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प्रश्न :
उपभोक्ता संरक्षण विधेयक 2015 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 का स्थान लेगा, इन दोनों की तुलना कीजिये तथा इनमें वैषम्यता दर्शाइये।
28 Apr, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
उत्तर की रूपरेखा:
- अपने उत्तर की शुरुआत उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के बारे में लिखते हुए करें।
- तत्पश्चात् नए विधेयक की आवश्यकताओं के साथ ही इसकी चुनौतियों का भी जिक्र करें।
- उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, 2015 की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ बताते हुए अंत में निष्कर्ष लिखें।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 को भारत में उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिये 1986 में बनाया गया था। यह उपभोक्ताओं की समस्याओं तथा इससे संबंधित मामलों के समाधान के लिये उपभोक्ता परिषद तथा अन्य प्राधिकणों के गठन का प्रावधान करता है। इसे उपभोक्ता संरक्षण के क्षेत्र में मैग्नाकार्टा कहा जाता है, जो कि अनुचित व्यापार पद्धतियों, वस्तु में दोष तथा सेवा में कमी को रोकने से संबंधित है। इस अधिनियम द्वारा पूरे भारतवर्ष में उपभोक्ता मंच (कंज्यूमर फोरम) अपीलीय न्यायालयों की स्थापना की गई। इसने उपभोक्ताओं को व्यापक रूप से सशक्त बनाया है। परंतु, आज बढ़ते उपभोक्तावाद तथा विश्व अर्थव्यवस्था के ऊपर निर्भरता के कारण उपभोक्ता वस्तु एवं सेवा में गुणवत्ता चाहते हैं। प्रौद्योगिकीय उन्नति ने गुणवत्ता, उत्पादकता मात्रा तथा वस्तु एवं सेवा की उपलब्धता को प्रभावित किया है। इसके बावजूद उपभोक्ता भ्रष्ट आचरण के शिकार होते हैं। साथ ही इंटरनेट कनेक्टिविटी के कारण ई-मार्केट तथा ई-कॉमर्स का विकास हुआ है जो उपभोक्ताओं को घर पर उत्पाद पहुँचाते हैं और अब अपभोक्ताओं का साइबर अपराधों के रूप में शोषण हो रहा है।
इस संदर्भ में समकालीन चुनौतियों से निपटने के लिये उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 को बदलना आवश्यक था और इसी कारण उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, 2015 तैयार किया गया।
यह विधेयक उपभोक्ता अधिकारों को लागू करता है तथा वस्तु में त्रुटि या सेवा में कमी से संबंधित शिकायतों के निदान के लिये क्रियाविधि प्रदान करता है।
उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, उपभोक्ताओं की शिकायतों के निदान के लिये ज़िला, राज्य तथा राष्ट्रीय स्तर पर गठित किये जाएंगे।
यह विधेयक उपभोक्ताओं की शिकायतों की जाँच करने, वस्तु एवं सेवा के लिये नोटिस जारी करने हेतु तथा भ्रामक विज्ञापनों के विरुद्ध वस्तुओं को वापस लेने से संबंधित आदेश पारित करने के लिये उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण का गठन करता है।
यदि कोई उपभोक्ता, उत्पाद में त्रुटि होने के कारण चोटिल होता है, तो वह निर्माता के विरुद्ध देयता का दावा कर सकता है। उपभोक्ता को अपने दावे को साबित करने के लिये सात शर्तों को आवश्यक रूप से सिद्ध करना होगा।
यह अधिनियम छः अनुबंध शर्तों को अनुचित ठहराता है। इसमें से कुछ इस प्रकार हैं:
- अत्यधिक सुरक्षा जमा राशि की अदायगी।
- उल्लंघन के लिये असंगत दंड।
- बिना किसी कारण के एकपक्षीय समाप्ति।
- जो उपभोक्ता को नुकसान की स्थिति में रखे, आदि।
कुछ चिताएँ:
- यह विधेयक केंद्र सरकार को जिला राज्य तथा राष्ट्रीय निवारण आयोगों के पर्यवेक्षण तथा बाध्यकारी निर्देश जारी करने की शक्ति देता है, यह अर्द्ध-न्यायिक निकायों की स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकता है।
- जिला आयोग का अध्यक्ष जिलाधिकारी हो सकता है, जो कि कार्यपालिका का सदस्य है। यह कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के मध्य शक्ति के पृथक्करण के सिद्धांतों को उल्लंघन कर सकता है।
- कुछ चुनौतियों के बावजूद विधेयक से उम्मीद की जा रही है कि यह उत्पाद की गुणवत्ता एवं सुरक्षा में वृद्धि करेगा। इस प्रस्तावित कानून में उपभोक्ताओं के लिये न्यायोचित तथा संगत परिणाम सुनिश्चित किये जाने के अत्यावश्यक प्रावधान शामिल हैं।
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