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प्रश्न :
प्रश्न: "दक्षिण एशियाई संबंधों में जल कूटनीति महत्त्वपूर्ण होती जा रही है।" भारत से संबंधित सीमा पार जल विवादों का विश्लेषण कीजिये और क्षेत्रीय स्थिरता पर उनके प्रभावों की विवेचना कीजिये। (250 शब्द)
28 Jan, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंधउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- दक्षिण एशियाई संबंधों में जल कूटनीति किस प्रकार महत्त्वपूर्ण होती जा रही है, यह बताते हुए उत्तर दीजिये।
- भारत से जुड़े सीमा पार जल मुद्दों पर प्रकाश डालिये।
- क्षेत्रीय स्थिरता पर सीमा पार जल मुद्दों का प्रभाव बताइये।
- जल कूटनीति को मज़बूत करने के सुझावों पर प्रकाश डालिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
अस्तित्व, आर्थिक विकास और भू-राजनीतिक स्थिरता के लिये जल एक महत्त्वपूर्ण संसाधन है। दक्षिण एशिया में, जहाँ सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र और तीस्ता जैसी नदियाँ अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं को पार करती हैं, सीमा पार जल प्रबंधन एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा बन गया है।
- साझा नदी प्रणालियाँ भारत को उसके पड़ोसियों— पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और चीन से जोड़ती हैं, लेकिन जल बँटवारे, संसाधनों के उपयोग एवं बाँध निर्माण को लेकर विवाद भी खड़े करती हैं।
मुख्य भाग:
भारत से जुड़े सीमा पार जल मुद्दे:
- भारत-पाकिस्तान: सिंधु जल संधि (IWT)
- विश्व बैंक द्वारा मध्यस्थता की गई सिंधु जल संधि (वर्ष 1960) भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी प्रणाली के साझाकरण को नियंत्रित करती है।
- चुनौतियाँ: पाकिस्तान भारत पर पश्चिमी नदियों पर जलविद्युत परियोजनाओं (जैसे: किशनगंगा और रातले परियोजनाएँ) का निर्माण करके संधि का उल्लंघन करने का आरोप लगाता है।
- दूसरी ओर, भारत का कहना है कि पाकिस्तान संधि के तहत अनुमत वैध परियोजनाओं में बाधा उत्पन्न करता है।
- चुनौतियाँ: पाकिस्तान भारत पर पश्चिमी नदियों पर जलविद्युत परियोजनाओं (जैसे: किशनगंगा और रातले परियोजनाएँ) का निर्माण करके संधि का उल्लंघन करने का आरोप लगाता है।
- विश्व बैंक द्वारा मध्यस्थता की गई सिंधु जल संधि (वर्ष 1960) भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी प्रणाली के साझाकरण को नियंत्रित करती है।
- भारत-बांग्लादेश: गंगा और तीस्ता नदियाँ
- गंगा जल संधि (वर्ष 1996) शुष्क मौसम के दौरान फरक्का बैराज पर भारत और बांग्लादेश के बीच जल बँटवारे को नियंत्रित करती है।
- चुनौतियाँ: ग्रीष्म-शुष्क महीनों के दौरान, बांग्लादेश भारत पर अपर्याप्त जल छोड़ने का आरोप लगाता है, जिससे कृषि और आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- जलवायु परिवर्तन पर बढ़ती चिंताओं ने जल की उपलब्धता में कमी को लेकर विवादों को तीव्र कर दिया है।
- तीस्ता नदी मुद्दा: बांग्लादेश तीस्ता नदी के जल में समान हिस्सेदारी की मांग कर रहा है, लेकिन पश्चिम बंगाल द्वारा अपनी जल आवश्यकताओं का हवाला देते हुए विरोध के कारण यह समझौता लंबित है।
