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प्रश्न :
प्रश्न: ‘मूल्य बहुलवाद’ से आप क्या समझते हैं? यह भारत जैसे बहुसांस्कृतिक लोकतंत्र में नैतिक निर्णय क्षमता को किस प्रकार जटिल बनाता है? (150 शब्द)
30 Jan, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- मूल्य बहुलवाद को परिभाषित करके उत्तर दीजिये।
- तर्क दीजिये कि किस प्रकार मूल्य बहुलवाद भारत में नैतिक निर्णय लेने को जटिल बनाता है।
- आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
मूल्य बहुलवाद एक नैतिक अवधारणा है जिसके अनुसार कई नैतिक मूल्य एक साथ रह सकते हैं, भले ही वे कभी-कभी एक-दूसरे से टकराते हों। भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में, विभिन्न समुदाय और व्यक्ति अलग-अलग मूल्यों को प्राथमिकता देते हैं, जिससे निर्णय लेने में नैतिक जटिलताएँ उत्पन्न होती हैं।
मुख्य भाग:
मूल्य बहुलवाद भारत में नैतिक निर्णय लेने को किस प्रकार जटिल बनाता है:
- व्यक्तिगत अधिकारों और सांस्कृतिक परंपराओं के बीच संघर्ष
- लैंगिक समानता जैसे संवैधानिक मूल्य प्रायः धार्मिक रीति-रिवाजों के साथ असंगत होते हैं। समानता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से किये गए कानूनी सुधारों का पारंपरिक मान्यताओं पर उल्लंघन के रूप में विरोध किया जा सकता है।
- उदाहरण: सर्वोच्च न्यायालय के सबरीमाला मंदिर प्रवेश (वर्ष 2018) से संबंधित निर्णय ने सभी उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी, लेकिन धार्मिक परंपराओं का हवाला देते हुए भक्तों के कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा।
- धार्मिक स्वतंत्रता बनाम राज्य हस्तक्षेप
- यद्यपि व्यक्तिगत कानून धार्मिक स्वायत्तता को बनाए रखने के लिये हैं, कुछ प्रथाएँ मौलिक अधिकारों का उल्लंघन कर सकती हैं। ऐसी प्रथाओं में सुधार के लिये कानूनी हस्तक्षेप को प्रायः सरकार के अतिक्रमण के रूप में देखा जाता है।
- उदाहरण: ट्रिपल तलाक प्रतिबंध (वर्ष 2019) को लैंगिक न्याय की दिशा में एक कदम माना गया, लेकिन कुछ वर्गों ने इसे मुस्लिम पर्सनल लॉ में हस्तक्षेप के रूप में देखा।
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम सामाजिक सद्भाव
- वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कभी-कभी धार्मिक या सांस्कृतिक भावनाओं को ठेस पहुँचा सकती है, जिससे सामाजिक अशांति उत्पन्न हो सकती है। सरकारों को प्रायः सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिये अभिव्यक्ति को विनियमित करना पड़ता है।
- उदाहरण: पद्मावत जैसी फिल्मों और द सैटेनिक वर्सेज जैसी पुस्तकों को धार्मिक या ऐतिहासिक विकृतियों के कारण प्रतिबंध और हिंसक विरोध का सामना करना पड़ा।
- आर्थिक विकास बनाम पर्यावरण संरक्षण
- औद्योगीकरण और बुनियादी अवसंरचना परियोजनाएँ आर्थिक विकास और रोज़गार को बढ़ावा देती हैं, लेकिन प्रायः पर्यावरणीय क्षरण और समुदायों के विस्थापन का कारण बनती हैं।
- उदाहरण: तमिलनाडु में वेदांता स्टरलाइट कॉपर प्लांट को आर्थिक लाभ के बावजूद पर्यावरण प्रदूषण के मुद्दे पर व्यापक विरोध के कारण बंद कर दिया गया।
- बहुसंख्यकवाद बनाम अल्पसंख्यक अधिकार
- राष्ट्रीय एकीकरण पर लक्षित नीतियाँ कभी-कभी अल्पसंख्यक समुदायों की सांस्कृतिक स्वायत्तता की अनदेखी करती हैं, जिससे सांस्कृतिक समावेशन का भय उत्पन्न होता है।
- उदाहरण: समान नागरिक संहिता (UCC) का प्रस्ताव समान व्यक्तिगत कानून स्थापित करने का प्रयास करता है, लेकिन अल्पसंख्यक समूहों का तर्क है कि इससे उनकी धार्मिक पहचान को खतरा है।
आगे की राह:
- संवाद और विचार-विमर्श: प्रतिस्पर्द्धी हितों में संतुलन के लिये समावेशी चर्चा को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- प्रासंगिक निर्णय लेना: ऐसी नीतियों का कार्यान्वयन किया जाना चाहिये जो विविधता और मौलिक अधिकारों दोनों का सम्मान करती हों।
- न्यायिक व्याख्या: परस्पर विरोधी मूल्यों में सामंजस्य स्थापित करने में न्यायालय महत्त्वपूर्ण भूमिका (उदाहरण के लिये, केशवानंद भारती केस, 1973) निभाते हैं।
- शैक्षिक सुधार: पारस्परिक सम्मान और सहिष्णुता को बढ़ावा देने के लिये नैतिक बहुलवाद को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
निष्कर्ष:
भारत जैसे बहुसांस्कृतिक लोकतंत्र में मूल्य बहुलवाद एक ताकत और चुनौती दोनों है। जबकि यह विविधता की अनुमति देता है, यह प्रतिस्पर्द्धी नैतिक दृष्टिकोणों के बीच संघर्ष उत्पन्न करके निर्णय लेने को भी जटिल बनाता है। ऐसी दुविधाओं को हल करने की कुंजी संवैधानिक सिद्धांतों, समावेशी शासन और एक संतुलित दृष्टिकोण में निहित है जो सांस्कृतिक विविधता का सम्मान करते हुए न्याय सुनिश्चित करता है।
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