बोरदोलोई समिति की रिपोर्ट पर आधारित है। अनुच्छेद 244(2) के तहत छठी अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम में जनजातीय क्षेत्रों को स्वायत्तता प्रदान करती है, जिससे जनजातीय अधिकारों एवं सांस्कृतिक पहचान की रक्षा होती है।
मुख्य भाग:
छठी अनुसूची द्वारा प्रदत्त स्वायत्तता:
- ADC के माध्यम से स्वशासन: स्वायत्त ज़िला परिषदों (ADC) के पास भूमि, वन (आरक्षित वनों को छोड़कर), उत्तराधिकार और न्याय प्रशासन जैसे प्रमुख क्षेत्रों को नियंत्रित करने के लिये विधायी, कार्यकारी एवं न्यायिक शक्तियाँ हैं।
- विकेंद्रीकृत शासन: स्थानीय जनजातीय निकायों को उनके अधिकार क्षेत्र के भीतर विकास गतिविधियों, राजस्व संग्रह और व्यापार के विनियमन का प्रशासन करने के लिये सशक्त बनाता है। (उदाहरण के लिये, बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद स्थानीय शिक्षा और कल्याण योजनाओं का प्रबंधन करती है)
- विकास के लिये विशेष प्रावधान: अनुसूची राज्यपाल को कानूनों को संशोधित करने या छूट देने की अनुमति देती है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि कानून स्थानीय सामाजिक-आर्थिक स्थितियों को पूरा करते हैं। (उदाहरण के लिये, छठी अनुसूची के सिद्धांतों के अनुरूप अनुच्छेद 371A के तहत नगालैंड के लिये विशेष छूट)।
छठी अनुसूची के अंतर्गत शासन संबंधी चुनौतियाँ
- राज्य और केंद्र की नीति में भिन्नता: केंद्र और राज्य सरकारों के नीति निर्देशों को प्रायः ज़िला परिषदों द्वारा क्षमता या संसाधनों की कमी का हवाला देकर क्रियान्वित नहीं किया जाता है, जिससे अपेक्षित शासन सुधारों में विलंब या बाधा उत्पन्न होती है।
- अंतर-जनजातीय संघर्ष: एक एकल ADC प्रायः विविध हितों वाले कई जनजातीय समुदायों का प्रतिनिधित्व करता है, जिससे प्रतिस्पर्द्धा और संघर्ष (उदाहरण के लिये, असम के दीमा हसाओ में संघर्ष) होता है।
- वित्तीय बाधाएँ: केंद्र और राज्य सरकारों से अपर्याप्त वित्तीय अंतरण विकासात्मक गतिविधियों को सीमित करता है।
- विकासात्मक आवश्यकताओं के बजाय जनसंख्या के आकार के आधार पर धन का आवंटन असमानताएँ उत्पन्न करता है।
- अन्य जनजातीय क्षेत्रों का अपवर्जन: कई जनजातीय बहुल क्षेत्र, जैसे लद्दाख और मणिपुर के कुछ हिस्से, समान सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये छठी अनुसूची के तहत शामिल किये जाने की मांग करते हैं।
समकालीन भारत में छठी अनुसूची की प्रासंगिकता
- जनजातीय पहचान और सांस्कृतिक संरक्षण: ये प्रावधान जनजातीय रीति-रिवाजों, परंपराओं और भाषा की रक्षा करने में मदद (उदाहरण के लिये, मेघालय में खासी और गारो भाषाओं को ADC के माध्यम से मान्यता और प्रोत्साहन दिया गया है) करते हैं, तथा बाह्य प्रभावों के कारण सांस्कृतिक ह्रास को रोकते हैं।
- जनजातीय भूमि और संसाधनों का संरक्षण: जनजातीय भूमि को गैर-जनजातीय लोगों को हस्तांतरित करने पर रोक लगाता है, आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करता है तथा शोषण को रोकता है। (उदाहरण के लिये, मेघालय में कोयला खनन के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय स्वदेशी लोगों के लिये एक ऐतिहासिक जीत है, जिससे उनकी भूमि और संसाधनों की सुरक्षा हुई है।)
- सांस्कृतिक संवेदनशीलता के साथ आर्थिक विकास: छठी अनुसूची जनजातीय समुदायों को उनकी पारंपरिक जीवन शैली से समझौता किये बिना क्षेत्रीय विकास से लाभान्वित करने की अनुमति देकर संतुलित आर्थिक विकास की सुविधा प्रदान करती है।
- यह जनजातीय मूल्यों के अनुरूप सतत् विकास पहल को बढ़ावा देने में मदद करता है।
छठी अनुसूची की प्रासंगिकता को उभरती आवश्यकताओं के अनुरूप बनाने के उपाय:
- वित्तीय सशक्तीकरण: जनसंख्या-आधारित दृष्टिकोण के बजाय आवश्यकता-आधारित निधि आवंटन तंत्र समान विकास सुनिश्चित कर सकता है।
- पारदर्शी एवं जवाबदेह शासन: स्वतंत्र लेखापरीक्षा तंत्र और सामाजिक लेखापरीक्षा की स्थापना से पारदर्शिता में सुधार हो सकता है तथा भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सकता है।
- संघर्ष समाधान तंत्र: अंतर-जनजातीय विवादों को सुलझाने और न्यायसंगत प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिये विशेष आयोग स्थापित किये जा सकते हैं।
- नागरिक समाज के साथ सहयोग: ADC, गैर सरकारी संगठनों और स्थानीय जनजातीय संगठनों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करने से शासन में अंतराल को समाप्त करने में मदद मिल सकती है तथा यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि विकास परियोजनाएँ स्थानीय समुदायों की वास्तविक आवश्यकताओं को प्रतिबिंबित करें।
- ये संगठन छठी अनुसूची के तहत प्रदत्त अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाने में भी मदद कर सकते हैं।
- नीतिगत सुधार और समीक्षा: छठी अनुसूची के प्रावधानों और उनके कार्यान्वयन की नियमित समीक्षा आवश्यक है।
- किसी भी नीतिगत सुधार में जनजातीय आबादी की उभरती आवश्यकताओं पर विचार किया जाना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रस्तावित सुरक्षा प्रासंगिक और प्रभावी बनी रहे।
निष्कर्ष:
छठी अनुसूची जनजातीय अधिकारों की सुरक्षा और स्वशासन को बढ़ावा देने के लिये एक महत्त्वपूर्ण साधन बनी हुई है। वित्तीय सशक्तीकरण, प्रशासनिक सुधार और अधिक समावेशिता को शामिल करते हुए समय-समय पर समीक्षा एवं रणनीतिक संवर्द्धन, इसके प्रभाव को अनुकूलित करने तथा जनजातीय समुदायों की उभरती आवश्यकताओं को पूरा करने में इसकी निरंतर प्रासंगिकता सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक है।
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