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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    आरव एक भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अधिकारी है जो एक दूरस्थ ज़िले के ज़िला मजिस्ट्रेट (DM) के रूप में कार्यरत है। उसकी पत्नी मीरा एक सरकारी अस्पताल में डॉक्टर है। उनकी एक छह वर्ष की बेटी है, जिसकी मुख्य रूप से देखभाल उनके (आरव और मीरा) कामकाज़ी जीवन के कारण दादी-नानी और एक घरेलू सहायिका ही करती हैं।

    एक शाम, आरव दिन भर के कार्य के बाद ऑफिस से निकलने ही वाला होता है कि उसे मुख्य सचिव का एक ज़रूरी फोन आता है। ज़िले के बाहरी इलाके में किसी फैक्ट्री में एक बड़ी औद्योगिक दुर्घटना हुई है, जिसमें गंभीर संख्या में लोग हताहत हुए हैं। बचाव कार्यों की देखरेख और आपदा प्रबंधन टीमों के साथ समन्वय के लिये उसकी तत्काल उपस्थिति की आवश्यकता है।

    उसी समय, उसे एक और कॉल आती है—इस बार उसकी पत्नी से; जिसमें उसे बताया जाता है कि उनकी बेटी अचानक बीमार पड़ गई है और उसे तुरंत चिकित्सा की आवश्यकता है। घर पर उसकी उपस्थिति उसके परिवार को भावनात्मक सहारा प्रदान करेगी, विशेषकर इसलिये क्योंकि मीरा की अस्पताल में आपातकालीन सर्जरी होनी है।

    आरव अपने पेशेवर कर्त्तव्य के बीच दुविधा में उलझा हुआ है, जिसके तहत कई लोगों के जीवन को प्रभावित करने वाली विपत्ति से मोचन के लिये तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है, तो दूसरी ओर एक पति और पिता के रूप में उसकी नैतिक जिम्मेदारी है। उसे तय करना है कि इस स्थिति में उसकी प्राथमिकता क्या है।

    प्रश्न:

    (क) इस मामले में शामिल नैतिक दुविधाओं का अभिनिर्धारण कीजिये।
    (ख) यदि आप आरव की जगह होते तो इस स्थिति को कैसे संभालते?
    (ग) इस मामले के संदर्भ में, लोक सेवकों के लिये बेहतर कार्य-जीवन संतुलन सुनिश्चित करने में संस्थागत तंत्र के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।

    31 Jan, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़

    उत्तर :

    परिचय: 

    यह मामला सिविल सेवकों के सामने कार्य-जीवन संतुलन की एक सामान्य दुविधा को प्रस्तुत करता है, जहाँ ज़िला मजिस्ट्रेट आरव एक बड़ी औद्योगिक दुर्घटना का प्रबंधन करने के अपने पेशेवर कर्त्तव्य और अपनी अचानक बीमार बेटी की देखभाल करने की व्यक्तिगत जिम्मेदारी के बीच फँस जाता है। 

    • उनके निर्णय के नैतिक, प्रशासनिक और भावनात्मक निहितार्थ हैं तथा यह संस्थागत तंत्र की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है, जो सिविल सेवकों को पारिवारिक जिम्मेदारियों से समझौता किये बिना अपने आधिकारिक कर्त्तव्यों को प्रभावी ढंग से पूरा करने में सक्षम बनाता है। 

    मुख्य भाग: 

