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- निबंध
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प्रश्न :
प्रश्न 1. एक समाज तभी महान बनता है जब वृद्ध व्यक्ति ऐसे वृक्ष लगाते हैं, जिनकी छाँव में वे स्वयं कभी बैठ नहीं पाते हैं।
प्रश्न 2. विवेक रहित प्रगति में केवल छद्म विनाश निहित होता है।
01 Feb, 2025 निबंध लेखन निबंधउत्तर :
1. अपने निबंध को समृद्ध करने के लिये उद्धरण:
- महात्मा गांधी: “स्वयं की खोज़ का सबसे अच्छा तरीका है दूसरों की सेवा में स्वयं को समर्पित कर देना।”
- वॉरेन बफेट: "कोई आज छाया में बैठा है क्योंकि किसी ने बहुत समय पहले एक पेड़ लगाया होगा।"
सैद्धांतिक और दार्शनिक आयाम:
1. अंतर-पीढ़ीगत उत्तरदायित्व और नैतिक परोपकारिता:
- यह उद्धरण एक न्यायपूर्ण और संधारणीय समाज को आयाम देने में निःस्वार्थ सेवा और दीर्घकालिक दृष्टि पर ज़ोर देता है।
- इमैनुअल कांट जैसे दार्शनिक नैतिक कर्त्तव्य का तर्क देते हैं जो तात्कालिक स्वार्थ से परे है।
- जॉन रॉल्स की कृति ‘वील ऑफ इग्नोरेंस’ में सुझाव दिया गया है कि एक न्यायपूर्ण समाज की संरचना भावी पीढ़ियों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर की जानी चाहिये।
2. सतत् विकास और विरासत निर्माण:
- संधारणीयता इस विचार का विस्तार है — आर्थिक, पर्यावरणीय और सामाजिक नीतियों में भावी पीढ़ियों को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
- ब्रुन्डलैंड रिपोर्ट (वर्ष 1987) सतत् विकास को ‘भविष्य की पीढ़ियों की अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता से समझौता किये बिना वर्तमान की आवश्यकताओं को पूरा करना’ के रूप में परिभाषित करती है।
3. राष्ट्र निर्माण और नागरिक कर्त्तव्य की भावना:
- प्रगति का तात्पर्य केवल व्यक्तिगत उपलब्धियों से नहीं बल्कि सामूहिक विकास से है।
- प्लेटो के रिपब्लिक में, एक आदर्श समाज वह है जहाँ प्रत्येक पीढ़ी अधिक से अधिक भलाई में योगदान देती है, भले ही उन्हें सीधे लाभ न हो।
नीति और ऐतिहासिक उदाहरण:
1. सामाजिक सुधार और भविष्योन्मुखी नीतियाँ:
- अस्पृश्यता उन्मूलन (भारत) – बी.आर. अंबेडकर जैसे नेताओं ने सामाजिक रूप से समावेशी भारत के लिये कार्य किया, भले ही वे जानते थे कि सामाजिक परिवर्तन में पीढ़ियाँ लग जाएंगी।
- सार्वभौमिक शिक्षा (19वीं-20वीं सदी के सुधार) – कई देशों में अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित करने वाले कानूनों ने समाजों का परिवर्तन कर दिया, हालाँकि प्रारंभिक पीढ़ियों को इसका पूरा लाभ नहीं मिला।
2. भावी विकास के लिये बुनियादी अवसंरचना और आर्थिक आधार:
- भारत में हरित क्रांति (1960 का दशक) - ऐसी नीतियाँ जो दीर्घकालिक खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करती हैं, जिससे भावी पीढ़ियों को लाभ मिलता है।
- स्वर्णिम चतुर्भुज राजमार्ग परियोजना (भारत, 2000 का दशक) - एक विशाल बुनियादी अवसंरचना परियोजना जो आगामी दशकों के लिये आर्थिक विकास को सुगम बनाएगी।
3. पर्यावरण संरक्षण और जलवायु कार्रवाई:
- चिपको आंदोलन (1970 का दशक, भारत) - एक समुदाय द्वारा संचालित पर्यावरण आंदोलन जिसने भावी पीढ़ियों के लिये वनों की रक्षा की।
- पेरिस जलवायु समझौता (वर्ष 2015) - जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये वैश्विक सहयोग, जिसका प्राथमिक लाभार्थी भावी पीढ़ियाँ होंगी।
समकालीन उदाहरण:
- भारत की आधार परियोजना – भावी पीढ़ियों के लिये एक दीर्घकालिक डिजिटल पहचान प्रणाली।
