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प्रश्न :
प्रश्न: "21वीं सदी की सबसे बड़ी नैतिक चुनौती भ्रष्टाचार नहीं, बल्कि नैतिक विवेकहीनता है।" क्या आप इससे सहमत हैं? उदाहरणों के साथ अपने उत्तर की पुष्टि कीजिये। (150 शब्द)
30 Jan, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भ्रष्टाचार के साथ-साथ नैतिक विवेकहीनता की गंभीरता को एक नैतिक चुनौती के रूप में उजागर करते हुए उत्तर दीजिये।
- नैतिक विवेकहीनता को सबसे बड़ी नैतिक चुनौती बताने वाले तर्क दीजिये।
- क्या भ्रष्टाचार अभी भी एक प्रमुख नैतिक चुनौती है? इस पर प्रश्न उठाने वाले प्रमुख बिंदुओं पर गहन विचार प्रस्तुत कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
नैतिक विवेकहीनता नैतिक उत्तरदायित्व, सामाजिक अन्याय और नागरिक कर्त्तव्यों के प्रति संवेदनहीनता को संदर्भित करती है। 21वीं सदी में नैतिक चुनौतियाँ नैतिकता के सक्रिय उल्लंघन से कहीं आगे जा चुकी हैं, जैसे कि भ्रष्टाचार। नैतिक विवेकहीनता आत्मसंतुष्टि और निष्क्रियता को बढ़ावा देती है, जो अनैतिक व्यवहार को पनपने का मौका देती है, जबकि भ्रष्टाचार सीधे तौर पर नैतिक मानकों का उल्लंघन करता है।
मुख्य भाग:
नैतिक विवेकहीनता एक बड़ी नैतिक चुनौती:
- नागरिक उत्तरदायित्व का ह्रास: लोग प्रायः अन्याय के सामने मौन रहते हैं, जिससे अनैतिक प्रथाओं को बढ़ावा मिलता है।
- उदाहरण: मॉब लिंचिंग द्वारा हत्या जैसी घटनाओं में दर्शक प्रभाव, जहाँ दर्शक हस्तक्षेप करने में विफल रहते हैं।
- घटती सार्वजनिक जवाबदेही: मतदाताओं की विवेकहीनता और नैतिक शासन की मांग में कमी के परिणामस्वरूप दंड से मुक्ति की संस्कृति उत्पन्न होती है।
- उदाहरण: शासन और भ्रष्टाचार पर बढ़ती चिंताओं के बावजूद चुनावों में मतदान का प्रतिशत कम होना।
- कार्यस्थल नैतिकता और संगठनात्मक विवेकहीनता: कर्मचारियों द्वारा भेदभाव, उत्पीड़न या वित्तीय धोखाधड़ी जैसी अनैतिक प्रथाओं की अनदेखी करना।
- उदाहरण: कॉर्पोरेट घोटालों में मुखबिरों का दमन (जैसे: वर्ष 2008 का वित्तीय संकट)।
- पर्यावरणीय लापरवाही: पर्यावरणीय क्षरण के स्पष्ट प्रमाण के बावजूद जलवायु परिवर्तन के प्रति जनता की विवेकहीनता।
- उदाहरण: जागरूकता अभियानों के बावजूद प्रदूषण और अपशिष्ट प्रबंधन पर न्यूनतम व्यक्तिगत कार्रवाई।
- सामाजिक असमानताएँ और सहानुभूति का अभाव: सीमांत समुदायों के प्रति विवेकहीनता प्रणालीगत असमानताओं को जारी रहने का कारण बनती है।
- उदाहरण: भारत में कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान प्रवासी श्रमिकों की दुर्दशा के प्रति विवेकहीनता।
- राजनीतिक विवेकहीनता और सक्रिय नागरिकता का अभाव: लोग प्रायः नेताओं को जवाबदेह ठहराने के बजाय अनैतिक राजनीतिक प्रथाओं को सहन करते हैं।
- उदाहरण: राजनीतिक विमर्श में अभद्र भाषा और गलत सूचना का सामान्यीकरण।
यद्यपि नैतिक विवेकहीनता अनैतिक व्यवहार को बढ़ावा देती है, भ्रष्टाचार एक महत्त्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है:
- संस्थागत भ्रष्टाचार लोकतंत्र और शासन को कमज़ोर करता है (उदाहरण के लिये 2G स्पेक्ट्रम, राष्ट्रमंडल खेल घोटाला)।
- रोजमर्रा की सेवाओं में छोटा-मोटा भ्रष्टाचार जनता के विश्वास को समाप्त कर देता है (जैसे: सरकारी कार्यालयों में रिश्वतखोरी)।
- हालाँकि, नैतिक विवेकहीनता उत्तरदायित्व और कार्रवाई को हतोत्साहित करके भ्रष्टाचार को पनपने देती है।
आगे की राह:
- नैतिक शिक्षा को सुदृढ़ बनाना: शिक्षा में नैतिकता को एकीकृत करने से जिम्मेदार नागरिकता विकसित हो सकती है।
- सक्रिय नागरिक सहभागिता को प्रोत्साहित करना: सहभागी शासन और पारदर्शिता के लिये प्रयास से सार्वजनिक विवेकहीनता कम हो सकती है।
- व्हिसलब्लोअर संरक्षण और उत्तदायित्व तंत्र: कार्यस्थलों और संस्थानों में नैतिक व्यवहार को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- सामाजिक सहानुभूति को बढ़ावा देना: सामाजिक मुद्दों के लिये स्वयंसेवा और संवेदनशीलता अभियान को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष:
भ्रष्टाचार एक महत्त्वपूर्ण नैतिक मुद्दा बना हुआ है, लेकिन नैतिक विवेकहीनता एक बड़ी चुनौती है क्योंकि यह भ्रष्टाचार और अन्य अनैतिक प्रथाओं को बिना निरंतर जारी रहने देती है। नैतिक विवेकहीनता (जिसे कभी-कभी सबसे गंभीर समस्या के रूप में संदर्भित किया जाता है) को जागरूकता, नागरिक समन्वय और नैतिक शिक्षा के माध्यम से हल करना अधिक न्यायपूर्ण एवं जिम्मेदार समाज को बढ़ावा देने के लिये आवश्यक है।
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