    (क) इस मामले में शामिल नैतिक दुविधाओं का अभिनिर्धारण कर चर्चा कीजिये।

    • व्यावसायिक कर्त्तव्य बनाम व्यक्तिगत दायित्व: ज़िला मजिस्ट्रेट के रूप में आरव को एक जानलेवा औद्योगिक दुर्घटना में बचाव कार्यों की देखरेख करने का कार्यभार सौंपा गया है।
      • हालाँकि, एक पिता के रूप में उनका नैतिक दायित्व है कि वे अपनी बीमार बेटी के लिये उपस्थित रहें, विशेषकर अपनी पत्नी की अनुपस्थिति में।
    • सार्वजनिक हित बनाम पारिवारिक कल्याण: दुर्घटना में कई लोग हताहत हुए हैं तथा उनके त्वरित हस्तक्षेप से जान बच सकती है और आगामी विषम परिस्थिती को रोका जा सकता है। 
      • दूसरी ओर, उनकी बेटी की अचानक बीमारी के कारण उनकी भावनात्मक और उपस्थिति आवश्यक हो गई है, जो परिवार के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
    • उपयोगितावाद बनाम कर्त्तव्य-नैतिकता: उपयोगितावादी दृष्टिकोण औद्योगिक विपत्ति के प्रबंधन द्वारा व्यापक सार्वजनिक हित को प्राथमिकता देने पर आधारित है।
      • हालाँकि, एक कर्त्तव्य-शास्त्रीय परिप्रेक्ष्य एक पिता के रूप में उसके नैतिक कर्त्तव्य पर बल देता है, जहाँ उसके बच्चे की तत्काल आवश्यकताओं की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिये।
    • प्रत्यायोजन बनाम प्रत्यक्ष भागीदारी: आरव अपनी बेटी की स्वास्थ्य आपातस्थिति का ध्यान रखते हुए आपदा प्रबंधन का कार्य अपने अधीनस्थों को सौंप सकता है। 
      • इसके विपरीत, संकट प्रबंधन में उनकी प्रत्यक्ष भागीदारी से अधिक कुशल और प्रभावी आपदा मोचन हो सकता है, जिससे प्रशासन में जनता का विश्वास दृढ़ होगा।
    • भावनात्मक निर्णय बनाम तर्कसंगत निर्णय: एक पिता के रूप में उसकी भावनात्मक प्रवृत्ति उसे संकट में अपनी बेटी के साथ रहने के लिये प्रेरित करती है तथा उसकी सुविधा और भलाई सुनिश्चित करती है। 
      • हालाँकि, तर्कसंगत निर्णय लेने से यह पता चलता है कि एक लोक सेवक के रूप में, उनकी प्राथमिक जिम्मेदारी औद्योगिक संकट का प्रबंधन करना है जहाँ जीवन दाँव पर है। 

    (ख) यदि आप आरव की जगह होते तो इस स्थिति को कैसे संभालते?

    यदि मैं आरव की जगह होता/होती, तो:

    मैं एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाता, जो समय की कमी, कार्यभार सौंपने की संभावनाओं और प्रत्येक स्थिति की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए कुशल संकट प्रबंधन एवं पारिवारिक सहयोग दोनों को सुनिश्चित करता।

    1. तत्काल कार्रवाई:

    • दोनों स्थितियों की गंभीरता का आकलन: औद्योगिक दुर्घटना (हताहतों की संख्या, आग का खतरा, जारी जोखिम) और मेरी बेटी की स्थिति (लक्षण, तत्काल चिकित्सा आवश्यकताएँ) के बारे में शीघ्रता से जानकारी एकत्र करने की आवश्यकता होगी।
    • तात्कालिकता के आधार पर त्वरित निर्णय लेना: चूँकि औद्योगिक आपदा में कई लोग हताहत हुए हैं और इसके लिये नेतृत्व की आवश्यकता होती है, इसलिये यह घर पर मेरी सशरीर उपस्थिति से अधिक महत्त्वपूर्ण है। 
      • हालाँकि, मेरी बेटी का स्वास्थ्य भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है और उसके लिये भी व्यवस्था की जानी चाहिये।

    2. परिवार की भलाई सुनिश्चित करना:

