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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न: भारत में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने की क्षमता को मज़बूत करने में मौसम पूर्वानुमान और जलवायु मॉडलिंग में उभरती प्रौद्योगिकियाँ किस प्रकार सहायक हो सकती हैं? उपयुक्त उदाहरणों सहित चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    29 Jan, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 विज्ञान-प्रौद्योगिकी

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • जलवायु जोखिमों के प्रति भारत की संवेदनशीलता के संदर्भ में संक्षेप में बताते हुए उत्तर दीजिये। 
    • जलवायु अनुकूलन में उभरती प्रौद्योगिकियों की भूमिका बताइये। 
    • जलवायु अनुकूलन में उभरती प्रौद्योगिकियों की भूमिका को और दृढ़ करने के उपाय सुझाइये।
    • मुख्य बिंदुओं और दूरदर्शी दृष्टिकोण का सारांश प्रस्तुत करते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये। 

    परिचय:

    ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स के अनुसार, वर्ष 2019 में भारत जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के लिये विश्व का सातवाँ सबसे सुभेद्य देश था। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), सैटेलाइट-आधारित रिमोट सेंसिंग, हाई-रिज़ॉल्यूशन क्लाइमेट मॉडल और IoT-आधारित पूर्व चेतावनी प्रणाली जैसी उभरती हुई तकनीकें जलवायु जोखिमों का पूर्वानुमान करने, अनुकूलन करने और उन्हें कम करने की भारत की क्षमता को बढ़ा रही हैं।

    मुख्य भाग: 

    जलवायु अनुकूलन में उभरती प्रौद्योगिकियों की भूमिका

    • आपदा मोचन की तैयारी के लिये बेहतर मौसम पूर्वानुमान: उन्नत पूर्वानुमान प्रौद्योगिकियाँ चरम मौसमी घटनाओं के लिये पूर्व चेतावनी प्रदान करती हैं, जिससे अधिकारियों को सक्रिय कदम उठाने में मदद मिलती है।
      • कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और मशीन लर्निंग (ML): AI-संचालित मॉडल मानसून परिवर्तनशीलता, चक्रवाती संरचनाओं और हीटवेव में पैटर्न का पता लगाने के लिये जलवायु डेटासेट का वृहत विश्लेषण करते हैं।
        • ML अल्पकालिक और दीर्घकालिक मौसम पूर्वानुमानों की सटीकता में सुधार करता है।
        • उदाहरण: NASA के सहयोग से, IBM एक ओपन-सोर्स फाउंडेशन मॉडल जारी कर रहा है जिसे विभिन्न मौसम और जलवायु-संबंधी अनुप्रयोगों के लिये अनुकूलित किया जा सकता है।
      • डॉप्लर मौसम रडार (DWR): डॉप्लर रडार तूफान, भारी वर्षा और बिजली के लिये उच्च परिशुद्धता वाले अल्पकालिक पूर्वानुमान प्रदान करते हैं।
        • ये रडार आकस्मिक बाढ़ (Flash Flood) और नगरीय बाढ़ को रोकने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
        • वर्ष 2023 तक, गंभीर मौसमी घटनाओं की निगरानी के लिये देश भर में 39 डॉप्लर मौसम रडार (DWR) वितरित किये जाएंगे।
    • दीर्घकालिक योजना के लिये हाई-रिज़ॉल्यूशन जलवायु मॉडल: जलवायु मॉडल भविष्य की जलवायु प्रवृत्तियों का अनुकरण करते हैं, नीति निर्माण और बुनियादी अवसंरचना के विकास में सहायता करते हैं।
      • क्षेत्रीय जलवायु मॉडल (RCM) और वैश्विक जलवायु मॉडल (GCM) तापमान प्रवृत्तियों, मानसून पैटर्न और समुद्र-स्तर में वृद्धि का पूर्वानुमान लगाने में मदद करते हैं।
        • ये जलवायु-अनुकूल शहरी बुनियादी अवसंरचना और कृषि नीतियों को डिज़ाइन करने में सहायता करते हैं।
    • रियल टाइम मॉनिटरिंग के लिये उपग्रह-आधारित रिमोट सेंसिंग: उपग्रह जलवायु मापदंडों की निरंतर निगरानी करते हैं तथा पूर्व चेतावनी प्रणालियों को समर्थन प्रदान करते हैं।
      • भू-स्थिर और ध्रुवीय-परिक्रमा उपग्रह चक्रवातों, वर्षा पैटर्न, महासागरीय तापमान और निर्वनीकरण की दरों पर नज़र रखते हैं।
        • बाढ़, सूखा और मरुस्थलीकरण की प्रवृत्तियों का पूर्वानुमान करने में सहायता प्रदान करते हैं।
        • INSAT-3DR उपग्रह चक्रवात की रियल टाइम ट्रैकिंग करता है, तथा आपदा मोचन प्रयासों में सहायता करता है।
    • पूर्व चेतावनी प्रणालियों के लिये बिग डेटा, क्लाउड कंप्यूटिंग और IoT: प्रौद्योगिकी-संचालित डेटा विश्लेषण और स्वचालन जलवायु जोखिम आकलन की गति एवं सटीकता में सुधार करते हैं।
      • यह क्लाइमेट सिमुलेशन के तेज़ी से प्रसंस्करण को सक्षम बनाता है, जोखिम आकलन को बढ़ाता है।
        • चरम मौसमी घटनाओं के दौरान ठीक समय पर निर्णय लेने में सहायता करता है।
    • IoT-आधारित सेंसर नेटवर्क: स्वचालित मौसम केंद्र हाइपरलोकल डेटा प्रदान करते हैं, जिससे ससमय पूर्वानुमान में सुधार होता है।
      • IoT सेंसर बिजली की गतिविधि, मृदा की नमी और तापमान में उतार-चढ़ाव का पता लगाते हैं।
      • उदाहरण के लिये, IMD द्वारा विकसित दामिनी लाइटनिंग अलर्ट ऐप, ठीक समय पर तड़ित (आकाशीय बिजली गिरने) की चेतावनी भेजता है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में हताहतों की संख्या कम हो जाती है।