- अंतरिक्ष अन्वेषण ((ISRO, NASA, SpaceX पहल) - अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में निवेश जो वर्तमान पीढ़ी को लाभ नहीं पहुँचाएगा लेकिन भविष्य को आयाम देगा।
2. अपने निबंध को समृद्ध करने के लिये उद्धरण:
- “नैतिक साधनों के बिना प्रगति के लक्ष्य अधूरे हैं।”
- अल्बर्ट आइंस्टीन: “तकनीकी प्रगति एक विक्षिप्त अपराधी के हाथ में कुल्हाड़ी की तरह है।”
- महात्मा गांधी: “मानवता के बिना विज्ञान सात सामाजिक अपराधों में से एक है।”
सैद्धांतिक और दार्शनिक आयाम:
1. नैतिक प्रगति बनाम लापरवाह उन्नति:
- सच्ची प्रगति तकनीकी, आर्थिक और सामाजिक उन्नति को नैतिक उत्तरदायित्व के साथ संतुलित करती है।
- जॉन स्टुअर्ट मिल (उपयोगितावाद) जैसे विचारक इस बात पर बल देते हैं कि प्रगति से सामूहिक कल्याण में वृद्धि होनी चाहिये, न कि केवल भौतिक लाभ में।
2. अनियंत्रित औद्योगीकरण और उपभोक्तावाद के खतरे:
- कार्ल मार्क्स ने पूंजीवाद की लोगों की अपेक्षा लाभ को प्राथमिकता देने की प्रवृत्ति के बारे में चेतावनी दी थी, जिसके कारण शोषण, असमानता और पर्यावरण क्षरण होता है।
- पारिस्थितिकीय अतिक्रमण- आधुनिक औद्योगिक सभ्यता संसाधनों को असंवहनीय रूप से नष्ट कर रही है, जिसके परिणामस्वरूप निर्वनीकरण, जलवायु परिवर्तन और सामूहिक विलुप्ति जैसे संकट उत्पन्न हो रहे हैं।
3. प्रौद्योगिकी और नैतिकता - एक दोधारी तलवार:
- AI और स्वचालन– हालाँकि वे उत्पादकता को बढ़ावा देते हैं, लेकिन वे नौकरी के नुकसान, नैतिक दुविधाओं और डिजिटल निगरानी को भी जन्म देते हैं।
- परमाणु ऊर्जा - विद्युत ऊर्जा उत्पादन और सामूहिक विनाश (हिरोशिमा और नागासाकी) दोनों के लिये उपयोग की जाती है।
नीति और ऐतिहासिक उदाहरण:
1. अनैतिक प्रगति विनाश की ओर ले जाती है:
- औपनिवेशिक शोषण (18वीं-20वीं शताब्दी) - साम्राज्यवादी शक्तियों की आर्थिक प्रगति मानवीय पीड़ा और स्वदेशी संस्कृतियों के विनाश की कीमत पर हुई।
- शस्त्र दौड़ (शीत युद्ध काल) - हथियारों में तकनीकी प्रगति ने शांति के बजाय वैश्विक असुरक्षा को जन्म दिया।
2. सतत् विकास के लिये नैतिक प्रगति:
- सर्वोदय का गांधीवादी दर्शन (सभी का कल्याण) - मानवीय मूल्यों को नुकसान पहुँचाए बिना आर्थिक विकास का समर्थन करता है।
- कल्याणकारी राज्य का स्कैंडिनेवियाई मॉडल - मानव सम्मान, शिक्षा और पर्यावरणीय संवहनीयता को प्राथमिकता देते हुए आर्थिक विकास सुनिश्चित करता है।
समकालीन उदाहरण:
1. जलवायु परिवर्तन और अनियमित विकास की लागत:
अमेज़न में निर्वनीकरण (2020 के दशक) - आर्थिक विस्तार से जैवविविधता का अपरिवर्तनीय ह्रास हो रहा है।
- दिल्ली और बीज़ींग में वायु प्रदूषण - अनियंत्रित शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के कारण गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट उत्पन्न हो रहा है।
2. कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और जैव प्रौद्योगिकी में नैतिक दुविधाएँ:
- जीन संपादन (CRISPR प्रौद्योगिकी) - सुजननिकी, जैव नैतिकता और आनुवंशिक हेरफेर के अनपेक्षित परिणामों के संदर्भ में प्रश्न उठाता है।
3. सतत् प्रगति मॉडल:
- हरित ऊर्जा पहल (जर्मनी का एनर्जीवेंडे, भारत का सौर मिशन) - आर्थिक विकास को पर्यावरणीय उत्तरदायित्व के साथ जोड़ना।
भारत में कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) कानून - यह सुनिश्चित करना कि व्यवसाय केवल लाभ कमाने के बजाय सामाजिक कल्याण में योगदान दें।
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