    • किसी विश्वसनीय पारिवारिक डॉक्टर को बुलाना: घर पर बाल रोग विशेषज्ञ को बुलाए जाने या मेरी बेटी को तुरंत अस्पताल ले जाने में मदद करने के लिये रसद की व्यवस्था करने की आवश्यकता होती। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाता कि मेरे माता-पिता/घरेलू सहायक इसका समन्वय करें।
    • अपनी पत्नी से बात करना: मीरा को यह बताया जाना आवश्यक है कि मैंने व्यवस्था कर दी है और उसे आश्वस्त भी करता कि हमारी बेटी सुरक्षित है। 
      • इसके अलावा, यह भी सुनिश्चित करता कि सर्जरी के दौरान उसकी सहायता करने के लिये उसके सहायक स्टाफ को स्थिति के बारे में जानकारी हो।
    • किसी विश्वसनीय मित्र या रिश्तेदार को शामिल करना: यदि संभव हो, तो किसी करीबी रिश्तेदार या मित्र को घर पर उपस्थित रहने के लिये कहता ताकि वह अतिरिक्त भावनात्मक समर्थन प्रदान कर सके।

    3. औद्योगिक स्थल पर संकट प्रबंधन:

    • प्रारंभिक मोचन का कार्य वरिष्ठ अधिकारी को सौंपना: अतिरिक्त ज़िला मजिस्ट्रेट (ADM) या उप-विभागीय मजिस्ट्रेट (SDM) को घटनास्थल पर पहुँचने और बचाव हेतु समन्वय शुरू करने का निर्देश देने की आवश्यकता है।
    • अधिकारियों को तत्काल आदेश जारी करना: पुलिस, अग्निशमन विभाग और आपदा मोचन बल को कार्रवाई के लिये बुलाए जाने की आवश्यकता है। सुनिश्चित किया जाता कि एम्बुलेंस और मेडिकल टीमें तुरंत घटनास्थल पर पहुँचें।
    • मार्ग में ब्रीफिंग: दुर्घटना स्थल पर जाते समय, दोनों स्थितियों– हताहतों की संख्या, राहत प्रयास और मेरी बेटी की स्थिति के बारे में अद्यतन जानकारी रखना आवश्यक है।

    4. प्रभावी ज़मीनी नेतृत्व:

    • बचाव कार्यों का पर्यवेक्षण करना: उचित चिकित्सा सहायता, पीड़ितों की निकासी सुनिश्चित की जाती और संभावित खतरों (गैस रिसाव, विस्फोट, आदि) को नियंत्रित किया जाता।
    • मीडिया और सार्वजनिक संचार का उपयोग करना: व्यवस्था बनाए रखने और गलत सूचना को रोकने के लिये आधिकारिक बयान जारी किया जाना आवश्यक है।
    • पारिवारिक स्थिति की निगरानी जारी रखना: यह सुनिश्चित करने के लिये कि मेरी बेटी को उचित देखभाल मिल रही है, समय-समय पर घर से अपडेट लेना आवश्यक है।

    5. स्थिति सामान्य होने के बाद घर लौटना:

    • सुनिश्चित करना कि आपदा प्रबंधन दल कार्यभार संभालें: एक बार जब स्थिति नियंत्रण में आ जाएगी और विशेषज्ञ (अग्निशमन दल, चिकित्सा दल, औद्योगिक सुरक्षा अधिकारी) कार्यभार संभाल लेंगे, तो मैं अपने अधीनस्थों को आगे की जिम्मेदारियाँ सौंप दूंगा।
    • अपनी बेटी के साथ रहने के लिये घर लौटना: यह सुनिश्चित करने के बाद कि औद्योगिक दुर्घटना स्थल स्थिर हो गया है, मैं अपनी बेटी की व्यक्तिगत रूप से जाँच करने, उसे भावनात्मक समर्थन प्रदान करने तथा उसकी सर्जरी के बाद अपनी पत्नी के साथ रहने के लिये घर लौटूंगा।

    (ग) इस मामले के संदर्भ में, लोक सेवकों के लिये बेहतर कार्य-जीवन संतुलन सुनिश्चित करने में संस्थागत तंत्र के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।