    Technological Responses to Climate Challenge

    जलवायु अनुकूलन में उभरती प्रौद्योगिकियों की भूमिका को और सुदृढ़ करने के उपाय: 

    • पूर्वानुमान में AI और ML एकीकरण को सुदृढ़ करना– पूर्वानुमान की सटीकता बढ़ाने के लिये वैश्विक AI अनुसंधान संस्थानों के साथ सहयोग किये जाने की आवश्यकता है।
    • डॉप्लर रडार नेटवर्क का विस्तार- पूर्वोत्तर भारत जैसे जलवायु-सुभेद्य क्षेत्रों में अधिक डॉप्लर रडार तैनात किये जाने की आवश्यकता है।
    • स्वदेशी जलवायु मॉडल विकसित करना- भारत में विकसित हाई-रिज़ॉल्यूशन मॉडल में निवेश करके विदेशी मॉडलों पर निर्भरता कम किये जाने की आवश्यकता है।
    • सार्वजनिक जागरूकता और चेतावनी प्रणाली को बढ़ाना - मौसम ऐप जैसे मोबाइल ऐप के माध्यम से ससमय जलवायु चेतावनियों की पहुँच में सुधार किये जाने की आवश्यकता है।
    • IoT-आधारित मौसम अवसंरचना में वृद्धि- हाइपरलोकल पूर्वानुमान प्रदान करने के लिये ग्रामीण और कृषि क्षेत्रों में स्वचालित मौसम स्टेशनों की तैनाती सुनिश्चित किये जाने की आवश्यकता है।

    निष्कर्ष: 

    उभरती हुई प्रौद्योगिकियाँ मौसमी पूर्वानुमान की सटीकता को बढ़ाकर, आपदा मोचन हेतु तैयारी को सुदृढ़ करके और दीर्घकालिक नीति नियोजन का समर्थन करके भारत की जलवायु-अनुकूल रणनीतियों को उन्नत कर रही हैं। जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरों से मोचन के लिये जीवन, बुनियादी अवसंरचना तथा आजीविका की सुरक्षा के लिये AI, उपग्रह निगरानी, ​​डॉपलर रडार और IoT-आधारित प्रणालियों को एकीकृत करना महत्त्वपूर्ण होगा। एक प्रौद्योगिकी-संचालित जलवायु अनुकूलन दृष्टिकोण एक गर्म होते विश्व में भारत के संवहनीय भविष्य को सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।

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