- चुनौतियाँ: ग्रीष्म-शुष्क महीनों के दौरान, बांग्लादेश भारत पर अपर्याप्त जल छोड़ने का आरोप लगाता है, जिससे कृषि और आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- गंगा जल संधि (वर्ष 1996) शुष्क मौसम के दौरान फरक्का बैराज पर भारत और बांग्लादेश के बीच जल बँटवारे को नियंत्रित करती है।
- भारत-चीन: ब्रह्मपुत्र नदी
- ब्रह्मपुत्र नदी तिब्बत (यारलुंग त्सांगपो) से निकलकर भारत और बांग्लादेश से होकर बहती है।
- चुनौतियाँ: चीन द्वारा जांगमू बाँध जैसे बड़े बाँधों के निर्माण से भारत में, विशेष रूप से वर्षा ऋतु के दौरान, नीचले क्षेत्र की ओर जल प्रवाह में कमी आने की चिंता उत्पन्न हो गई है।
- औपचारिक जल-बंटवारे समझौते का अभाव तथा नदी प्रवाह पर सीमित डाटा-शेयरिंग से अनिश्चितता बढ़ती है।
- चुनौतियाँ: चीन द्वारा जांगमू बाँध जैसे बड़े बाँधों के निर्माण से भारत में, विशेष रूप से वर्षा ऋतु के दौरान, नीचले क्षेत्र की ओर जल प्रवाह में कमी आने की चिंता उत्पन्न हो गई है।
- ब्रह्मपुत्र नदी तिब्बत (यारलुंग त्सांगपो) से निकलकर भारत और बांग्लादेश से होकर बहती है।
- भारत-नेपाल: महाकाली और कोसी नदियाँ
- महाकाली संधि (वर्ष 1996): जल-बँटवारे और टनकपुर बैराज जैसी परियोजनाओं के निर्माण को नियंत्रित करती है।
- चुनौतियाँ: नेपाल ने भारत पर एकतरफा बाँध निर्माण और संधि के प्रावधानों का कार्यान्वयन न करने का आरोप लगाया।
- कोसी बैराज जैसी भारतीय परियोजनाओं के कारण नेपाल में बाढ़ आने से असंतोष उत्पन्न होता है।
- चुनौतियाँ: नेपाल ने भारत पर एकतरफा बाँध निर्माण और संधि के प्रावधानों का कार्यान्वयन न करने का आरोप लगाया।
- महाकाली संधि (वर्ष 1996): जल-बँटवारे और टनकपुर बैराज जैसी परियोजनाओं के निर्माण को नियंत्रित करती है।
क्षेत्रीय स्थिरता पर सीमा पार जल मुद्दों का प्रभाव:
- भू-राजनीतिक तनाव और विश्वास की कमी
- जल विवाद मौजूदा राजनीतिक और सुरक्षा मुद्दों को और अधिक गंभीर बना देते हैं, जैसे: भारत-पाकिस्तान शत्रुता या भारत-चीन प्रतिद्वंद्विता।
- पड़ोसी देश भारत की जल प्रबंधन परियोजनाओं को संदेह की दृष्टि से देखते हैं, उनका मानना है कि इनका प्रयोग दबाव बनाने के लिये किया जा सकता है, विशेष रूप से अत्यधिक राजनीतिक तनाव के दौरान।
- पर्यावरण और आजीविका संबंधी चिंताएँ
- जल बँटवारे को लेकर विवादों के कारण प्रायः सहयोगी परियोजनाओं में विलंब होता है, जिससे पर्यावरणीय क्षरण और जल संकट की स्थिति और भी विकट हो जाती है।
- उदाहरण के लिये, तीस्ता जल-बँटवारा समझौते में विलंब से बांग्लादेश और पूर्वोत्तर भारत के लाखों किसान प्रभावित होते हैं, जिससे सामाजिक एवं आर्थिक अस्थिरता उत्पन्न होती है।
- "हाइड्रो-हेजेमनी" का खतरा
- भारत, जोकि अधिकांश नदियों का ऊपरी तटवर्ती राष्ट्र है, पर प्रायः पड़ोसी देशों द्वारा एकतरफा जल अवसंरचना परियोजनाओं के माध्यम से ‘जल-आधिपत्य’ स्थापित करने का आरोप लगाया जाता है।
- इससे क्षेत्रीय असंतोष बढ़ता है और नेपाल व बांग्लादेश जैसे छोटे पड़ोसी देश भी समर्थन के लिये चीन की ओर बढ़ेंगे।
- भारत, जोकि अधिकांश नदियों का ऊपरी तटवर्ती राष्ट्र है, पर प्रायः पड़ोसी देशों द्वारा एकतरफा जल अवसंरचना परियोजनाओं के माध्यम से ‘जल-आधिपत्य’ स्थापित करने का आरोप लगाया जाता है।
- जलवायु परिवर्तन एक खतरा बढ़ाने वाला कारक
- जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने और अनियमित मानसून के कारण दक्षिण एशिया में जल की कमी बढ़ रही है, जिससे विवादों की आवृत्ति बढ़ रही है।