    • कार्य-परिवार संघर्षों को कम करना: लोक सेवकों को प्रायः ऐसे संकटों का सामना करना पड़ता है, जिन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता होती है और प्रायः ऐसा परिवार के साथ समय बिताने की कीमत पर होता है।
      • आपातकालीन सहायता प्रणालियों जैसी व्यवस्थाएँ उन्हें आधिकारिक जिम्मेदारियों से समझौता किये बिना व्यक्तिगत संकटों का प्रबंधन करने में मदद कर सकती हैं।
    • प्रतिनिधिमंडल और समर्थन प्रणालियों को सुदृढ़ करना: एक अच्छी तरह से काम करने वाना प्रशासन पदानुक्रमिक प्रतिनिधिमंडल पर निर्भर करती है, जहाँ जिम्मेदारियाँ प्रभावी ढंग से वितरित की जाती हैं।
      • अधीनस्थों (ADM, SDM, आपातकालीन मोचन दल) को सशक्त बनाने से यह सुनिश्चित होता है कि एक अधिकारी पर अत्यधिक बोझ न पड़े और आवश्यकता पड़ने पर वह व्यक्तिगत आपातकालीन स्थितियों पर ध्यान दे सके।
    • ससमय संकट प्रबंधन के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग: ई-समीक्षा और कमांड सेंटर जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म लोक सेवकों को आपात स्थितियों में दूर से निगरानी और समन्वय करने में सक्षम बना सकते हैं।
      • इस मामले में तो नहीं, लेकिन कई मामलों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, रियल-टाइम डैशबोर्ड और स्वचालित रिपोर्टिंग से भौतिक उपस्थिति की आवश्यकता कम हो सकती है तथा पूर्ण व्यक्तिगत त्याग के बिना दक्षता सुनिश्चित हो सकती है।
    • परिवार सहायता नीतियों को संस्थागत बनाना– परिसर में आवास, डेकेयर सेंटर तथा सिविल सेवकों और उनके परिवारों के लिये मानसिक स्वास्थ्य सहायता जैसे प्रावधान तनाव को कम कर सकते हैं।
      • गैर-संकट स्थितियों में अधिकारियों के लिये लचीली कार्य नीतियाँ, शासन को प्रभावित किये बिना पारिवारिक आवश्यकताओं को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने में मदद कर सकती हैं।
    • मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक कल्याण पहल: उच्च तनाव वाले व्यवसायों से प्रायः बर्नआउट, मानसिक असंतुलन और रिश्ते तनावपूर्ण होते हैं।
      • तनाव प्रबंधन कार्यशालाएँ, परामर्श सेवाएँ और सहकर्मी सहायता नेटवर्क जैसी सरकारी पहल, सिविल सेवकों को व्यक्तिगत सामंजस्य बनाए रखते हुए दबाव से निपटने में मदद कर सकती हैं।
        • उदाहरण के लिये, स्कैंडिनेवियाई देशों में, सिविल सेवकों के लिये व्यापक डेकेयर प्रणालियाँ संस्थागत तंत्र का हिस्सा हैं जो कार्य-जीवन संतुलन सुनिश्चित करती हैं।
    • नैतिक और व्यावसायिक दिशानिर्देशों को सुदृढ़ बनाना: संस्थागत तंत्र में स्पष्ट नैतिक ढाँचे शामिल होने चाहिये जो अधिकारियों को कर्त्तव्य और व्यक्तिगत जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाने में मार्गदर्शन प्रदान करें।
      • प्रशासनिक प्राथमिकता के रूप में कार्य-जीवन संतुलन को प्रोत्साहित करने वाली नीतियाँ एक ऐसी संस्कृति बनाने में मदद करेंगी जहाँ पेशेवर कर्त्तव्यों के साथ-साथ व्यक्तिगत जिम्मेदारियों का भी सम्मान किया जाएगा।

    निष्कर्ष

    आरव की दुविधा संस्थागत तंत्र की तत्काल आवश्यकता को उजागर करती है जो लोक सेवकों को बिना किसी समझौते के पेशेवर जिम्मेदारियों और व्यक्तिगत प्रतिबद्धताओं को संतुलित करने में सक्षम बनाती है। प्रभावी प्रतिनिधिमंडल, तकनीकी एकीकरण, पारिवारिक सहायता नीतियों और मानसिक कल्याण पहलों की एक संरचित प्रणाली प्रशासन को व्यक्तिगत स्थिरता सुनिश्चित करते हुए संकटों का कुशलतापूर्वक मोचन करने में सहायता कर सकती है।

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