- उदाहरण के लिये, वर्षा ऋतु के दौरान ब्रह्मपुत्र का प्रवाह कम होने से भारत-चीन-बांग्लादेश के बीच तनाव बढ़ सकता है।
- जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने और अनियमित मानसून के कारण दक्षिण एशिया में जल की कमी बढ़ रही है, जिससे विवादों की आवृत्ति बढ़ रही है।
- क्षेत्रीय सहयोग के लिये छूटे अवसर
- जल विवाद ऊर्जा, सिंचाई और आपदा प्रबंधन पर क्षेत्रीय सहयोग के लिये दक्षिण एशिया की संभावनाओं में बाधा डालते हैं।
- उदाहरण के लिये, गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना नदी तंत्र के लिये एक व्यापक बेसिन-व्यापी दृष्टिकोण का अभाव संयुक्त बाढ़ नियंत्रण और सतत् नदी बेसिन विकास को बाधित करता है।
- जल विवाद ऊर्जा, सिंचाई और आपदा प्रबंधन पर क्षेत्रीय सहयोग के लिये दक्षिण एशिया की संभावनाओं में बाधा डालते हैं।
जल कूटनीति को मज़बूत करने के लिये सुझाव:
- बेसिन-व्यापी सहयोग तंत्र
- सहयोगात्मक नदी बेसिन प्रबंधन के लिये मेकांग नदी आयोग जैसे बहुपक्षीय कार्यढाँचे का निर्माण करना, डाटा साझाकरण, संयुक्त योजना और न्यायसंगत जल वितरण सुनिश्चित करना आवश्यक है।
- द्विपक्षीय समझौतों को मज़बूत बनाना
- पश्चिम बंगाल जैसे भारतीय राज्यों सहित सभी हितधारकों को वार्ता प्रक्रिया में शामिल करके तीस्ता समझौते जैसे लंबित समझौतों में तेज़ी लाई जा सकती है।
- डाटा साझाकरण और पारदर्शिता
- भारत और चीन को बाढ़ या न्यूनतम वर्षा वाले मौसम के दौरान अविश्वास को कम करने के लिये, विशेष रूप से ब्रह्मपुत्र के लिये, मज़बूत डाटा-साझाकरण समझौते स्थापित करने चाहिये।
- क्षेत्रीय प्लेटफॉर्म का लाभ उठाना
- सीमा पार जल प्रबंधन पर चर्चा आरंभ करने तथा विश्वास-निर्माण उपायों को बढ़ावा देने के लिये SAARC और BIMSTEC जैसे मंचों का उपयोग करना आवश्यक है।
- जलवायु अनुकूलन रणनीतियाँ
- जलवायु-अनुकूल जल-साझाकरण तंत्र विकसित करना आवश्यक है जो ग्लेशियर के पिघलने, नदी के प्रवाह में कमी तथा क्षेत्र में जल की बढ़ती मांग के प्रभाव को संतुलित कर सके।
- संयुक्त विकास परियोजनाएँ
- अंतर-निर्भरता और साझा लाभ को बढ़ावा देने के लिये जलविद्युत एवं सिंचाई परियोजनाओं के संयुक्त विकास को प्रोत्साहित करना आवश्यक है।
- उदाहरण के लिये, भारत और नेपाल आपसी ऊर्जा व जल सुरक्षा के लिये पंचेश्वर बहुउद्देशीय परियोजना जैसी विलंबित परियोजनाओं को पुनर्जीवित कर सकते हैं।
- अंतर-निर्भरता और साझा लाभ को बढ़ावा देने के लिये जलविद्युत एवं सिंचाई परियोजनाओं के संयुक्त विकास को प्रोत्साहित करना आवश्यक है।
निष्कर्ष
दक्षिण एशिया में सीमा पार जल मुद्दे क्षेत्रीय स्थिरता के लिये तेज़ी से महत्त्वपूर्ण होते जा रहे हैं क्योंकि जल की बढ़ती मांग, जलवायु परिवर्तन और भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता तनाव को बढ़ा रही है। द्विपक्षीय समझौतों को मज़बूत करना, डाटा साझा करने के माध्यम से विश्वास को बढ़ावा देना और बेसिन-व्यापी दृष्टिकोण का अंगीकरण को संघर्ष के स्रोत से सहयोग के साधन में बदलने के लिये आवश्यक है। ऐसा करके, भारत और उसके पड़ोसी क्षेत्र में सतत् विकास एवं स्थायी शांति सुनिश्चित कर सकते हैं।
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